सम्पादकीय

बेशर्मी की पराकाष्ठा है पाकिस्तान की स्वीकारोक्ति, भारत को अंतरराष्ट्रीय समुदाय में उठाना होगा कड़ा कदम

Gulabi
30 Oct 2020 8:29 AM GMT
बेशर्मी की पराकाष्ठा है पाकिस्तान की स्वीकारोक्ति, भारत को अंतरराष्ट्रीय समुदाय में उठाना होगा कड़ा कदम
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पाकिस्तान आतंकवाद को खुला समर्थन देने की अपनी नीति पर किस तरह बेशर्मी के साथ इतराता है,

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। पाकिस्तान आतंकवाद को खुला समर्थन देने की अपनी नीति पर किस तरह बेशर्मी के साथ इतराता है, इसका ताजा प्रमाण है वहां के केंद्रीय मंत्री फवाद चौधरी का भरी संसद में यह कहना कि पुलवामा हमला इमरान खान के नेतृत्व में हुआ था। इस हमले को उन्होंने एक बड़ी कामयाबी भी करार दिया। यह स्वीकारोक्ति उस शर्मिंदगी से उबरने के चक्कर में की गई, जो एक विपक्षी सांसद के इस बयान के कारण सरकार और साथ ही सेना को उठानी पड़ रही थी कि विंग कमांडर अभिनंदन की रिहाई इसलिए तुरंत करनी पड़ी, क्योंकि भारत के हमले की आशंका में पाकिस्तानी सेना प्रमुख बाजवा के पैर कांप रहे थे।

ऐसा ही हो रहा था, इसका एक प्रमाण तो अभिनंदन की तत्काल रिहाई रही और दूसरा, पाकिस्तान का यह कहना कि बालाकोट की एयर स्ट्राइक में बस कुछ पेड़ों को नुकसान पहुंचा था। अच्छा होगा कि अब अपने देश के वे विपक्षी नेता भी थोड़ी शर्मिंदगी महसूस करें, जो इस एयर स्ट्राइक के प्रमाण मांगने के साथ पुलवामा हमले को लेकर पाकिस्तान जैसी भाषा बोल रहे थे।

बड़बोले फवाद चौधरी के बयान पर इसलिए हैरानी नहीं, क्योंकि पाकिस्तान इसके पहले भी आतंकवाद को सहयोग-समर्थन देने की बात समय-समय पर स्वीकार करता रहा है। इसके अलावा विभिन्न स्रोतों से इसके सुबूत भी सामने आते रहे हैं कि पाकिस्तानी सरकार और सेना किस तरह आतंकी संगठनों को पालने-पोसने का काम करती रही है।

भारत को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय और खासकर वह एफएटीएफ फवाद चौधरी के बयान का सही तरह संज्ञान ले, जो आतंकवाद पर लगाम न पाने के बाद भी पाकिस्तान को मोहलत देने में लगा हुआ है।

भारत को यह सवाल उठाना ही चाहिए कि आखिर पाकिस्तान के प्रति कब तक नरमी बरती जाती रहेगी? अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान इस ओर भी आकर्षित किया जाना चाहिए कि जो पाकिस्तान आतंकवाद का सबसे गढ़ बना हुआ है, वह किस तरह दुनिया भर में आतंकी हमलों को अंजाम देने वालों की तरफदारी कर रहा है।

नि:संदेह यह बेशर्मी की पराकाष्ठा ही है कि पेरिस में एक शिक्षक का सिर कलम किए जाने की बर्बर और खौफनाक घटना के विरोध में जिन इमरान खान के मुंह से एक शब्द नहीं निकला, उन्होंने मजहबी कट्टरता से लड़ने की फ्रांसीसी राष्ट्रपति की प्रतिबद्धता पर सवाल उठाए और वह भी बेहद भोंडे ढंग से। चूंकि तालिबान खान कहे जाने वाले इमरान खान के नेतृत्व में पाकिस्तान के सही राह पर आने के कोई आसार नहीं, अत: भारत को सतर्क रहना होगा-इसलिए और अधिक, क्योंकि वह कश्मीर में आतंकी दस्ते और हथियार भेजने के साथ मजहबी कट्टरता को खुराक भी दे रहा है।

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