सम्पादकीय

पाकिस्तान : बढ़ रही हैं इमरान की मुश्किलें

Neha Dani
28 Jan 2022 2:03 AM GMT
पाकिस्तान : बढ़ रही हैं इमरान की मुश्किलें
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जाहिर है, ये सब चीजें इमरान खान के लिए अच्छी नहीं हैं।

क्या प्रधानमंत्री इमरान खान सत्ता से बाहर जाने वाले हैं और क्या सत्ता प्रतिष्ठान ने संसदीय प्रणाली खत्म कर राष्ट्रपति शासन प्रणाली लागू करने का फैसला किया है? क्या विपक्ष ने नेशनल एसेंबली में आवश्यक संख्या बल हासिल कर लिया है और सदन के नेता के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने का फैसला किया है? इस्लामाबाद में अफवाहों का बाजार गर्म है और इस हफ्ते प्रधानमंत्री ने खुद टीवी पर इस आग में और घी डाल दिया। यह लगभग दो घंटे का आम जनता के टेलीफोन कॉलों पर आधारित एक रिकॉर्डेड प्रश्नोत्तरी का सत्र था, जिसमें लोगों ने प्रधानमंत्री को काफी गुस्से में देखा।

ऐसी भी खबरें हैं कि सत्ता प्रतिष्ठान ने पीएमएल (एन) प्रमुख नवाज शरीफ से संपर्क किया है और किसी तरह का समझौता किया जा रहा है, ताकि इमरान खान को हटाने के बाद जल्द चुनाव कराया जा सके। अन्य रिपोर्टों में कहा गया है कि पाकिस्तान तहरीके इंसाफ (पीटीआई) की ओर से एक नया चेहरा विश्वास मत हासिल करेगा और नई सरकार को लगभग दो साल में नए चुनाव कराने तक अपना कार्यकाल जारी रखने की अनुमति दी जाएगी।
यह वही सैन्य प्रतिष्ठान है, जिसने सरकार बनाने के बाद से इमरान खान का समर्थन किया है, लेकिन आईएसआई के नए प्रमुख के नाम पर प्रधानमंत्री के सहमत होने से इनकार करने के बाद दोनों के संबंध टूट गए हैं। वह केवल उस अधिसूचना के लिए सहमत हुए हैं, जिसे जनरल बाजवा ने दो महीने से अधिक समय के बाद नए महानिदेशक के लिए जारी किया था। इससे जनरल बाजवा बहुत नाराज हुए और उनके संबंध खराब हो गए।
साथ ही इस साल नवंबर तक सेना प्रमुख बाजवा का विस्तृत कार्यकाल समाप्त हो जाएगा और संभावना है कि वह एक और कार्यकाल विस्तार के लिए अनुरोध करें। लेकिन ऐसी संभावना नहीं है कि प्रधानमंत्री इसके लिए सहमत होंगे। पाकिस्तान में अभी हर कोई प्रधानमंत्री के गुस्से वाले बयान के बारे में बात कर रहा है और सभी अखबार एवं टीवी शो प्रधानमंत्री की उस धमकी की व्याख्या करने में लगे हैं, जो उन्होंने टीवी पर दी थी। हर कोई यह जानना चाहता है कि प्रधानमंत्री किसको धमकी दे रहे थे-विपक्ष को या सैन्य प्रतिष्ठान को?
उनकी धमकी थी कि अगर उन्हें सत्ता से बेदखल किया जाता है, तो वह उनके लिए और भी खतरनाक विरोधी साबित होंगे। इमरान खान ने कहा, 'मैं आपको चेतावनी देना चाहता हूं कि अगर मुझे सत्ता से हटाया गया, तो मैं आपके लिए और भी खतरनाक साबित होऊंगा। अभी मैं अपने पद पर चुपचाप बैठकर सारा ड्रामा देख रहा हूं। अगर मैं सड़क पर उतर गया, तो आपके पास छिपने के लिए कोई जगह नहीं होगी, क्योंकि लोगों ने आपका असली रंग देख लिया है।'
