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पंचायत शब्द का वास्तविक अर्थ ही मिनी संसद या ग्रामीण संसद है। ग्रामीण भारत में पंचायतों का महत्त्व बहुत पुराना है। भारत के कई प्रांतों में इसके मुखिया को सरपंच भी कहा जाता है तथा हमारे इस हिमाचल प्रदेश में इसके मुखिया को प्रधान कहा जाता है। प्रधान की सहायता के लिए हरेक पंचायत में एक उपप्रधान भी चुना जाता है। प्रधान तथा उपप्रधान का चुनाव सारी ग्राम पंचायत के अधिकार क्षेत्र यानी गांवों-वार्डों से सीधा होता है। बाकी प्रधान की सहायता के लिए हरेक वार्ड से एक-एक वार्ड पंच चुना जाता है जिसका चुनाव अपने ही वार्ड या गांव से किया जाता है। क्षेत्र के हिसाब से किसी पंचायत में 5 वार्ड, उससे बड़ी पंचायत में 7 वार्ड और उससे भी बड़ी पंचायत में 9 वार्ड भी होते हैं। आम भाषा में ग्राम पंचायत के सदस्यों को पंच परमेश्वर भी कहा जाता है। 1950-1990 के दशकों में ग्राम पंचायतों का कार्यक्षेत्र संबंधित गांवों के आपसी झगड़े निपटाने, गांवों के रास्ते बनाने तथा खेतों की सिंचाई के लिए खड्डों व नालों पर छोटे-छोटे चेक डैम देकर कूहलें बनाने का होता था। उस समय के प्रधान तथा वार्ड पंच गांव के किसी बड़े वृक्ष जैसे आम, पीपल या वट वृक्ष की छाया के नीचे दरी-चटाई आदि बिछाकर गांवों के छोटे-मोटे घरेलू लड़ाई-झगड़ों का निर्णय आपसी सहमति से कर दिया करते थे। इसके साथ ही ग्राम पंचायतों का मुख्य कार्य गांवों के परिवारों के राशन कार्ड बनाने का भी होता था। उस समय ग्राम पंचायतों के प्रधान, उपप्रधान तथा पंच गांवों के बड़ी उम्र के आदमी ही बनाए जाते थे। उस समय पंचायतों में आरक्षण बहुत कम होता था, लेकिन सन 1995 में प्रदेश में हिमाचल प्रदेश पंचायती राज निर्वाचन नियम 1994 लागू होने से ग्राम पंचायतों में महिलाओं के लिए 50 फीसदी आरक्षण कर दिया गया, जिससे पंचायतों में आधे पद पुरुषों को और आधे पद महिलाओं को निर्धारित कर दिए गए। कुछ समय तक यह चुनाव की प्रक्रिया तो ठीक-ठाक चलती रही, लेकिन अभी 2021 में प्रदेश में हुए पंचायतों, नगर पंचायतों, बीडीसी, जिला परिषदों के चुनाव में पुरुषों को निर्धारित किए गए कई पदों पर महिला उम्मीदवारों ने अपने नामांकन पत्र दाखिल कर दिए।
