सम्पादकीय

पाकिस्तान : इमरान को एक और झटका देने की तैयारी, नेशनल असेंबली ये इस्तीफा और राजनीतिक अपरिपक्वता के संकेत

Neha Dani
15 April 2022 2:37 AM GMT
पाकिस्तान : इमरान को एक और झटका देने की तैयारी, नेशनल असेंबली ये इस्तीफा और राजनीतिक अपरिपक्वता के संकेत
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हो सकता है कि आने वाले दिनों में विपक्षी बेंचों पर कुछ और चेहरे देखने को मिलें।

जब पूर्व प्रधानमंत्री और प्रतिष्ठित क्रिकेट खिलाड़ी इमरान खान को अविश्वास प्रस्ताव के जरिये शर्मनाक तरीके से पद से हटाया गया, तब एक अखबार ने लोकप्रिय शीर्षक लगाया था-'बैक टू द पवेलियन'। पाकिस्तान के संसदीय इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ कि किसी प्रधानमंत्री को अविश्वास प्रस्ताव के जरिये हटाया गया। सदन के नेता को पद से हटाने के पिछले प्रयास हमेशा सफल रहे हैं और इस बार प्रधानमंत्री को या तो सैन्य प्रतिष्ठान द्वारा या न्यायपालिका द्वारा बाहर का रास्ता दिखाया गया है।

