सम्पादकीय

Pakistan Political Crisis : इमरान खान ने बबूल के बीज बोए तो अब उनकी राह में कांटे ही कांटे हैं

Gulabi Jagat
25 March 2022 8:27 AM GMT
Pakistan Political Crisis : इमरान खान ने बबूल के बीज बोए तो अब उनकी राह में कांटे ही कांटे हैं
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पाकिस्तान की मौजूदा स्थिति की तुलना गृहयुद्ध के हालातों से की जा सकती है
प्रशांत सक्सेना।
पाकिस्तान (Pakistan) की मौजूदा स्थिति की तुलना गृहयुद्ध (Civil War) के हालातों से की जा सकती है, जहां सेना (जिसे दबे अंदाज में इस्टैब्लिशमेंट के तौर पर देखा जाता है) उन विकल्पों पर ध्यान दे रही है जिससे किसी खतरनाक परिणाम से बचा जा सके. 11 पार्टियों वाले विपक्षी समूह और सत्तारूढ़ पीटीआई की सरकार के बीच चल रही बेलगाम लड़ाई इस बात का सबूत है. 342 सीटों वाली नेशनल असेंबली में विपक्ष को अपने अविश्वास प्रस्ताव को सफल बनाने के लिए 172 सांसदों के समर्थन की जरूरत है. इमरान खान (Imran Khan) को सत्ता से बेदखल करने के बाद वहां का विपक्ष आकस्मिक चुनाव की तैयारी कर रहा है और बिखरी राजनीति की वजह से वहां हालात के विस्फोटक होने का खतरा है.
पाकिस्तान की सियासी पार्टियों ने देश के संवैधानिक संस्थाओं को मजबूत करने के लिए कोई खास कोशिशें नहीं की हैं और केवल देश के "आकर्षक भू-रणनीतिक लोकेशन" पर ही ध्यान दिया है. इसकी वजह से उसके कई नेताओं, खास तौर पर सेना, का मानना है कि मध्य एशिया का द्वार होने के कारण पाकिस्तान की अहमियत बनी रहेगी. मौजूदा हालात में, देश के चुनाव आयोग पर नजर डालें. वहां के समाचार पत्र Dawn की रिपोर्ट के अनुसार, मंगलवार को पोल पैनल ने प्रधानमंत्री इमरान खान को खैबर पख्तूनख्वा के 18 जिलों में स्थानीय निकाय चुनाव के दूसरे चरण के लिए आचार संहिता के उल्लंघन के आरोपों पर अपनी स्थिति स्पष्ट करने के लिए दूसरी बार नोटिस दिया है. यह नोटिस प्रधानमंत्री के सचिव के माध्यम से मलकंद के डिस्ट्रिक्ट मॉनिटरिंग ऑफिसर जियाउर रहमान ने जारी किया.
सेना ने ही इमरान को सत्ता में काबिज किया था
प्रधानमंत्री को पहली बार 20 मार्च को नोटिस जारी किया गया था, ये आरोप लगे थे कि इमरान ने मलकंद जिले चुनावी रैली के दौरान आचार संहिता का उल्लंघन किया था, यहां 31 मार्च को चुनाव होने वाले हैं. इस नोटिस में चुनाव आयोग ने अपना पक्ष रखने के लिए प्रधानमंत्री को या उनके प्रतिनिधि को 22 मार्च को उपस्थित होने के लिए कहा था. दूसरे नोटिस में प्रधानमंत्री से कहा गया है कि वे 24 मार्च को चुनाव अधिकारियों के समक्ष उपस्थित हों. Dawn के मुताबिक, इस नोटिस में कहा गया है कि "दूसरी बार भी उपस्थित होने में असफल रहने पर, यह माना जाएगा कि आपके पास अपने बचाव में कहने के लिए कुछ नहीं है और ऐसे में संबंधित नियम-कानूनों के मुताबिक आपकी अनुपस्थिति में फैसला दे दिया जाएगा."