उसी सत्र में इमरान ने मीडिया की भी इस बात के लिए आलोचना की कि वह केवल नकारात्मक खबरें पेश करता है, न कि उनकी सरकार की उपलब्धियां। न्यायपालिका पर भी आक्रामक होते हुए उन्होंने कहा कि वह इतनी सुस्त है कि विपक्ष, खासकर नवाज शरीफ परिवार के ऊपर लगे भ्रष्टाचार के मामलों को अंतिम परिणति तक नहीं पहुंचा रही है। साफ है कि प्रधानमंत्री इमरान खान भारी दबाव में हैं, क्योंकि लोग महंगाई और कुशासन से नाराज हैं। इसके साथ ही विपक्ष का दबाव भी है, जो अब पूरे देश से मार्च और जुलूस निकालने और इस्लामाबाद पहुंचने के लिए तैयार हो गए हैं।
साथ ही इमरान उन अफवाहों और रिपोर्टों से वाकिफ हैं, जिनके मुताबिक सैन्य प्रतिष्ठान विपक्ष से संपर्क कर रहा है और उनसे छुटकारा पाना चाहता है। प्रधानमंत्री ने देश में जो भी गलत है, उसके लिए सभी को दोषी ठहराया, लेकिन अपनी सरकार को दोष नहीं दिया, जिसने कुछ नहीं किया। राजनीतिक विश्लेषक जाहिद हुसैन कहते हैं कि 'सुरक्षा प्रतिष्ठान और विपक्षी समूहों के बीच समझौते की अटकलों ने सरकार की चिंताएं बढ़ा दी हैं। लगता है कि संभावित सौदे के बारे में व्यापक अफवाहों ने प्रधानमंत्री के गुस्से को भड़का दिया है।
जो सरकार अपने अस्तित्व के लिए काफी हद तक सुरक्षा प्रतिष्ठानों पर निर्भर रही है, उसके लिए ऐसी खबरें स्पष्ट रूप से परेशान करने वाली होंगी। पाकिस्तान की राजनीति में पर्दे के पीछे ऐसे समझौते नई बात नहीं है। विपक्ष के बढ़ते हौसले और इस्लामाबाद में मार्च करने की योजना ने उन अफवाहों को हवा दी है कि सुरक्षा प्रतिष्ठान इमरान सरकार से दूरी बढ़ा रहा है।' यहां कई लोग जाहिद हुसैन से सहमत हैं कि इमरान खान के ऐसे बयान उनकी कमजोरी को दर्शाते हैं। जिस तरह से इमरान खान ने टीवी पर विपक्ष के नेता नवाज शरीफ को गाली दी, उसने भी कई लोकतांत्रिक एवं प्रगतिशील पाकिस्तानियों को नाराज कर दिया।
अपने तीन साल के कार्यकाल में प्रधानमंत्री ने एक बार भी विपक्ष में किसी से बात नहीं की। राष्ट्रीय महत्व के मुद्दे पर भी उन्होंने विपक्ष की पूरी तरह से उपेक्षा की। जब उन्होंने शहबाज शरीफ को राजनेता के बजाय भ्रष्टाचार के आरोप के कारण अपराधी कहा, तो हर किसी को बुरा लगा। शहबाज शरीफ को लोगों ने चुनकर संसद में भेजा है। ऐसे में आप उन्हें अपराधी कैसे कह सकते हैं? विपक्षी नेताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले में कुछ भी साबित न होने से निराश प्रधानमंत्री ने तुरंत अपने सलाहकार को बर्खास्त कर दिया।
प्रधानमंत्री के विनाशकारी बयान के एक दिन बाद ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की रिपोर्ट से पीटीआई सरकार की 'भ्रष्टाचार मुक्त पाकिस्तान' की कहानी को भारी झटका लगा होगा, जिसके मुताबिक भ्रष्टाचार सूचकांक में पाकिस्तान 16 पायदान और नीचे खिसक चुका है। जबसे पीटीआई सरकार सत्ता में आई है, पाकिस्तान इस सूचकांक में 23 पायदान नीचे खिसक चुका है। जाहिर है, ये सब चीजें इमरान खान के लिए अच्छी नहीं हैं।

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