सम्पादकीय

Pakistan Political Crisis: अनिश्चित दिख रहा पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान का राजनीतिक भविष्य

Gulabi Jagat
30 March 2022 6:33 AM GMT
Pakistan Political Crisis: अनिश्चित दिख रहा पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान का राजनीतिक भविष्य
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पाकिस्तान में लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकारों का पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं होता
अवधेश माहेश्वरी। Pakistan Political Crisis पाकिस्तान में लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकारों का पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं होता। क्रिकेटर से नेता बने इमरान खान की सरकार भी साढ़े तीन साल बाद डगमगाने लगी है। प्रधानमंत्री इमरान खान पाकिस्तान की सेना को खटकने लगे हैं। अब वह अपनी सत्ता बचाने लिए सारे दांव चल रहे हैं। सेना की खुशामद तो, समर्थक दलों से सौदेबाजी कर रहे हैं। जनता को प्रभावित करने के लिए धर्म का भी सहारा ले रहे हैं।
विपक्ष को अपशब्द बोल रहे हैं। विपक्षी नेताओं को धमका रहे हैं। उनको जूता पालिश करने वाला और चूहा बता रहे हैं। सेना को भी परोक्ष तरीके से साधने की कोशिश कर रहे हैं। फिर भी उन्हें कहीं से उम्मीद की किरण नहीं दिख रही है। गत दिनों इमरान खान ने इस्लामाबाद में देश और लोकतंत्र को बचाने के नाम पर बड़ी रैली बुलाने की भी चाल चली। जलसा तो बड़ा था, लेकिन इससे विपक्ष पर असर नहीं पड़ा। उल्टे वह पूरी ताकत से उनकी सरकार को गिराने में लगा है।
दम दिखा रहा विपक्ष : पाकिस्तान का इतिहास रहा है कि वहां सैन्य शासकों के अलावा कोई भी सरकार चौथे साल में लड़खड़ा जाती है। कुछ लोग इस पर कटाक्ष करते हैं कि वहां सरकार के तीन साल पूरे होने के बाद पांच पर गिनती आ जानी चाहिए। इमरान खान सत्ता में तीन साल पूरे कर चुके हैं। उनकी सरकार भी अब अलग हालत में नहीं है। वह सभी मोर्चो पर असफल साबित हुए हैं। पाकिस्तान की जनता में असंतोष है। इसे देखते हुए विपक्ष उनके खिलाफ सड़कों के साथ संसद में भी दम दिखाने की तैयारी में है। वहां की नेशनल असेंबली में अविश्वास प्रस्ताव पर मत विभाजन का दिन सिर पर है। स्थिति बिगड़ती देखकर इमरान की पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआइ) और सहयोगी दलों के 20 से ज्यादा सांसद विपक्षी दलों के साथ चले गए हैं। उनके कुछ मंत्री भी कहीं गायब हो गए हैं। ऐसे में 342 सदस्यों वाली नेशनल असेंबली में इमरान खान की सरकार अल्पमत में दिख रही है।
इमरान को अब तक 176 सदस्यों का समर्थन था, जिसमें से 155 उनकी पार्टी पीटीआइ के हैं। मुख्य सहयोगियों में मुत्तेहाद कौमी मूवमेंट (पाकिस्तान) के सात, पाकिस्तान मुस्लिम लीग (क्यू) के पांच, बलूचिस्तान अवामी पार्टी के पांच और ग्रांड डेमोक्रेटिक अलायंस के तीन सांसद हैं। मुत्तेहाद कौमी मूवमेंट (पाकिस्तान) और बलूिचस्तान अवामी पार्टी विपक्षी खेमे में आ चुकी हैं। एक अन्य सहयोगी दल जम्हूरी वतन पार्टी भी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) से मिल गई है।
