सम्पादकीय

'ठेके' पर चलता पाकिस्तान

Subhi
5 April 2022 3:54 AM GMT
ठेके पर चलता पाकिस्तान
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इमरान खान ने जिस तरह पूरी दुनिया में पहले से ही लावारिस पड़े पाकिस्तान को सिर्फ अपनी नाक ऊंची रखने के लिए दांव पर लगाते हुए अपने मुल्क के सभी संवैधानिक संस्थानों को ‘ सरकारी ठेकों’ में तब्दील करने का गुनाह किया है

आदित्य नारायण चोपड़ा: इमरान खान ने जिस तरह पूरी दुनिया में पहले से ही लावारिस पड़े पाकिस्तान को सिर्फ अपनी नाक ऊंची रखने के लिए दांव पर लगाते हुए अपने मुल्क के सभी संवैधानिक संस्थानों को ' सरकारी ठेकों' में तब्दील करने का गुनाह किया है उससे 22 करोड़ पाकिस्तानी उस मुकाम पर आकर खड़े हो गये हैं जहां से हर रास्ता बद-इन्तजामी के मुहाने पर जाकर खुलता है। क्या सितम बरपा हो रहा है इस्लामाबाद में कि इस देश के राष्ट्रपति जनाब आरिफ अल्वी भी अपनी संसद द्वारा किये गये गैर संवैधानिक फैसलों पर अपनी मुहर ही नहीं लगाते जा रहे बल्कि इनकी रोशनी में और आगे बढ़ते हुए अपने मुल्क की जम्हूरियत को अंधे कुएं में धकेलते जा रहे हैं। यह सनद रहनी चाहिए कि पाकिस्तान द्वारा आधा–अधूरा लोकतन्त्र अपनाये जाने के बाद इस देश की विपक्षी पार्टियां आज जम्हूरी रवायतों को जिन्दा रखने की पुरजोर कोशिशें कर रही हैं और इस जद्दोजहद मे वे अपने मुल्क के सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटा रही हैं। भारत का इस पूरे मामले से सिर्फ इतना ही लेना है कि पड़ोसी होने की वजह से इस मुल्क का कानून का राज हो और जिम्मेदार और जवाबदेह हुकूमत हो क्योंकि पाकिस्तान एक परमाणु शक्ति सम्पन्न देश है । पूरी दुनिया जानती है कि 1947 तक पाकिस्तान भारत का ही हिस्सा था इसलिए इसकी सरहदों में हिन्दोस्तानी कौमियत के वे निशान आज भी बाकी हैं जिनसे इसमें रहने वाले लोगों का हमेशा गहरा ताल्लुक रहेगा। हकीकत यह है कि वजीरेआजम इमरान खान ने अपनी हरकतों से पाकिस्तान में जिस अफरा–तफरी का माहौल सारे संवैधानिक संस्थानों व कानूनी इदारों को तोड़ कर बनाया है उससे आम पाकिस्तानियों की जिन्दगी और दूभर हो सकती है और पहले से ही कर्जों पर चल रहा पाकिस्तान और ज्यादा भुखमरी के कगार पर पहुंच सकता है। इमरान खान के पिछले साढे़ तीन साल के शासन में पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पूरी तरह चरमरा चुकी है और इसका पूरा निजाम बुरी तरह भ्रष्टाचार में डूब चुका है लेकिन इन हालात से निकलने के लिए पाकिस्तान को सबसे पहले यह साबित करना होगा कि वह संविधान से चलने वाला देश है जिसका ढिंढोरा इमरान खान खुद पीटते रहे हैं। मगर वह मुल्क किस तरह लोकतन्त्र या कानून की दुहाई दे सकता है जिसकी संसद में ही संवैधानिक प्रक्रिया का पालन न किया जाता हो और संसदीय नियमों को उसी प्रकार धकेला जाता हो जिस प्रकार कोई ग्वाला मवेशियों को धकेलता है। संसद में बैठे हर सदस्य का चुनाव आम जनता करती है और वह जिस सदन में जाकर बैठता है वह बाकायदा नियमों से चलता है। मगर खुदा खैर करे इमरान खान की कि उन्होंने यह समझ लिया कि विपक्ष में बैठे सांसदों को यह हक भी नहीं होता कि वे सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ला सकें। जम्हूरी निजाम नम्बरों का खेल होता है। जिस पार्टी या गठबन्धन के पास भी सदन में बहुमत होता है, सरकार बनाने का हक लोकतन्त्र में उसे ही मिलता है। इसका यह नियम भी होता है कि सरकार के हुकूमत में रहते भी अगर सदन के भीतर सत्तारूढ़ पार्टी का बहुमत खत्म हो जाये तो विपक्ष को बाजाब्ता तौर पर उसके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का संवैधानिक अधिकार होता है। मगर अपना बहुमत खत्म होता देखकर इमरान खान ने विपक्ष के खिलाफ ही साजिश रच दी और पूरे विपक्ष को गद्दार बता दिया तथा उसके तार सीधे अमेरिका से जोड़ दिये। इमरान खान ने वाशिंगटन स्थित अपने देश के सफीर के एक खत को आधार बनाते हुए यह ऐलान कर दिया कि अमेरिकी विदेश विभाग के अधिकारियों ने उनके सफीर को लिख कर यह ताईद की कि अगर इमरान खान को उसके औहदे से न हटाया गया तो पाकिस्तान को उसके बुरे नतीजे भुगतने होंगे और इसके तार अपने मुल्क में विपक्षी पार्टियों के बीच हो रही एकता और उनके द्वारा अपनी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव रखे जाने के फैसले जोड़ दिये। कोई भी आदमी जिसे सियासत की जरा भी अक्ल हो, यह अन्दाजा लगा सकता है कि ऐसे इल्जाम तभी कोई प्रधानमन्त्री लगाता है जब उसे यह इलम हो जाये कि उसके साथ संसद के सदस्यों का बहुमत नहीं रहा है और उसकी सत्ता जाने वाली है। वरना अमेरिका तो वह मुल्क है जिसके कन्धे पर बैठ कर पाकिस्तान अपने वजूद से लेकर अब तक उछल–कूद मचाता रहा है। बेशक आज पाकिस्तान चीन द्वारा शुरू की गई सी- पाक परियोजना पर इतरा रहा है मगर अमेरिका से मिली इमदाद को वह किस तरह नकार सकता है। मगर आज सवाल पाकिस्तान में संविधान की रक्षा करने का है क्योंकि इस्लामी मुल्क होने के बावजूद इसकी अवाम खुले में सांस लेना चाहती है। खुशी की बात यह है कि इस देश के सर्वोच्च न्यायालय ने पूरे मामले का संज्ञान लिया है और संसद में उड़ाई गई संविधान की धज्जियों को गंभीरता से लिया है। बेशक यहां के राष्ट्रपति महोदय ने संसद को भंग करके आगामी तीन महीने के भीतर चुनाव कराने का आदेश दे दिया है और इमरान खान को भी प्रधानन्त्री पद से मुक्त करके चुनावों के लिए अगला कार्यावाहक प्रधानमन्त्री नियुक्त होने तक काम चलाने के लिए कह दिया है मगर यह सारा काम पाकिस्तानी संसद में रविवार को किये गये उस गैरसंवैधानिक फैसले पर टिका हुआ है जो उपाध्यक्ष कासिम खां सूरी ने किया था और विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव को इकतरफा अस्वीकार करते हुए इसे मुल्क के खिलाफ गद्दारी करने के मंसूबे से जोड़ दिया था। यहां का सर्वोच्च न्यायालय इसी मुद्दे पर विचार कर रहा है।

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