सम्पादकीय

पाकिस्तान : संकट में घिरे शहबाज क्या इस्तीफा देंगे, फिर उठ रहे सियासी बवंडर से निपटने के विकल्प

Neha Dani
29 July 2022 1:39 AM GMT
पाकिस्तान : संकट में घिरे शहबाज क्या इस्तीफा देंगे, फिर उठ रहे सियासी बवंडर से निपटने के विकल्प
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जब सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के अनुसार पीटीआई ने पंजाब में अपनी नई सरकार बनाई है।

पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत पंजाब (Punjab) क्या गवर्नर शासन (Governor Rule) की तरफ बढ़ रहा है? इस बात के मजबूत संकेत हैं, क्योंकि गृहमंत्री राणा सनाउल्लाह (Home Minister Rana Sanaullah) ने चेतावनी दी है कि संघीय सरकार (Federal Government) पंजाब में गवर्नर शासन लागू करने पर विचार कर रही है। उन्होंने कहा कि 'गवर्नर शासन लगाने का मसौदा तैयार किया जा रहा है और मैंने व्यक्तिगत रूप से इस पर काम शुरू कर दिया है।' पिछली बार पंजाब में गवर्नर शासन फरवरी, 2009 में लगाया गया था, जब पूर्व राष्ट्रपति पीपीपी के आसिफ अली जरदारी (Asif Ali Zardari) ने दो महीने के लिए गवर्नर शासन लगाया था, लेकिन प्रांतीय विधानसभा को भंग नहीं किया था।




हालांकि मुझे नहीं लगता कि यह प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ (Prime Minister Shahbaz Sharif) के लिए आसान होगा। ऐसा लगता है कि गृहमंत्री ने बस पंजाब की नई सरकार (New Government) को धमकी दी है, क्योंकि पंजाब प्रांत (Punjab Province) की सरकार ने फैसला किया है कि राणा सनाउल्लाह को पंजाब में घुसने की अनुमति नहीं दी जाएगी। पंजाब ऐसा प्रांत है, जिस पर अभी विपक्ष (Opposition) का शासन है। गवर्नर शासन लागू करने के लिए राष्ट्रपति आरिफ अल्वी (President Arif Alvi) को एक अधिसूचना (Notification) जारी करनी होगी, जो कि पाकिस्तान तहरीक-ए इंसाफ (पीटीआई) पार्टी के प्रमुख इमरान खान (Imran Khan) के वफादार हैं और वह खासकर तब शहबाज शरीफ सरकार को उपकृत करने के लिए तैयार नहीं होंगे, जब सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के अनुसार पीटीआई ने पंजाब में अपनी नई सरकार बनाई है।


इसके अलावा, पंजाब में न तो कानून-व्यवस्था की स्थिति खराब हुई है और न ही कोई अन्य आपात स्थिति है, जिसके लिए गवर्नर शासन की आवश्यकता होगी। पाकिस्तान निश्चित रूप से आर्थिक अस्थिरता और टकराव के रास्ते पर है, जहां अर्थव्यवस्था हर रोज डूब रही है, और पाकिस्तानी रुपया लगभग 300 रुपये प्रति अमेरिकी डॉलर के बराबर हो गया है। पाकिस्तान के इतिहास में पाकिस्तानी रुपया इससे ज्यादा कमजोर कभी नहीं हुआ था। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ उस अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करने में असमर्थ रहे हैं, जो उन्हें इमरान खान से विरासत में मिली थी।

वह अब पूरी तरह से आईएमएफ से मिलने वाले राहतपैकेज पर निर्भर हैं, जिसे शरीफ द्वारा कुछ कठिन शर्तों पर सहमत होने के बाद भी अरबों डॉलर भेजने में कुछ सप्ताह लगेंगे। इसके अलावा कुछ अन्य मित्र देश और वित्तीय संस्थान भी हैं, जो पाकिस्तान को कर्ज देने के लिए तैयार हैं, लेकिन वे केवल तभी कर्ज देंगे, जब आईएमएफ का राहत पैकेज इस्लामाबाद पहुंच जाएगा। टकराव का यह रास्ता इस तथ्य की ओर इशारा करता है कि मुल्क का कोई भी संस्थान अपनी सीमाओं के भीतर रहकर कार्य करने के लिए तैयार नहीं है।

