- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- पाकिस्तान : इमरान खान...
सम्पादकीय
पाकिस्तान : इमरान खान को समझना मुश्किल, गोली की नियति और सियासी गलियारों में गूंजती आवाजों के मायने
Rounak Dey
11 Nov 2022 3:48 AM GMT
![पाकिस्तान : इमरान खान को समझना मुश्किल, गोली की नियति और सियासी गलियारों में गूंजती आवाजों के मायने पाकिस्तान : इमरान खान को समझना मुश्किल, गोली की नियति और सियासी गलियारों में गूंजती आवाजों के मायने](https://jantaserishta.com/h-upload/2022/11/11/2207555-imran-khan1667802564.avif)
x
असीम मुनीर नए सेना प्रमुख नहीं होंगे? इसका जवाब मिलने में बस कुछ ही दिन बचे हैं, फिर हमें पता चल जाएगा कि पाकिस्तान का नया सेना प्रमुख कौन बनेगा।
यही उस अकेली गोली की नियति थी। वह एक गोली पाकिस्तान की नियति बदल सकती थी। लेकिन किस्मत से बड़ा क्या है? यह पूर्व प्रधानमंत्री और तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी के प्रमुख की किस्मत थी, कि वह गोली चूक गई, और उनके दाहिने पैर के निचले हिस्से में लगी। यदि वह गोली उनके सिर या फेफड़े में लगी होती, तो आज बदला हुआ पाकिस्तान हमारे सामने होता। उर्दू में एक कहावत है, अगर अल्लाह किसी को बचाना चाहता है, तो उसे मारने की हिम्मत कौन करेगा? सत्तर साल के इमरान खान अपने समर्थकों की मदद से एक पैर पर चल कर कंटेनर से एक कार तक पहुंचे और फिर उन्हें उनके ही बनवाए शौकत खानम कैंसर अस्पताल ले जाया गया, जो हमले की जगह से कुछ घंटे की दूरी पर था और उन्हें प्राथमिक उपचार दिया गया।
सत्तर साल... हां, लेकिन वह जबर्दस्त तरीके से तंदुरुस्त हैं, रोज जिम जाते हैं, टहलते हैं, जॉगिंग करते हैं और स्वस्थ भोजन करते हैं। अच्छे स्वास्थ्य के कारण ही वह तेजी से ठीक हो रहे हैं। कुछ दिनों बाद उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिल गई और अब वह लाहौर के जमना पार्क स्थित अपने घर में हैं। पूरे दिन आराम करने के बजाय वह अपने नए पुनर्निर्मित पारिवारिक घर में आने वाले आगंतुकों के साथ बैठक करते हैं। वह लगातार अस्पताल वाली नीले रंग की कमीज पहने रहते हैं, जिसकी चर्चा सोशल मीडिया पर हो रही है। लोग मजाक में कह रहे हैं कि वह अस्पताल का बिल चुकाए बिना भाग आए और यहां तक कि अस्पताल की वर्दी भी ले आए!
लेकिन इसके विपरीत, इमरान खान के एक बार यह कहने के बाद कि प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और आईएसआई के एक जनरल की नामजदगी वाली उनकी प्राथमिकी दर्ज नहीं की जा रही है, पूरे मुल्क में विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया और इस्लामाबाद जाने वाली सभी सड़कें बंद हो गईं। इस्लामाबाद पंजाब और खैबर पख्तुनख्वा, दोनों प्रांतों से जुड़ा है, जहां तहरीक-ए-इंसाफ पार्टी का शासन है। लेकिन इमरान खान बेनजीर भुट्टो नहीं हैं, जिनकी हत्या के बाद पूरा पाकिस्तान जलने लगा था। बड़े शहरों में छोटे-छोटे विरोध प्रदर्शन हुए और अब भी हो रहे हैं, लेकिन कुछ जगहों पर मात्र पंद्रह प्रदर्शनकारी हैं।
इसने इमरान खान को बहुत नाराज कर दिया है और उन्होंने घोषणा की है कि दस दिनों में वह पाकिस्तान के सैन्य मुख्यालय वाले शहर रावलपिंडी पहुंचेंगे, जहां शीर्ष सैन्य अधिकारी रहते हैं और इस्लामाबाद तक अपने मार्च का नेतृत्व करेंगे। लेकिन इमरान खान के इस लंबे मार्च और आंदोलन की असली वजह क्या है? इसका जवाब बिल्कुल स्पष्ट है। वर्तमान सेना प्रमुख जनरल बाजवा ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि उनका पहला सेवा विस्तार खत्म होने वाला है और वह 28 नवंबर को चले जाएंगे तथा पद पर बने रहने में उनकी कोई दिलचस्पी नहीं है।
