सम्पादकीय

कश्मीर मामले को धार्मिक रंगत न दे पाक

Gulabi
1 Dec 2020 9:48 AM GMT
कश्मीर मामले को धार्मिक रंगत न दे पाक
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संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर मामले में बुरी तरह नाकाम रह चुके पाकिस्तान की अब OIC अंतिम उम्मीद है।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर मामले में बुरी तरह नाकाम रह चुके पाकिस्तान की अब आर्ग्रेनाइजेशन आफ इस्लामिक कोआपरेशन (ओआइसी) अंतिम उम्मीद है। पाकिस्तान ने नाइजर की राजधानी न्यामे में 27-28 नवंबर को ओआइसी के सदस्य देशों की बैठक में कश्मीर के मुद्दे को प्रस्ताव में शामिल करवाया है। भारत सरकार ने इस प्रस्ताव को सिरे से रद्द करते हुए इसे भारत के आंतरिक मामलों में दखल करार दिया है। दरअसल धर्म आधारित किसी संगठन (ओआइसी) में कश्मीर का मुद्दा उठाने के पीछे पाक की घिनौनी नीयत साफ दिख रही है कि पाकिस्तान मामले को धार्मिक रंगत देने की कोशिश कर रहा है। हालांकि तर्क यह है कि आजादी से पहले व बाद में किसी भी संगठन ने कश्मीर मुद्दे को धार्मिक मुद्दा करार नहीं दिया, जहां तक ओआइसी का संबंध है, इस मामले में पाक को सफलता मिलेगी? ये बेहद मुश्किल है।


भारत सरकार ने कश्मीर के रुतबे को प्रदेश से बदलकर केंद्रीय केन्द्र शांति प्रदेश बना दिया है। जम्मू कश्मीर और लद्दाख दो अलग-अलग केंद्रीय राज्य हैं। दोनों राज्यों में जनसंख्या में धार्मिक विभिन्नता है। कश्मीर के अलगाववादी संगठन भी धार्मिक आधार पर किसी भी तरह की कोई मांग नहीं कर रहे इसीलिए किसी धार्मिक मंच पर जाकर पाकिस्तान कश्मीर मामले को उठाकर समय की बर्बादी व अपनी फजीहत करवा रहा है। संयुक्त राष्ट्र के जनरल सचिव एंटोनियो गुटेरेस इस बारे में स्पष्ट कह चुके हैं कि कश्मीर भारत और पाकिस्तान का द्विपक्षीय मामला है और दोनों देशों को बातचीत से इसका समाधान निकालना चाहिए।

अमेरिका और रूस जैसे विश्व के ताकतवर देश कश्मीर में किसी भी तरह के दखल से इन्कार कर चुके हैं। दरअसल पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान देश की राजनीति में बुरी तरह कमजोर पड़ चुके हैं। उन पर सेना के दबाव में काम करने, भ्रष्टाचार पर पक्षपातपूर्ण कार्यवाही सहित कई आरोप लग चुके हैं। आंतरिक हालातों से देश की जनता का ध्यान भटकाने के लिए इमरान कश्मीर का मुद्दा उठाकर अपने विरोधियों की आवाज को दबाना चाहते हैं। यूं भी यह पाकिस्तान की आवाम के लिए निराशापूर्ण है कि देश को मंदी से निकालने की उम्मीद इमरान खान से की जा रही थी लेकिन इमरान खान भी पारम्परिक राजनीति के चक्कर में फंसकर केवल अपनी कुर्सी बचाने तक ही सीमित होकर रह गए हैं।


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