सत्ता प्रतिष्ठान, न्यायपालिका, नौकरशाही, सरकार और विपक्ष समेत हर कोई सत्ता के लिए संघर्ष कर रहा है। सेना अब भी 'लोकतंत्र' का मार्गदर्शन कर रही है और विभिन्न राजनीतिक दलों और राजनेताओं के प्रति अपना समर्थन बदलती रहती है। एक राजनीतिक विश्लेषक का कहना है कि 'यह सत्ता प्रतिष्ठान के लिए वर्ष 2016 से जारी उसके अपने दुस्साहस के नतीजों को भांपकर जागने का वक्त है, जिसने पाकिस्तान को इस संकट में डाल दिया है।' सुप्रीम कोर्ट भी अपने दायरे से बाहर जाकर काम कर रहा है।

हाल ही में सरकार पीटीआई के खिलाफ एक मामले में पूर्ण अदालत में सुनवाई चाहती थी, लेकिन प्रधान न्यायाधीश ने इनकार कर दिया और पीटीआई के पक्ष में फैसला सुनाया। पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) की वरिष्ठ नेता, मरियम नवाज शरीफ ने इस फैसले को 'न्यायिक तख्तापलट' बताया। मौजूदा राजनीतिक और आर्थिक संकट पिछले साल तब शुरू हुआ, जब पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान आईएसआई के महानिदेशक जनरल फैज हमीद को बनाए रखना चाहते थे।

यही जिद थी, जिसके कारण उन्हें सेना प्रमुख जनरल बाजवा से परेशानी होने लगी, जो पेशावर में कोर कमांडर के रूप में फैज हमीद को तैनात करना चाहते थे। बाजवा ने राजनीतिक दलों को इमरान खान के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए राजी किया और शहबाज शरीफ को उपकृत किया, जो प्रधानमंत्री बनने के लिए बेताब थे। फिलहाल इस टकराव से निकलने का एक ही रास्ता बचा है। इमरान खान सहित सभी ने शहबाज शरीफ से सरकार छोड़ने और नए सिरे से आम चुनाव कराने तथा देश को आगे की राजनीतिक जोड़-तोड़ से बचाने की मांग की है।

पाकिस्तान की राजनीति में एक और महत्वपूर्ण कारक नवंबर में जनरल बाजवा के सेवानिवृत्त होने पर एक नए सेना प्रमुख की नियुक्ति है। हालांकि बाजवा के कार्यकाल को बढ़ाने की बात हो रही है, लेकिन मुझे लगता है कि जब उन्होंने सार्वजनिक रूप से कहा कि वह नवंबर में सेवानिवृत्त हो जाएंगे, तो उन पर विश्वास करना चाहिए। इसलिए पाकिस्तान के पास आज केवल एक ही रास्ता बचा है और वह है, शहबाज शरीफ का पद छोड़ना और नए आम चुनाव का आह्वान करना तथा देश को आगे की राजनीतिक साजिशों और जोड़-तोड़ से बचाना।

उपचुनाव में पीटीआई द्वारा पंजाब में जीत हासिल करने से शहबाज शरीफ और ज्यादा कमजोर हुए हैं। सिंध प्रांत में पीपीपी का शासन है। खैबर पख्तुनख्वा और पंजाब में पीटीआई का शासन है। अंग्रेजी दैनिक द डॉन लिखता है, अपने गठबंधन सहयोगियों के साथ इस्लामाबाद तक सीमित, पीएमएल (एन) नेतृत्व के पास मौजूदा विधानसभाओं के शेष कार्यकाल को बचाए रखने के लिए सीमित विकल्प हैं। सबकी नजरें पीएमएल (एन) प्रमुख नवाज शरीफ पर लगी हैं, जो लंदन में स्वनिर्वासन में हैं। उनके समर्थकों ने उन्हें पार्टी का नेतृत्व करने के लिए वापस लौटने का आग्रह किया है, क्योंकि पाकिस्तान में प्रमुख राजनेता इमरान खान से टक्कर लेने वाला कोई नहीं है।

सोर्स: अमर उजाला


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