सम्पादकीय

पाकिस्तान : हताश इमरान खान का नया दांव, चरम पर है सरकार और विपक्ष के बीच राजनीतिक तनाव

Neha Dani
27 May 2022 1:50 AM GMT
पाकिस्तान : हताश इमरान खान का नया दांव, चरम पर है सरकार और विपक्ष के बीच राजनीतिक तनाव
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इमरान अपनी जिद से डिगने के लिए थोड़ा भी तैयार नहीं है, चाहे इसके लिए देश को जो भी खामियाजा भुगतना पड़े।'

जब से पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को नेशनल असेंबली में अविश्वास प्रस्ताव के जरिये सांविधानिक रूप से पद से हटाया गया है, पाकिस्तान की सियासत में एक भी पल सुस्त नहीं रहा है। इमरान खान को आज भी यह यकीन नहीं होता कि वह विपक्ष में हैं। वह ऐसे व्यक्ति की तरह व्यवहार करते हैं, जिसे कुछ लोग पागल कहते हैं। उन्होंने चुप बैठकर यह विश्लेषण करने से इनकार कर दिया है कि पिछले तीन वर्षों में जब उनकी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए इंसाफ (पीटीआई) सत्ता में थी, तब क्या गड़बड़ी हुई।

इमरान खान ने कुछ बड़ी गलतियां कीं, जिसकी कीमत यह मुल्क अब भी चुका रहा है। शुरुआत में उन्होंने उन देशों के साथ दशकों पुराने संबंध खत्म कर दिए, जो पारंपरिक रूप से पाकिस्तान के करीबी थे और जिन्होंने कूटनीतिक और आर्थिक रूप से पाकिस्तान की मदद की थी। इन रिश्तों को फिर से बहाल करने में लंबा समय लगेगा। प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ की सरकार रिश्ते सुधारने की पूरी कोशिश कर रही है, जिसमें कुछ सफलताएं भी मिली हैं।
लेकिन जिसे अधिकांश पाकिस्तानी इमरान खान की अक्षम्य गलती बता रहे हैं, वह है मुल्क की कमजोर अर्थव्यवस्था को नष्ट करना। अनेक लोग तो अब यह चेतावनी भी दे रहे हैं कि पाकिस्तान गलती से श्रीलंका के रास्ते पर जा सकता है। इमरान जब सत्ता में थे, तब भी उन्होंने विपक्ष से संपर्क करने और महत्वपूर्ण मुद्दों पर उनसे बातचीत करने से इनकार कर दिया था। अब भी वह साथ बैठने और मौजूदा संकटपूर्ण स्थिति से बाहर निकलने का राजनीतिक उपाय तलाशने से इनकार करते हैं।
आज पाकिस्तान अपने सबसे गंभीर राजनीतिक और वित्तीय संकट का सामना कर रहा है। कुछ लोग वाजिब ही चिंता जता रहे हैं, कि यदि देश की समस्याओं को राजनीतिक रूप से हल नहीं किया जाता, तो पाकिस्तान के पिछले अनुभवों को देखते हुए गैर-लोकतांत्रिक ताकतों के दखल देने की आशंका बढ़ेगी। राजनीतिक विश्लेषक जाहिद हुसैन लिखते हैं कि 'पीटीआई समर्थकों द्वारा सैन्य नेतृत्व के खिलाफ अभियान उसे दबाव में लाने के प्रयास का एक हिस्सा प्रतीत होता है।
यह एक अत्यंत खतरनाक खेल है, जिसका सेना की एकता पर गंभीर असर पड़ सकता है।' बृहस्पतिवार को इमरान खान अपने समर्थकों के साथ इस्लामाबाद धरना देने के लिए पहुंचे। हालांकि इमरान ने दावा किया था कि वह लाखों लोगों को इस्लामाबाद लेकर आएंगे, लेकिन वास्तव में लगता है कि उनके समर्थकों की संख्या सात हजार के करीब होगी। पंजाब प्रांत की पाकिस्तान मुस्लिम लीग (नवाज) सरकार ने इस्लामाबाद के सभी रास्ते बंद कर दिए थे।
