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पाकिस्तान (Pakistan) की पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ के सुप्रीमो इमरान खान (Imran Khan) ने बुधवार को इस्लामाबाद के अपने मार्च को अचानक वापस ले लिया
के वी रमेश |
पाकिस्तान (Pakistan) की पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ के सुप्रीमो इमरान खान (Imran Khan) ने बुधवार को इस्लामाबाद के अपने मार्च को अचानक वापस ले लिया. हालांकि, उनके समर्थकों ने यहां हिंसा (Violence) फैलाई. सवाल यह था कि वे कानूनी दायरे से इतर कोशिशों के जरिए सरकार (Pakistan Government) को अस्थिर करने से क्यों हिचकिचाए? पाकिस्तान की जमीन साजिशों के लिए उपजाऊ है.
माना जा रहा है कि सेना, जो पीडीएम सरकार और पीटीआई के समर्थकों के बीच संघर्ष के दौरान खामोश बैठी रही, घबरा गई थी. और तटस्थ बने रहने के अपने निर्णय को वापस लेते हुए, उसने इमरान खान से बात की और सेना ने उनसे वादा किया कि जल्द चुनाव की उनकी मांग को स्वीकार कर लिया जाएगा. बशर्ते वे सरकार और दूसरी संस्थाओं पर अपने हमले को कम करें, जिसके बाद इमरान ने अपना आंदोलन बंद कर दिया. हालांकि उन्होंने यह भी धमकी दी कि अगर चुनाव की मांग नहीं मानी गई तो आने वाले समय में फिर से आंदोलन शुरू किया जाएगा.
इमरान ने समझौते से किया इनकार
इमरान ने किसी तरह के समझौते से इनकार किया है, लेकिन इस बात में कोई संदेह नहीं है कि उनका पीछे हटना, जल्दी चुनाव के बदले में सरकार से शांति संधि के लिए सेना के वादे से या फिर देश में शांति स्थापित करने के लिए सेना की ओर से कड़े कदम उठाने की धमकी से जुड़ा है. राजनीतिक मोर्चे पर इमरान की चुनौती, सीधे तौर पर पीडीएम को और परोक्ष रूप से सेना को है. इसने पाकिस्तान में सत्ता संतुलन को हिलाकर रख दिया है, जहां लोकतांत्रिक संस्थाएं समझौते के साथ काम करती हैं या फिर सेना की दया पर काम करती हैं.
इमरान सरकार को पश्चिमी देशों ने हटाया!
पाकिस्तान में सेना सबसे स्थिर और कुशल संस्था है, जिसका देश की नीतियों पर बहुत अधिक प्रभाव रहता है. प्रधानमंत्री के रूप में इमरान की अयोग्यता से निराश जनरलों ने पीटीआई के सांसदों को पीडीएम में शामिल होने दिया और पीटीआई को सत्ता से बेदखल कर दिया. लेकिन पीटीआई यह झूठी कहानी गढ़ने में सफल रही कि इमरान की सरकार को पश्चिमी देशों द्वारा हटा दिया गया, क्योंकि उन्हें इमरान की अवज्ञा पसंद नहीं थी, और रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण करने से एक दिन पहले उनकी मास्को यात्रा के कारण उन्होंने ऐसी साजिश की.
इमरान की लोकप्रियता में बढ़ोतरी से सेना चिंतित है. पूर्व मंत्री शिरीन मजारी की गिरफ्तारी सहित पीटीआई कार्यकर्ताओं के खिलाफ सरकार की गलतियों के कारण सेना विभाजित लगती है, जिसमें एक धड़ा इमरान के साथ शांति स्थापित करने की कोशिश कर रहा है. और यदि संभव हो तो किसी डील के जरिए उन्हें सत्ता में लौटने के लिए मदद कर रहा है.
पीडीएम के अंदर भी असंतोष
जनरल कमर जावेद बाजवा के नेतृत्व वाला दूसरा धड़ा शांत रहना चाहता है, और सरकार के भाग्य को सुप्रीम कोर्ट, जो पीटीआई कार्यकर्ताओं की ज्यादतियों को माफ कर अनुचित कार्य कर रहा है और सरकार के हाथ बांध रहा है, के हाथों में छोड़ना चाहता है. पीडीएम के भीतर भी असंतोष है, एक वर्ग इमरान की चुनौती को स्वीकार करना चाहता है और चुनाव में जाना चाहता है, और दूसरा, बिलावल भुट्टो जरदारी के नेतृत्व में, सरकार को अपना कार्यकाल पूरा करने देने के पक्ष में है. वर्तमान नेशनल असेंबली अक्टूबर 2023 तक के लिए है.
हालांकि, पीपीपी और पीएमएल (एन) के बीच एक समझौता है कि अर्थव्यवस्था को सामान्य स्थिति में लाने के लिए और पड़ोस व पश्चिम के साथ संबंधों को सुधारने के लिए कम से कम छह महीने की आवश्यकता है. क्योंकि आईएमएफ के ऋण और अतिरिक्त कर्ज के जरिए ही पाकिस्तान को दिवालियापन से बचाया जा सकता है.
