सम्पादकीय

FATF की काली सूची में जाने से बचा पाक, दो मोर्चों पर जंग की आशंका सीमित

Gulabi
3 March 2021 3:01 PM GMT
FATF की काली सूची में जाने से बचा पाक, दो मोर्चों पर जंग की आशंका सीमित
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पाकिस्तान एक बार फिर एफएटीएफ की काली सूची में जाने से बच गया है

पाकिस्तान एक बार फिर एफएटीएफ की काली सूची में जाने से बच गया है। भारत के साथ हुए पहले के युद्धविराम समझौतों को प्रभावी रूप से लागू करने की यह घोषणा ब्लैक लिस्ट से बचने की ही कयावद जान पड़ती है। मगर पाकिस्तानी सेना अपनी आतंकी कारगुजारियों से बाज आएगी, इसमें संदेह है। अतः यह एक अस्थायी समझौता सिद्ध होगा। इस युद्धविराम पर भारत-चीन समझौते का स्पष्ट प्रभाव परिलक्षित है। पाकिस्तान की रणनीतियों के दिशा निर्धारण में चीनी रुख की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। भारत को घेरने की चीनी रणनीति का वह प्रमुख भागीदार है। पर परिस्थितियां बदल रही हैं। भारत ने सीमाओं पर पाक क्षेत्र के अंदर दूर तक मार करने में सक्षम तोपों की तैनाती शुरू की है। पाकिस्तान सोचता है कि उसके जो आतंकी केंद्र, लॉन्च पैड भारतीय तोपों की रेंज में हैं, वे युद्धविराम के अनुपालन से सुरक्षित हो जाएंगे। युद्धविराम का अर्थ यह नहीं कि पाकिस्तान अपने आतंकी अभियानों को भी विराम दे देगा। ग्रे लिस्ट की मजबूरियां पाकिस्तान को निरंतर चीन के दरवाजे पर दस्तक देने को मजबूर रखेंगी।

चीनी मोर्चे पर सेनाओं की वापसी के समझौते पर अमल के बाद भारत-चीन में तनाव का स्तर वह नहीं रहेगा, जो अप्रैल 2020 से लगातार कायम था। चीनी सैनिकों टैंकों की वापसी की गति हैरान करने वाली है। इधर सी-पेक को लेकर चीन व पाकिस्तान में असहमति की खबरें आ रही हैं। रेल व पावर प्रोजेक्ट पर पाकिस्तानी आपत्तियां मुखर हो रही हैं। स्पष्ट है कि जिन उद्देश्यों को लेकर चीन चला था, वे आर्थिक कम, रणनीतिक अधिक हैं। ग्वादर-काशगर रोड चीन-पाकिस्तान के साझा सैन्य अभियानों की भूमिका बनाती है। सी-पेक का एक प्रमुख उद्देश्य भारत के सैन्य-रणनीतिक विकल्पों को सीमित करना था। इसके लिए जरूरी था कि भारत पुनः अपने 2014 के पहले की मानसिकता में चला जाए। पर जून 2017 में 43 दिन चला दोकलाम गतिरोध चीन को भारत की बदली नीति का मजबूत संकेत था।
पाक अधिकृत कश्मीर की वापसी पर गृहमंत्री अमित शाह का लोकसभा में दिया गया भावनात्मक बयान भारत की प्रतिबद्धता को प्रकट करने के लिए पर्याप्त था। चीनी सेनाओं का नो मैंस लैंड में आकर काबिज हो जाना, लगभग वैसी ही कार्रवाई थी, जैसा उन्होंने 1962 में किया था। पर चीनी रणनीतिकारों को गुमान भी न रहा होगा कि भारत इतनी जल्दी तोपों एवं अन्य साजोसामान से लैस एक बड़ी सेना उनके सामने खड़ा कर देगा। 15 जून की गलवां शहादत व 29 अगस्त की कैलाश रेंज पर प्रभावी नियंत्रण ने तो रणनीतिक गणित ही बदल दिया। सड़क निर्माण, सैन्य सुविधाओं में विकास के साथ नए हथियारों की खरीद व तैनाती ने चीन को भारतीय प्रतिबद्धता का स्पष्ट संदेश दे दिया है। इसके अलावा अमेरिकी रणनीतिक साझेदारी व क्वाड का कार्यान्वयन भी वे कारण हैं, जो चीन के रुख परिवर्तन के पीछे हैं।
दक्षिणी चीन सागर, ताइवान व क्वाड की घेरेबंदी के साथ बढ़ रहे व्यापारिक युद्ध की आशंकाएं चीन के सामने हैं। विश्व में चीन के प्रभाव में भी कमी आई है। चीन के मामले में जो बाइडन ने अब तक ट्रंप की नीतियों को नहीं बदला है। ऐसे में चीन की मजबूरी है कि वह अपने कुछ अनावश्यक मोर्चे कम करे। चीन के रणनीतिक पुनर्विचार का परिणाम लद्दाख सैन्य वापसी में परिलक्षित हो रहा है। ऐसे में पाकिस्तान ने भी मौके की नजाकत भांप कर युद्धविराम को पुनः लागू करना श्रेयस्कर समझा। आंतरिक संघर्षों के बिखराव की आशंकाओं का माहौल सी-पेक की योजना के अनुकूल नहीं रह गया है। साफ है कि भारत चीन-पाकिस्तान के रणनीतिक घेरेबंदी से बाहर निकल आया है। पहली बार हमारे सैन्य अधिकारियों ने वार्ताएं की हैं। चीन का वापस जाना पाकिस्तान को हतोत्साहित करने वाला है। पिछले पांच दशकों से दो मोर्चों पर जंग की आशंका भारत के लिए सरदर्द बनी रही है। चीन के बातचीत की मेज पर वापस लौटने से दो मोर्चों पर जंग की आशंकाएं फिलहाल सीमित हो गई हैं।

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