ऐसे में, अनेक पीटीआई समर्थक धरने में शामिल होने के लिए इस्लामाबाद नहीं पहुंच सके। यह पहली बार है कि इमरान खान सेना के समर्थन के बगैर शक्ति प्रदर्शन की कोशिश कर रहे हैं। गौरतलब है कि सेना ने ही उन्हें नवाज शरीफ के खिलाफ खड़ा किया था। तब महीनों तक इमरान अपने समर्थकों के साथ धरने पर डटे रहे थे, पर तब चूंकि संसद में सभी राजनीतिक दल नवाज शरीफ के समर्थन में थे, इसलिए वह प्रधानमंत्री पद पर बने रहे थे।
लेकिन दिसंबर, 2014 में जब पेशावर आर्मी बॉयज स्कूल पर भयानक आतंकवादी हमले में सैकड़ों छात्रों और शिक्षकों की मौत हो गई और पाकिस्तान गम में डूब गया था, तब इमरान ने अपना धरना खत्म कर दिया। आज सरकार और विपक्ष के बीच राजनीतिक तनाव चरम पर है। खान ने अपना धरना खत्म करने के लिए दो शर्तें रखी हैं-पहली, शाहबाज शरीफ की 'एकता सरकार' नेशनल असेंबली को भंग करे, और दूसरी, नए चुनाव की तारीख घोषित की जाए।
शाहबाज शरीफ की सरकार बनने के बाद यह उम्मीद की जा रही थी कि कठिन आर्थिक निर्णय लेने के बजाय चुनावों की नई तारीख की घोषणा की जाएगी। लंदन में स्वनिर्वासन में बैठे नवाज शरीफ भी यही सुझाव दे रहे थे। इसका कारण यह है कि अगर पेट्रोल आदि की कीमतों में वृद्धि की गई, तो सरकार काफी अलोकप्रिय हो जाएगी और मतदाता चुनाव के दौरान इमरान खान के दौर की अर्थव्यवस्था की बदहाली को भूलकर मौजूदा सरकार को दोष देंगे।
इससे पीएमएल (एन) के वोट बैंक में सेंध लगने की भी आशंका है। इस पृष्ठभूमि में यह तथ्य भी था कि सैन्य प्रतिष्ठान ने बैरकों में ही बिल्कुल तटस्थ रहने और राजनेताओं को ही राजनीतिक रूप से मुद्दों को हल करने देने का भरोसा दिलाया था। लेकिन ऐसा लगता है कि पूर्व योजना में कुछ तब्दीली आई है, क्योंकि सरकार ने घोषणा की कि वह तत्काल चुनाव नहीं कराएगी और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) की मदद से अर्थव्यवस्था को सुधारने की कोशिश करेगी।
इस सप्ताह सऊदी सरकार ने पाकिस्तान के केंद्रीय बैंक में तीन अरब डॉलर जमा किए, ताकि पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार मजबूत हो। ऐसे ही, वित्तमंत्री आईएमएफ के एक बड़े सहायता पैकेज को अंतिम रूप देने के लिए दोहा गए हैं। यदि यह राहत पैकेज मिल जाता है, तो शाहबाज सरकार कुछ समय के लिए आर्थिक रूप से स्थिर हो जाएगी। इस्लामाबाद के लिए निकलने से ठीक पहले इमरान खान ने न्यायपालिका और सैन्य प्रतिष्ठान से अपील की कि वे समय से पहले चुनाव कराने के लिए दखल दें।
यह आश्चर्यजनक है, क्योंकि सत्ता में रहते हुए इमरान ने इन दोनों ही संस्थाओं से राजनीतिक क्षेत्र में हस्तक्षेप न करने के लिए कहा था। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह इस बात का संकेत है कि सैन्य प्रतिष्ठान ने अंततः शहबाज शरीफ सरकार को इमरान खान के खिलाफ समर्थन देने का फैसला कर इस दिग्गज पूर्व क्रिकेटर को अपने भरोसे छोड़ दिया है।
इमरान खान द्वारा सैन्य प्रतिष्ठान के लिए इस सार्वजनिक आह्वान से देश दो खेमों में बंट गया है। कुछ लोगों का मानना है कि पीटीआई को इसमें सैन्य प्रतिष्ठान को नहीं घसीटना चाहिए, खासकर जब इसकी जरूरत न हो। अंग्रेजी दैनिक द डॉन लिखता है, 'सरकार पर पीटीआई प्रमुख के लगातार हमले ने काफी अव्यवस्था पैदा कर दी है। इमरान अपनी जिद से डिगने के लिए थोड़ा भी तैयार नहीं है, चाहे इसके लिए देश को जो भी खामियाजा भुगतना पड़े।'

सोर्स: अमर उजाला

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