सम्पादकीय

पाकिस्तान का कंप्यूटर वायरस 'ब्रेन' जिसने पूरी दुनिया में एक नई बिलियन डॉलर इंडस्ट्री खड़ी कर दी

Rani Sahu
15 April 2022 12:06 PM GMT
पाकिस्तान का कंप्यूटर वायरस ब्रेन जिसने पूरी दुनिया में एक नई बिलियन डॉलर इंडस्ट्री खड़ी कर दी
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पाकिस्तान (Pakistan) की सियासी उठापटक दुनिया भर में चर्चा में है

अनिमेष मुखर्जी

पाकिस्तान (Pakistan) की सियासी उठापटक दुनिया भर में चर्चा में है. इमरान खान (Imran Khan) ने तमाम तरह की टेंपरिंग की, लेकिन पारी नहीं बचा पाए. पाकिस्तान के अंदर चल रहे इस ड्रामे में अमेरिका (America) का नाम भी आया. वैसे भी कहते हैं कि पाकिस्तान तीन चीज़ों से चलता है; अल्लाह, आर्मी, और अमेरिका. इस अल्लाह, आर्मी, और अमेरिका वाले पाकिस्तान की चर्चा दुनिया भर में किसी भी वजह से हो, बस इसमें आईटी, सॉफ़्टवेयर, और टेक्नॉलजी की बात नहीं होती. हालांकि, पाकिस्तान में आईटी इंडस्ट्री से जुड़ी एक ऐतिहासिक घटना हुई थी.
पाकिस्तान में दुनिया का पहला मुकम्मल कंप्यूटर वायरस बना था. इस वायरस का नाम था ब्रेन और साल था 1986. ब्रेन को पर्सनल कंप्यूटर के लिए, दुनिया का पहला वायरस कहा जाता है. वैसे दुनिया में इससे पहले भी कंप्यूटर वायरस बने थे, लेकिन वे पर्सनल कंप्यूटर पर नहीं आए थे और बुरी तरह फैले नहीं थे. इसीलिए उनके बारे में तब तक कोई नहीं जानता था. 'ब्रेन' नुकसान करने के मामले में बहुत घातक नहीं था, लेकिन यह बेहद मारक था. इसी वायरस ने आगे चलकर अरबों डॉलर की एंटीवायरस इंडस्ट्री की नींव रखी. क्या थी, ब्रेन की कहानी आइए जानते हैं.
7 केबी और पायरेसी
1986 में कंप्यूटर की दुनिया आज की तरह नहीं थी. इंटरनेट मौजूद था, लेकिन दुनिया उससे अनजान थी. कंप्यूटर में माइक्रोसॉफ़्ट डॉस का बोलबाला था. विंडोज़ अभी लोकप्रिय नहीं हुआ था और इसीलिए माउस भी कम ही देखने को मिलता था. सॉफ़्टवेयर फ़्लॉपी पर चलते थे, जिनकी कुल क्षमता 1.2 एमबी की होती थी. 1mb की रैम और 40 mb की हार्ड डिस्क वाला आईबीएम पर्सनल कंप्यूटर सबसे एडवांस माना जाता था. वैसे इसी साल स्टीव जॉब्स ने एक कंपनी खरीदकर उसका नाम बदला था. यह कंपनी थी पिक्सार, जो इससे पहले लूकस फ़िल्म के नाम से जानी जाती थी.
पिक्सार ने दुनिया की सबसे बेहतरीन ऐनिमेशन फ़िल्में बनाई हैं और ऑस्कर जीते हैं. आगे बढ़ने से पहले बता दें कि आज जिन कन्फ़िगरेशन को जानकर आपको हंसी आती है, वे बेहद महंगी थीं. 20 एमबी की हार्ड डिस्क की कीमत 900 डॉलर के करीब थी, जो आज के हिसाब से भी बहुत महंगा है. 86 की तो बात ही छोड़ दीजिए. उस ज़माने में कंप्यूटर प्रोग्रामिंग सीखकर छोटे-मोटे सॉफ़्टवेयर बनाना बहुत मुनाफ़े वाला काम था.
19 साल के बासित फ़ारुख अल्वी अपने भाई अमजद के साथ मिलकर कंप्यूटर प्रोग्राम बनाते थे. इन्होंने एक मेडिकल सॉफ़्टवेयर बनाया. इनकी लाहौर में एक कंपनी थी, जिसका नाम था ब्रेन टेलिकॉम. साल 1984 से ये दोनो भाई सोच रहे थे कि इनके सॉफ़्टवेयर की पायरेसी को रोकने का कुछ तरीका निकाला जाए. इसी बीच में माइक्रोसॉफ़्ट ने डॉस ऑपरेटिंग सिस्टम उतार दिया. डॉस में सुरक्षा की नज़र से कई कमियां थीं और दोनों भाइयों ने एक प्रोग्राम लिखा. यह प्रोग्राम फ़्लॉपी में पायरेसी वाला सॉफ़्टवेयर होने पर सात केबी की खाली जगह पर कब्ज़ा कर लेता था. इससे स्क्रीन फ़्रीज़ हो जाती. सिस्टम स्लो हो जाता और एक मैसेज दिखाई देता, Welcome to the Dungeon © 1986 Basit Amjads (pvt). BRAIN COMPUTER SERVICES 730 NIZAM BLOCK ALLAMA IQBAL TOWN LAHORE-PAKISTAN PHONE: 430791,443248,280530. Beware of this VIRUS…. Contact us for vaccination… इस वायरस से कोई नुकसान नहीं पहुंचता था, और वायरस के इलाज के लिए तीन फ़ोन नंबर भी दिए हुए थे.