लेकिन इमरान खान ने कभी भी संसदीय प्रक्रिया में विश्वास नहीं किया, शायद ही कभी उन्होंने संसदीय सत्रों में भाग लिया हो। उन्होंने न कभी सदन में बहस छेड़ी और न ही महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा की। यहां तक कि उस रविवार की रात को भी जब समय समाप्त हो रहा था, इमरान खान ने सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवहेलना करते हुए अविश्वास प्रस्ताव पर मतदान करवाने की अनुमति देने से इनकार कर दिया। अंत में जब सेना ने हस्तक्षेप किया, तब उन्होंने मतदान कराने की अनुमति दी।
प्रधानमंत्री के रूप में अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए इमरान खान ने सेना प्रमुख जनरल कमर जावेद बाजवा को हटाने की कोशिश की थी, लेकिन विफल रहे। इसके बाद उन्होंने जनरल बाजवा के खिलाफ ट्विटर, फेसबुक और व्हाट्सएप पर ऑनलाइन अभियान शुरू किया और सोमवार रात को पूरे पाकिस्तान में सेना विरोधी प्रदर्शन हुए। संभवत: पहली बार पाकिस्तानी सैन्य मुख्यालय में फॉर्मेशन कमांडरों के सम्मेलन में, जो एक छमाही कार्यक्रम है, सेना-विरोधी मुद्दा उठाया गया था।
सैन्य मुख्यालय ने इमरान खान को संदेश भेजा था कि सेना पूरी तरह से संविधान का पालन करेगी और वह हमेशा मुल्क के साथ खड़ी रही है। पूर्व प्रधानमंत्री को सेना ने जोरदार संदेश भेजा कि 'फोरम ने पाकिस्तानी सेना को बदनाम करने और सैन्य प्रतिष्ठान तथा समाज के बीच दरार पैदा करने के लिए कुछ वर्गों द्वारा हाल ही में चलाए जा रहे प्रचार अभियान का संज्ञान लिया है। राजनीतिक विश्लेषकों ने इमरान खान का मजाक उड़ाया, जब उन्होंने कहा कि यह बाइडन प्रशासन के नेतृत्व में उन्हें पद से हटाने की एक विदेशी साजिश थी।
लेकिन 'उनकी तानाशाही मानसिकता, खुद को सही समझने की सोच और राज्य प्रतिष्ठान की संरचना की कम समझ' के कारण किसी ने भी उनके इस आरोप पर यकीन नहीं किया। निर्वाचित सरकारों के साथ पाकिस्तान में लोकतांत्रिक शासन बहुत कम समय के लिए रहा है, लेकिन इस हफ्ते पहली बार विपक्षी दलों के सभी सदस्य सत्ता पक्ष की बेंच पर चले गए। अब विपक्षी दल की बेंच पर कोई नहीं बैठता, क्योंकि इमरान खान और उनकी पार्टी के सभी सदस्यों ने निचले सदन से इस्तीफा दे दिया है।
एक राजनीतिक विश्लेषक का कहना है कि 'पाकिस्तान तहरीक-ए इंसाफ पार्टी का नेशनल असेंबली से इस्तीफा देने का फैसला संसदीय क्षेत्र को अपने विरोधियों के लिए खुला छोड़ देना है, जिससे भविष्य में पार्टी में विभाजन भी हो सकता है। संसद से अनुपस्थिति पार्टी के चुनावी आधार पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है, खासकर तब, जब आम चुनावों में कुछ ही महीने बचे हैं।' लेकिन संसद को जो नुकसान होगा, वह यह है कि जब सरकार कानून पारित करना चाहेगी, तब उसे विपक्षी सदस्यों के विरोध का सामना नहीं करना पड़ेगा।
वैसे में, पारित होने वाला कानून 'राजनीतिक वैधता' खोने के लिए बाध्य है। इमरान खान ने अपने स्पीकर और डिप्टी स्पीकर को भी इस्तीफा देने के लिए कहा, जो इससे पहले कभी नहीं हुआ था। अब नई सरकार निचले सदन में अध्यक्ष पद पर अपने उम्मीदवार को लाने के लिए स्वतंत्र है। अभी सत्ता पक्ष की बेंच पर बैठने वाले कई सांसद पीएमएल (एन) और पीपीपी की सरकारों के दौरान भी यहां बैठे थे। पर यह पहली बार है, जब पाकिस्तान की दो सबसे बड़ी पार्टियां एक साथ अन्य सहयोगियों के साथ बैठी हैं।
बिलावल भुट्टो जरदारी प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के साथ पहली पंक्ति में बैठे और दर्शक दीर्घा में बैठी उनकी बहन आसिफा भुट्टो उन्हें हाथ हिला रही थी। बिलावल अपनी मां और उनके साथ बैठे अपने पिता के बारे में सोच रहे होंगे, क्योंकि भुट्टो परिवार की दो पीढ़ियां यहां प्रधानमंत्री के रूप में बैठ चुकी हैं। सबसे पहले बिलावल के नाना जुल्फीकार अली भुट्टो और फिर उनकी मां बेनजीर भुट्टो, जो दो बार सदन की नेता चुनी गईं। क्या किस्मत बिलावल को तीसरी पीढ़ी के प्रधानमंत्री के रूप में यहां लौटने का मौका देगी?
इसका पता तो अगले चुनाव में चलेगा। इमरान खान ने सीनेट की सीटों से अभी इस्तीफा नहीं दिया है, जहां उनका अपना अध्यक्ष है। पर नई सरकार ने अब सीनेट अध्यक्ष के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का फैसला किया है और उम्मीद है कि उसके पास पर्याप्त वोट होंगे। सीनेट का अध्यक्ष होने का लाभ यह है कि राष्ट्रपति की अनुपस्थिति में संविधान के अनुसार, सीनेट अध्यक्ष पूर्ण शक्तियों के साथ कार्यवाहक राष्ट्रपति बन जाता है।
इमरान खान के सीनेट से इस्तीफा न देने का एक कारण यह बताया जा रहा है कि अगर पीटीआई सीनेट छोड़ देती है, तो अगले मध्यावधि चुनाव तक उसका पूरी तरह सफाया हो जाएगा। अंग्रेजी अखबार डॉन ने इमरान खान की आलोचना करते हुए लिखा है कि नेशनल असेंबली से इस्तीफा देना राजनीतिक अपरिपक्वता का संकेत है, जो अब नई सरकार को अपनी मर्जी के अनुसार काम करने का मौका देगा और यह ठीक नहीं है।
अखबार ने लिखा कि 'खान को यह सुनिश्चित करना होगा कि जो लोग उन्हें और उनकी पार्टी को सत्ता में लेकर आए, उनकी आवाज और उनके हितों को नेशनल असेंबली में सुना और सुरक्षित रखा जाए, जबकि नई सरकार अपने विधायी एजेंडे को निष्पादित करेगी।' अभी सिंध से नेशनल असेंबली में तीन सदस्य हैं, जो खान के गठबंधन सहयोगी थे, लेकिन उन्होंने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया। इसके अलावा दो सदस्य पंजाब से भी हैं। अविश्वास प्रस्ताव से पहले पीटीआई के लगभग 23 सदस्य दलबदल कर सत्ता पक्ष से बाहर चले गए थे। हो सकता है कि आने वाले दिनों में विपक्षी बेंचों पर कुछ और चेहरे देखने को मिलें।

सोर्स: अमर उजाला

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