काम न आए दांव : हालांकि शुरू में अपनी सरकार बचाने के लिए इमरान खान अपनी पार्टी के असंतुष्ट सांसदों की सदस्यता सुप्रीम कोर्ट से रद कराना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने न्यायालय का दरवाजा खटखटाया, परंतु वहां कोई राहत नहीं मिली। मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि अभी अपराध (दलबदल) हुआ ही नहीं है तो किसी को अपराधी कैसे ठहरा सकते हैं। इसीलिए अब वह न्यायपालिका पर नवाज शरीफ के हाथों में खेलने का आरोप लगा रहे हैं। इससे अदालत नाराज है। इसके अलावा इमरान खान पाकिस्तान मुस्लिम लीग (क्यू) के नेता परवेज इलाही को भी मनाने में लगे थे। यह कठिन, लेकिन इमरान के लिए सबसे मुफीद था। उन्हें इसके लिए अपनी ही पार्टी के सीएम उस्मान बजदार को मनाना था। वह प्रारंभ में ना-नुकुर कर रहे थे, लेकिन इमरान खान से हुई लंबी बातचीत के बाद इस्तीफे को राजी हो गए।
पंजाब के मुख्यमंत्री पद के लिए अब इलाही का रास्ता खुल गया है, परंतु इससे भी इमरान खान की मुश्किल खत्म नहीं हुई है। बहुमत का आंकड़ा अभी भी उनसे दूर है। इस सौदे के बाद दूसरे दलों में भी यह संदेश चला गया है कि वह उनसे बड़े लाभ ले सकते हैं। ऐसे में इमरान खान की सत्ता प्रबंधकों से सौदेबाजी का दौर जारी है, परंतु विपक्ष भी सहयोगी दलों के लिए कई आकर्षक आफर की पेशकश कर रहा है। सहयोगी दलों में कुछ को यह ज्यादा बेहतर लग रही है, क्योंकि उन्हें इमरान खान का भविष्य लंबा नजर नहीं आ रहा। इलाही के पंजाब का मुख्यमंत्री बनने से भविष्य में इमरान खान को ही नुकसान होगा। पंजाब का मुख्यमंत्री पाकिस्तान में दूसरा सबसे ताकतवर व्यक्ति माना जाता है। इलाही निश्चित रूप से सत्ता का प्रयोग पंजाब में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए करेंगे, जो पीटीआइ की जमीन को ही कब्जाएंगे।
इसके अलावा इमरान देश की सबसे शक्तिशाली सेना के प्रमुख कमर बाजवा को भी मनाने में लगे हैं। उन्हें तटस्थ न रहने के लिए कह रहे हैं। बाजवा अभी तक इमरान खान की खुफिया एजेंसी इंटरस्टेट इंटेलीजेंट सर्विस (आइएसआइ) के महानिदेशक जनरल फैज हमीद के कार्यकाल को बढ़ाने की कोशिश को भुला नहीं पाए हैं। इससे ही दोनों के रिश्तों में खटास पैदा हुई थी। कहा जाता है कि इसी बात से खफा होकर सेना ने इमरान खान से अपना समर्थन खींच लिया। इसके बाद ही विपक्ष एकजुट होकर उनपर हमलावर हो गया।
भ्रष्टाचार के दाग : इमरान खान अपने चुनावी वादे भी पूरे नहीं कर सके हैं। चुनाव में उन्होंने भ्रष्टाचार मिटाने का नारा दिया था, लेकिन ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट कहती है कि पाकिस्तान में यह और बढ़ गया है। अब पाक 180 देशों की सूची में 140वें स्थान पर है, जो पहले से बहुत नीचे है। विपक्ष का कहना है कि इमरान स्वयं भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। उनकी पार्टी पर विदेश से दो करोड़ डालर लेने का आरोप लगा है। कहा जा रहा है कि ये लेन-देन 14 देशों की बैंकों से हुए हैं। विदेशी दौरे के समय उपहार में मिली घड़ी भी 10 लाख डालर में इमरान खान बेच चुके हैं। इसके चलते ईमानदारी की बार-बार बात कर रहे इमरान खान मुश्किल में फंस गए हैं।
यदि वह सत्ता से बेदखल हो जाते हैं तो उनके पास आगे क्या विकल्प होंगे? पहला, इमरान खान की जगह पीटीआइ के किसी दूसरे नेता के नाम पर सहयोगी दलों और पार्टी के अंसतुष्ट नेताओं में बात हो सकती है, परंतु इसकी संभावना न के बराबर है। वैसे भी इमरान खान नहीं चाहेंगे कि उनकी जगह पीटीआइमें कोई और चेहरा उभरकर सामने आए। ऐसे में विपक्ष में नवाज शरीफ की मुस्लिम लीग (एन) के लिए सरकार बनाने का विकल्प हो सकता है। हालांकि वह बचे हुए डेढ़ साल सत्ता में नहीं रहना चाहेगी, क्योंकि पाकिस्तान में हालात ऐसे नहीं हैं कि बैसाखियों के सहारे टिकी कोई सरकार जनता की उम्मीदों को पूरा कर सके। इस सरकार का मुखिया भी कौन होगा। इसके नेता नवाज शरीफ लंदन में हैं। उनकी बेटी मरियम चचेरे भाई के साथ मिलकर लड़ रही हैं, परंतु वह सबकी पसंद नहीं हैं। ऐसे