सम्पादकीय

दोहरे संकट में पाकिस्तान : अमेरिकी डॉलर के आगे कमजोर होता पाकिस्तानी रुपया, श्रीलंका जैसे हालात की की आशंका

Neha Dani
13 May 2022 3:06 AM GMT
दोहरे संकट में पाकिस्तान : अमेरिकी डॉलर के आगे कमजोर होता पाकिस्तानी रुपया, श्रीलंका जैसे हालात की की आशंका
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इमरान खान को मिलेगा, जो यह दावा करेंगे कि उन्होंने चुनाव कराने के लिए सरकार पर दबाव बनाया था।

दुनिया के बाकी हिस्सों और खासकर अपने करीबी पड़ोसियों की तरह पाकिस्तान भी श्रीलंका में हो रही दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं को करीब से देख रहा है, जहां कुछ ही महीनों के भीतर देश जलने लगा है और शासक अपनी जान बचाने के लिए भाग रहे हैं। आगे क्या होता है और कैसे राजनीतिक व्यवस्था बहाल होती है, इस बारे में अभी कुछ भी कहना मुश्किल है। पाकिस्तान ने अभी तक श्रीलंका की स्थिति पर कोई आधिकारिक टिप्पणी नहीं की है, लेकिन आर्थिक विशेषज्ञ इस बारे में चेतावनी दे रहे हैं कि क्या पाकिस्तान के भी श्रीलंका के नक्शेकदम पर चलने की कोई आशंका है।