भारत के साथ संबंध सुधारने की जरूरत
पीपीपी और पीएमएल (एन) का मानना है, और जेयूआई इसके विरोध में नहीं है, कि भारत के साथ संबंधों को सामान्य बनाने की आवश्यकता है. जिसमें व्यापार को फिर से शुरू करना शामिल है, ताकि पाकिस्तान में महंगाई को कम किया जा सके. पाकिस्तान कृषि आधारित अर्थव्यवस्था है. और एक खाद्य उत्पादक के रूप में काफी पिछड़ गया है. उसे घरेलू मांग को पूरा करने के लिए सालाना कम से कम दस लाख टन गेहूं आयात करने की जरूरत है. आयात के मुख्य स्रोत यूक्रेन और रूस थे, लेकिन वे युद्धग्रस्त हैं. पारंपरिक रूप से भारतीय विरोधी वर्ग समेत वहां की मीडिया में भी यह आवाजें उठ रही हैं कि महंगाई को कम करने के लिए भारत की मदद लेने का समय आ गया है.
यह भी दिलचस्प है कि कुछ रिटायर जनरल भारत के साथ व्यापार को फिर से शुरू करने के पक्ष में हैं. इसके कई कारण हैं और इसमें चीन की अनिच्छा या वित्तीय सहायता प्रदान करने की उसकी असमर्थता, पाकिस्तान को खाद्य पदार्थ सप्लाई करने में चीन की अक्षमता, और तीसरा यह अहसास है कि आवश्यक वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि से दंगे हो सकते हैं. सेना द्वारा सरकारी राजस्व और राष्ट्रीय संसाधनों के बड़े हिस्से का उपयोग करने और देश में इसकी छवि को कमजोर होने पर भी सवाल उठ रहे हैं.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की बढ़ती साख, पाकिस्तानी मीडिया में दैनिक बहस का विषय हो चुका है. वहां की मीडिया कभी भारत की तारीफ कर रही है, तो भी उसके उत्थान पर छाती पीट रही है. और दूसरी ओर उनके इवनिंग शो में पाकिस्तान के खस्ताहाल पर चर्चा हो रही है. शो में पूर्व जनरल मूक बने रहते हैं या भारत के साथ जुड़ने की आवश्यकता के बारे में हल्का असंतोष जताते हैं और उनमें से कुछ खुले तौर पर यह भी सुझाव देते हैं कि भारत के साथ संबंधों को सामान्य करने का समय आ गया है.
सेना को गैर-राजनीतिक घोषित किया
कुछ हफ्ते पहले, सेना के प्रचार विंग के प्रमुख, मेजर जनरल बाबर इफ्तिखार ने राजनीतिक दलों से अपील की कि वे राजनीतिक मामलों में सेना, जिसने पाकिस्तान को जकड़ लिया है, को न घसीटें. साथ ही बाबर ने सेना को गैर-राजनीतिक घोषित कर दिया. लेकिन पाकिस्तान में ऐसा कोई नहीं मानेगा. क्योंकि पाकिस्तान के अस्तित्व के आधे दौर में सेना ने शासन किया है. जबकि बाकी के आधे दौर में शासन का एक हाइब्रिड मॉडल देखा गया है. जिसमें सेना बैकसीट से ड्राइविंग करती रही है. पाकिस्तान में मौजूदा संकट का एक परिणाम, यह अहसास है कि एक मित्र के रूप में चीन पर निर्भरता की अपनी सीमाएं हैं.
चीन का दखल
चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC), जिसे गेम-चेंजर कहा जाता है, अधर में है. पाकिस्तान या श्रीलंका को आर्थिक सहायता की पेशकश करने के लिए चीन आगे नहीं आया है, जबकि दोनों बीजिंग से आस लगाए रहे. चीन के साथ संबंध एक तरह का सौदा होता है, और श्रीलंका की तरह पाकिस्तान के पास चीन को देने के लिए कुछ खास नहीं है.
महामारी के कारण अपनी अर्थव्यवस्था को संभालने और रूस पर पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण, चीन की ओर मदद नहीं मिल पा रही है. पिछले साल दो बार सेना प्रमुख बाजवा ने भारत के साथ संबंध सामान्य करने की जरूरत पर बात की है. इमरान को पूर्व एनएसए मोईद यूसुफ द्वारा भारत पर तैयार की गई राष्ट्रीय सुरक्षा नीति, ने भी दिल्ली के साथ शांति बनाने की बात कही थी.
भारत तब तक दोस्ती का हाथ पकड़ने के लिए उत्सुक नहीं है जब तक कि वह जमीन पर बदलाव नहीं देखता, जिसमें पाकिस्तानी धरती पर काम कर रहे आतंकवादियों के खिलाफ कठोर और निर्णायक कार्रवाई शामिल है. ऐसा लगता है कि बदलते राजनीतिक घटनाक्रम और खस्ताहाल अर्थव्यवस्था ने पाकिस्तानी जनरलों को यह महसूस करने के लिए प्रेरित किया गया है कि हालात दुरुस्त करने के पुराने तरीके काम नहीं कर रहे हैं. हालांकि, यह भी साफ नहीं है कि नया तरीका क्या होगा.
सोर्स- tv9hindi.com
Rani Sahu
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