इमरान खान विपक्ष के खिलाफ जोरदार हमले कर रहे हैं. और इस बार उन्होंने उस सेना को भी नहीं बख्शा, जिसके बारे में माना जाता है कि उसने ही उन्हें साढ़े तीन साल पहले सत्ता में बिठाया था. सेना की तटस्थता पर सवाल उठाते हुए इमरान ने अपनी एक रैलियों में कहा था कि केवल "जानवर" ही तटस्थ रहते हैं. इसके बाद, पिछले रविवार को उन्होंने भारतीय व्यवस्था की तारीफ की. एक जनसभा के दौरान इमरान ने कहा, "मैं भारत को सलाम करता हूं. भारत की विदेश नीति पाकिस्तान से बेहतर है, वे अपने लोगों के लिए काम करते हैं, भारतीय सेना भ्रष्ट नहीं है और वहां की सेना कभी भी चुनी हुई सरकार में दखल नहीं देती." हालांकि, उन्होंने पाकिस्तानी सेना का जिक्र नहीं किया.
पनामा पेपर केस के खुलासे पर जब पाकिस्तान के सुप्रीट कोर्ट ने नवाज शरीफ को सत्ता से बेदखल किया था तब सेना ने ही इमरान को सत्ता में काबिज किया था. 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने नवाज को प्रधानमंत्री के पद के लिए अयोग्य ठहराया था और उन्हें दस साल की सजा भी सुनाई गई थी. 2018 की गर्मियों में इमरान खान ने चुनावों में जीत हासिल की. पांच विभिन्न सीटों से उन्होंने 5,45,000 वोटों से जीत हासिल की थी, जिस का इतना बड़ा अंतर पहले कभी नहीं देखा गया था. 2022 आते-आते पंजाब के मंडी बहाउद्दीन की एक रैली में उन्होंने दुख जताते हुए यह कहा कि पूर्व पीएम नवाज शरीफ को विदेश जाने की अनुमति देना उनकी "सबसे बड़ी गलती" थी.
पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था के पतन से वहां नागरिक संघर्ष की स्थिति बन चुकी है
पाकिस्तान का राजनीतिक हाल सैन्य तानाशाही पर टिका होता है. पहले राष्ट्रपति एक रिटायर सैन्य अधिकारी थे, चार अन्य भी सेना के ही अफसर रहे, पाकिस्तान के इतिहास में इनमें से तीन ने सैन्य तख्तापलट के माध्यम से सत्ता हासिल की. इनमें 1958 में अयूब खान, 1977 में मोहम्मद जिया-उल-हक और 1999 में परवेज मुशर्रफ शामिल हैं.
इस पूरे दौर में, पाकिस्तानियों को भारत से नफरत करने की सीख दी जाती रही और जिसकी वजह से अलग ही तरीके के इस्लामिक कट्टरवाद को बढ़ावा मिला. इसका शिकार वे संस्थान हुए जो पाकिस्तान के भविष्य के लिए मजबूत आधारशिला रख सकते थे. उदाहरण के लिए, जनरल जिया-उल-हक के शासन के दौरान ईशनिंदा (Blasphemy) से संबंधित कानून पारित किए गए जिससे सरकार को न्यायालय से अधिक शक्ति प्राप्त हो गई.
सरकार बनाम तहरीक-ए-लब्बैक की मौजूदा लड़ाई में, कट्टरपंथी समूह को यह भरोसा दिला दिया गया है कि सेना इसके साथ खड़ी होने के लिए तैयार है. पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था के पतन से वहां नागरिक संघर्ष की स्थिति बन चुकी है. यह वास्तविकता से दूर नहीं होगा, अगर कोई यह मानता है कि इमरान की बेदखली और नए चुनावों की घोषणा के साथ चीजें बेहतर हों जाएंगी. इस देश को एक बड़े बदलाव की जरूरत है, अपने वैचारिक आधार पर भी और अपने धार्मिक व लोकतांत्रिक दृष्टिकोण के संदर्भ में भी.
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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