यह कॉलम लिखते वक्त पाकिस्तानी रुपया इतिहास में पहली बार अमेरिकी डॉलर के मुकाबले सौ रुपये से ज्यादा के स्तर पर पहुंच चुका है। यह पहले इतनी तेजी से कभी कमजोर नहीं हुआ था। राष्ट्र की आर्थिक सेहत का पैमाना शेयर बाजार हजारों अंक नीचे गिरकर धराशायी हो गया है। सरकार ने चीनी के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है और गेहूं के आयात का त्वरित आदेश दिया है, ताकि गेहूं की कमी से निपटा जा सके। हैरान करने वाली बात यह है कि वह पाकिस्तान गेहूं का आयात कर रहा है, जो दशकों से गेहूं का निर्यातक देश रहा है।
शहबाज शरीफ की सरकार बेहद असहाय दिख रही है और खुद प्रधानमंत्री आर्थिक मदद की उम्मीद में सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के दौरे पर निकल गए हैं, पर तुरंत यह मदद मिलती नहीं दिख रही। दरअसल तमाम वित्तीय मदद मौजूदा आईएमएफ सौदे से जुड़ी हुई प्रतीत होती है और पाक सरकार इस संदर्भ में बातचीत कर रही है। आईएमएफ के साथ समझौता होने पर ही मित्र राष्ट्र आर्थिक मदद देने के लिए आगे बढ़ेंगे। पाकिस्तान चाहता है कि आईएमएफ छह अरब डॉलर का वह कर्ज उसे दे, जिसे उसने रोक रखा है।
दरअसल आईएमएफ के कर्ज के साथ कुछ सख्त शर्तें जुड़ी हैं, जिनमें ईंधन पर सब्सिडी हटाना और पेट्रोलियम वस्तुओं की कीमत बढ़ाना शामिल है, जो राजनीतिक रूप से बहुत ही कठिन होगा, क्योंकि पाकिस्तान के लोग पहले से ही मुद्रास्फीति की उच्च दर से परेशान हैं। इमरान खान की पिछली सरकार ने पेट्रो उत्पादों पर सब्सिडी देने का जो फैसला किया था, मौजूदा सरकार को उसकी लागत एक अरब डॉलर पड़ेगी। अगर सरकार तत्काल कुछ कठोर कदम नहीं उठा पाई, तो वह देश को दिवालियेपन से नहीं बचा पाएगी।
एक विश्लेषक का कहना है कि इससे सऊदी अरब और चीन के साथ वित्तीय सहायता की हमारी बातचीत भी प्रभावित होगी। यह अच्छी स्थिति नहीं है और गहराते राजनीतिक ध्रुवीकरण ने सरकार के काम को और कठिन बना दिया है। लेकिन कार्रवाई में देरी देश के लिए ज्यादा महंगी साबित होगी। आर्थिक स्थिति के अलावा देश की राजनीतिक स्थिति भी लोकतंत्र और सांविधानिक प्रक्रिया को नुकसान पहुंचा रही है। चूंकि इमरान खान और नेशनल असेंबली के उनके सौ से अधिक सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया, इसलिए इन दिनों निचले सदन की बैठक हास्यास्पद हो गई है।
विपक्ष और विपक्ष के नेता संसद का आवश्यक अंग हैं। लेकिन आज संसद के निचले सदन में जब सत्र चल रहा होता है, तो मुट्ठी भर विपक्षी सदस्य होते हैं, जो कभी इमरान खान सरकार के सहयोगी थे। सदन में विपक्ष का कोई नेता नहीं है। संसद के बाहर पाकिस्तान तहरीक-ए इंसाफ के अध्यक्ष इमरान खान की लोकप्रियता बढ़ रही है। वह पूरे देश में जलसा कर रहे हैं, जिसमें भारी संख्या में लोग इकट्ठा हो रहे हैं। वह न केवल सत्तारूढ़ सरकार की आलोचना कर रहे हैं, बल्कि हर रोज सेना और न्यायपालिका को निशाना बना रहे हैं, जिन पर वह अपनी सरकार गिराने का इल्जाम लगा रहे हैं।
हाल ही में उन्होंने एबटाबाद में सेना की कड़ी आलोचना की, जिसने सबको चौंका दिया। रावलपिंडी स्थित सैन्य मुख्यालय ने तुरंत प्रतिक्रिया दी और इंटर सर्विस पब्लिक रिलेशन विंग ने भी एक कड़ा बयान जारी किया। उसमें राजनेताओं, पत्रकारों और सोशल मीडिया सहित अन्य लोगों को सेना को राजनीति से दूर रखने की चेतावनी दी गई है, क्योंकि वह तटस्थ रहना चाहती है और उसका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है। इमरान अब नई सरकार पर दबाव बना रहे हैं कि वह नए सिरे से चुनाव कराने के लिए इस्लामाबाद में अपने लाखों समर्थकों को इकट्ठा करेंगे।
उन्होंने चुनाव आयोग पर निशाना साधते हुए कहा है कि मौजूदा मुख्य चुनाव आयुक्त के रहते स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव नहीं कराए जा सकते। शीर्ष अदालत दैनिक सुनवाई के दौरान सवाल पूछ रही है कि पीटीआई उसकी आलोचना क्यों कर रही है, और अगर उसे न्यायपालिका पर भरोसा नहीं है, तो उसके मामलों को पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए क्यों लाया जा रहा है? दरअसल अविश्वास प्रस्ताव लाए जाने से पहले ही इमरान ने चेतावनी दी थी कि विपक्ष में होने पर वह देश के लिए ज्यादा खतरनाक होंगे और उन्होंने इसे सही साबित किया है।
रोजमर्रा की समस्याओं से जूझती एक कमजोर सरकार तथा राजनीति में हस्तक्षेप न करने का दावा करने वाली सेना के लिए वह दिन दूर नहीं, जब देश गहरे ध्रुवीकरण में फंस जाएगा और अराजकता जैसी स्थिति पैदा हो जाएगी। यदि लोकतांत्रिक प्रक्रिया ध्वस्त हो जाती है, तो अतीत की तरह संविधानेतर ताकतों के सत्ता में आने की प्रबल आशंका है। शहबाज शरीफ सरकार तभी बच सकती है, जब आर्थिक स्थिति बदले। अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए अगर वह कुछ कठोर कदम भी उठाएं, तो उनकी सरकार के पास बचने का एक मौका होगा।
अन्यथा यदि मौजूदा संकट जारी रहता है, तो उन्हें पीछे हटकर एक कार्यवाहक सरकार को सत्ता सौंपनी होगी, जो चुनाव कराएगी। पाकिस्तान मुस्लिम लीग में तमाम फैसले नवाज शरीफ ले रहे हैं, जो लंदन में निर्वासन में हैं। नवाज शरीफ नए सिरे से चुनाव कराए जाने के पक्षधर हैं। लेकिन इस समय अगर सरकार नए सिरे से चुनाव कराने की घोषणा करती है, तो इसका भारी राजनीतिक फायदा इमरान खान को मिलेगा, जो यह दावा करेंगे कि उन्होंने चुनाव कराने के लिए सरकार पर दबाव बनाया था।

सोर्स: अमर उजाला

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