लाहौर की मंडी और मायामी से फ़ोन
दोनों भाइयों ने इस वायरस को फ़्लॉपी में डाल दिया और इन्हें लगा कि इनके आस-पास जो भी नकली सॉफ़्टवेयर इस्तेमाल करेगा, वो वायरस इन्फ़ेक्शन के बाद कॉल करके इनकी सेवाएं लेगा. इससे कॉपीराइट की सुरक्षा भी होगी और किसी को कोई नुकसान भी नहीं होगा. कहानी में एक छिपा हुआ ट्विस्ट और भी है. हिंदुस्तान और पाकिस्तान जैसे मुल्कों में सॉफ़्टवेयर की क्रैक्ड कॉपी डिस्क पर लोड होकर बाज़ारों में बिकना आम बात है.
आपको सारे सॉफ़्टवेयर, पैच के साथ लोड करके देंगे, वाला ऑफ़र तो हम सबने लैपटॉप खरीदते समय भुनाया है. इन दोनों भाइयों ने इन सॉफ़्टवेयर लोडिंग वाली फ्लॉपी में भी ये वायरस डाला, ताकि लोग इनके पास पहुंचें. अब लाहौर के रेलवे स्टेशन के पास बने बाज़ार में तमाम अमेरिकन हिप्पी और छात्र घूमने आए. जो सॉफ़्टवेयर उनके यहां कई सौ डॉलर के थे. वे सब यहां कुछ रुपए में थोक के भाव मिल रहे थे.
कंप्यूटर की दुनिया में भी एचआईवी वाली घटना हुई और एक दिन बासित फ़ारुख अल्वी के पास मायामी से कॉल आया कि हमारे कंप्य़ूटर में वायरस है और इसे ठीक करने के लिए आपका नंबर दिखा रहा है. पाकिस्तान से अमेरिका पहुंचे ब्रेन ने खूब हंगामा मचाया. उस ज़माने में इंटरनेट और सोशल मीडिया था नहीं, तो खबर तुरंत फैली नहीं, लेकिन ब्रेन ने बता दिया कि हम तीसरी दुनिया के लोग नाहक बदनाम हैं. सस्ता और मुफ़्त सॉफ़्टवेयर हर कोई इस्तेमाल करता है.
बिलियन डॉलर इंडस्ट्री
ब्रेन की खबरों ने दुनिया भर में लोगों को वायरस से परिचित कराया. मैकएफ़ी एंटीवायरस के संस्थापक जॉन मैकएफ़ी ने बीबीसी को बताया था कि ब्रेन से पहले किसी ने भी कंप्यूटर वायरस का नाम नहीं सुना था. इसके बाद कंप्यूटर वायरस और एंटीवायरस बनाकर पैसा कमाना एक पूरा उद्योग बन गया. आज की तारीख में तमाम कंपनियां सिर्फ़ सिक्योरिटी पर ही काम करती हैं और इसकी नींव लाहौर के इन दो भाइयों के सात केबी के प्रोग्राम पर रखी है.
हालांकि, इसका बहुत बड़ा फ़ायदा पाकिस्तान नहीं उठा पाया. ब्रेन टेलिकॉम आज भी पाकिस्तान में लाहौर में उसी बिल्डिंग में काम करता है. न पाकिस्तान ने अपने अल्लाह, आर्मी, अमेरिका में सॉफ़्टवेयर का महत्व समझा, न अमेरिका की सिलिकॉन वैली ने वहां के अशांति भरे माहौल में जाने की हिम्मत की.
हां, पाकिस्तान के ये दोनों भाई अपने ब्रेन के चलते टेक्नॉलजी की दुनिया में अमर हो गए. वैसे टेक्नॉलजी की दुनिया में एक और स्कैम हुआ था, जिसके चक्कर में दुनिया उलझ कर रह गई थी. इसका नाम था वायटूके (Y2k), जिसमें लोगों को लगा था कि नई सदी में जाते ही दुनिया भर के कंप्यूटर काम करना बंद कर देंगे. इस पूरे स्कैम पर किसी और दिन बात करेंगे. तब तक पाकिस्तान के नए वज़ीर-ए-आज़म को शुभकानाएं दीजिए.
Rani Sahu

Rani Sahu

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