में शाहबाज शरीफ को मौका मिल सकता है। वह सत्ता में आने के बाद मध्यावधि चुनाव का दांव खेल सकते हैं। हालांकि पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी ऐसा करने की इच्छुक नहीं है। उसकी रणनीति इमरान को जल्द कुर्सी से हटाने की ही है। पाकिस्तान में लोकतंत्र दिखता है, पर असल में है नहीं। सही मायने में वहां सेना का ही शासन है। लोकतंत्र के नाम पर सेना ही वहां चुनी हुई सरकार को अपनी तरह चलाती है और जब वह उसकी बात अनसुनी करती है तो अपने हितों पर आंच देख उसे हटा देती है।
इमरान खान अगस्त 2018 में पाकिस्तान की सत्ता में आए थे, लेकिन वहां उनकी सरकार कभी बहुमत की सरकार के रूप में स्वीकार नहीं हुई। कहा जाता है कि पाकिस्तान की सेना ने बड़े पैमाने पर चुनाव में धांधली कराकर उन्हें जीत दिलाई थी। इसके खिलाफ विपक्षी दलों ने आवाज भी उठाई थी, लेकिन सेना ने अपने अंदाज में उनके विरोध को दबा दिया। सत्ता में आने के बाद इमरान खान कोई ऐसा करिश्मा नहीं कर सके, जो देश को आंतरिक और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मजबूती प्रदान करता। उनकी सरकार पाकिस्तान के लिए आर्थिक कुप्रबंधन वाली सिद्ध हुई है। देश में मुद्रास्फीति दो अंकों में पहुंचने से लोगों के लिए दैनिक प्रयोग की वस्तुएं खरीदने तक में कठिनाई हो रही है। जिहादी आतंकियों को पालने-पोसने की नीति के चलते चीन के अलावा कोई देश पाकिस्तान के साथ नहीं रह गया है। उसके विदेशी मुद्रा भंडार की हालत खराब है।
अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष से छह अरब डालर के ऋण के लिए बातचीत चल रही है। पाकिस्तान जुलाई से शुरू हुए वित्तीय वर्ष के पहले आठ महीने में 11.90 अरब डालर का ऋण ले चुका है। पाकिस्तान के बजट में लगाए गए ऋण अनुमान का यह 87 प्रतिशत है, जबकि अभी वित्तीय वर्ष के चार माह बचे हुए हैं। सऊदी अरब से उसे उधार पर पेट्रोल लेना पड़ रहा है। वहीं संयुक्त अरब अमीरात की कृपा के लिए भी इमरान खान एक बार वहां नंगे पैर जा चुके हैं। अच्छा होता कि इमरान खान इन दोनों अरब देशों से संबंध सुधारते, लेकिन बजाय इसके उन्होंने पाकिस्तान की स्थापित विदेश नीति के विपरीत कदम उठाकर दोनों देशों से रिश्ते खराब कर लिए। इमरान खान मलेशिया के पूर्व प्रधानमंत्री मोहम्मद बिन महातिर के इस्लामिक राष्ट्रों के सिरमौर बनने के प्रयासों में साथ दिया। यह दोनों अरब देशों को रास नहीं आया।
इमरान खान की सरकार जाती है तो पाकिस्तान के भारत से कैसे रिश्ते होंगे? यह अहम सवाल है। हालांकि इसमें आगे किसी गिरावट के हालात नहीं होंगे। इमरान खान अपनी रैलियों में भारत पर प्रहार करते रहे हैं। वह एक भारतीय पत्रकार की किताब का हवाला देकर नवाज शरीफ और नरेन्द्र मोदी की एक पड़ोसी देश में चोरी-छिपे बातचीत की बात कहते हैं। नवाज शरीफ का धन भारत में होने की बात भी कहते रहे हैं। ऐसे में उनके मन में भारत का कांटा है। उनके शासनकाल में भारत ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटा दिया। इसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर ठीक से मुद्दा न बना पाने की उन्हें टीस है। अफगानिस्तान में तालिबान भी अब पाकिस्तान सरकार के इशारे पर भारत से संबंधों को संचालित नहीं कर रहा। यह भी इमरान खान को खटक रहा है। उनके कार्यकाल में दोनों के बीच रिश्ते खराब ही रहे हैं। इसमें सुधार के लिए अब दोनों देशों के बीच पिछले दरवाजे से बातचीत होने की बात कही जा रही है। आतंकवाद की घटनाओं में कमी के चलते भारत सतर्कता के साथ आगे बढ़ रहा है।
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