इस बीच ऐसी खबरें भी आई थीं कि प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ की मौजूदा सरकार जनरल बाजवा को एक और सेवा विस्तार देना चाहती है। लेकिन मुझे लगता है कि यह संभव नहीं होगा, क्योंकि इमरान खान द्वारा उन्हें विवादास्पद बनाए जाने के बाद सैन्य मुख्यालय और शीर्ष सैन्य अधिकारी जनरल बाजवा के पद पर बने रहने का समर्थन करने के मूड में नहीं हैं। इमरान खान ऐसे दुर्लभ राजनेता हैं, जो हर रोज अपना बयान बदलते रहते हैं, इसलिए उन्हें समझना मुश्किल है। उन्होंने इतिहास से कुछ भी नहीं सीखा है और वह सोचते हैं कि अगर नए सैन्य प्रमुख की नियुक्ति में उनका दखल रहता है, तो इससे उन्हें फायदा होगा।
इतना स्पष्ट है कि वह सबसे वरिष्ठ जनरल के खिलाफ हैं, जिन्हें परंपरा के अनुसार नया प्रमुख होना चाहिए और जो कि जनरल असीम मुनीर हैं। इसके पीछे मुख्य कारण यह है कि जब इमरान खान प्रधानमंत्री बने थे, उस समय जनरल असीम मुनीर आईएसआई के महानिदेशक थे। उन दोनों के बीच कहा-सुनी हो गई थी, जिसके बाद इमरान खान ने उन्हें हटाकर जनरल फैज हमीद को अपना डीजी आईएसआई बना लिया। अफवाहों के मुताबिक, जनरल असीम मुनीर ने इमरान खान के सामने भ्रष्टाचार के कुछ सबूत पेश किए थे, जो प्रधानमंत्री की नाक के नीचे चल रहे थे।
इमरान खान और जनरल बाजवा के बीच पहला बड़ा मतभेद तब पैदा हुआ, जब कुछ वर्षों बाद सैन्य मुख्यालय ने जनरल फैज हमीद को एक कोर मुख्यालय की कमान सौंपना चाहा, जो सेनाध्यक्ष के रूप में प्रोन्नत होने के लिए एक आवश्यक आवश्यकता है। इमरान खान ने इस पोस्टिंग का विरोध किया था। पाकिस्तानी राजनेताओं ने इतिहास से यह सबक नहीं सीखा कि भले ही आपके पास सेना प्रमुख नियुक्त करने की शक्ति हो, लेकिन वरिष्ठतम जनरल हमेशा अपने और अपनी संस्था के प्रति ईमानदार रहेगा, न कि प्रधानमंत्री और सरकार के प्रति। केवल ताजा इतिहास ही दर्शाता है कि मैं कितनी सही हूं।
जुल्फीकार अली भुट्टो ने कई वरिष्ठ जनरलों को दरकिनार करके जनरल जिया उल हक को सैन्य प्रमुख बनाया था। लेकिन जब समय आया, तो जनरल जिया ने भुट्टो जैसे लोकप्रिय नेता को भी बर्दाश्त नहीं किया और धोखाधड़ी करके लोकप्रिय एवं लोकतांत्रिक ढंग से चुने गए प्रधानमंत्री को फांसी पर लटका दिया। उसके बाद पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ ने जनरल परवेज मुशर्रफ और जनरल बाजवा को चुना, जो नए सैन्य प्रमुख बनने की कतार में खड़े कई जनरलों से जूनियर थे। परवेज मुशर्रफ ने तख्तापलट करके नवाज शरीफ को जेल में डाल दिया, जबकि जनरल बाजवा ने नवाज शरीफ को फिर से बर्खास्त करने के लिए अदालतों का इस्तेमाल किया और उन्हें लंदन निर्वासन में जाना पड़ा। अब इमरान खान ने अचानक अपना विचार बदल लिया है।
प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ अपने भाई और पाकिस्तान मुस्लिम लीग के प्रमुख नवाज शरीफ को देखने के लिए लंदन गए थे। इमरान खान अचानक कहते हैं कि उन्हें कोई दिक्कत नहीं है, अगर शहबाज शरीफ नया सेना प्रमुख चुनते हैं। सवाल है कि क्या नए सेना प्रमुख के नाम में कोई बदलाव हुआ है। क्या प्रधानमंत्री ने फैसला कर लिया है कि जनरल असीम मुनीर नए सेना प्रमुख नहीं होंगे? इसका जवाब मिलने में बस कुछ ही दिन बचे हैं, फिर हमें पता चल जाएगा कि पाकिस्तान का नया सेना प्रमुख कौन बनेगा।
सोर्स: अमर उजाला
Next Story