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1100 साल पुराना कुल 10 पत्थरों से बना शिव मंदिर
संजय वोहरा।
कश्मीर के पुलवामा ज़िले के पायर गांव में गहरे सलेटी रंग के पत्थरों से बने इस प्राचीन शिव मंदिर (Ancient Shiva Temple ) का यहां होना जितना हैरान करने वाला एक तथ्य है उससे ज्यादा हैरानी तब हुई जब हमें यहां जलाभिषेक और पूजा करते देखने के बाद गांव वालों ने कहा , " आप पहले दंपती हैं जिनको हमने यहां ऐसे पूजा करते देखा है. कम से कम पिछले 30 साल में तो यहां आकर ऐसा किसी ने नहीं किया." ये बात सुनकर एक तरह की संतुष्टि और थोड़ी ख़ुशी भी हुई लेकिन उससे कहीं ज्यादा उत्सुकता का भाव पैदा हो गया. जहन में सवाल कौंधा कि तकरीबन 1100 साल पुराने इस संरक्षित मंदिर में आखिर पूजा क्यों नहीं होती ? पता चला कि इस गांव में तकरीबन 300 परिवार हैं और सभी इस्लाम को मानने वाले हैं. ऐसे में स्वाभाविक है कि जब गांव में तो कोई सनातन धर्मी नहीं है तो पूजा कौन करेगा.. ! तो फिर क्या कुछ साल पहले तक गांव में कोई था जो मंदिर में पूजा करता था…या कोई हिन्दू परिवार जो शायद पलायन कर गया हो ? इस सवाल का जवाब भी हमें न में ही मिला. इसके बावजूद मंदिर का यहां होना ये शोध का विषय हो सकता है. लेकिन कश्मीर ( Kashmir) में मध्यकालीन वास्तु शिल्प कला ( Medieval Architecture ) का संरक्षित नमूना ये शिव मंदिर सही सलामत है ये दिलचस्प बात है और धार्मिक सौहार्द की सुखानुभूति भी कराती है.
गांव वाले बताते हैं कि पहले मंदिर का प्रांगण बिलकुल खुला था . यहां आवारा पशु भी घूमते रहते थे . बच्चे खेलते रहते थे और उनके लिए तो ये कोई खंडहर जैसा ही था. कुछ साल पहले शरारती तत्वों ने इस मंदिर को नुकसान पहुंचाने की कोशिश की थी जिन्हें गांव वालों ने ही रोक दिया था. भारतीय पुरातत्व विभाग ने 2002 में इसे संरक्षण में लेकर फेंसिंग करवाई . 2017 में इसकी मरम्मत आदि करवाकर जीर्णोद्धार करवाया गया. इसकी देखभाल की ज़िम्मेदारी अब गांव के ही एक शख्स के पास है जो पुरातत्व विभाग का कर्मचारी भी है. वही यहां की साफ़ सफाई करता है.
मंदिर भवन कुल 10 पत्थरों से बना है
पायर गांव ( payer village ) में जामा मस्जिद के करीब रिहायशी मकानों और घनी आबादी से घिरा ये मंदिर बेशक छोटा सा है जो बमुश्किल 100 वर्ग फुट में बना है लेकिन इसकी कई खासियत हैं. गांव में ही रहने वाले पुरातत्व विभाग के एक रिटायर्ड कर्मचारी मोहम्मद मकबूल बताते हैं कि मंदिर भवन कुल 10 पत्थरों से बना है. सम्भवत: बड़े आकार की शिलाओं को यहां लाकर काट छांट कर इसे तराश कर सुंदर आकृतियां बनाई गई. ये एक कक्ष वाला चौकोर मंदिर है जिसका प्रवेश द्वार पूर्व दिशा की तरफ है. तकरीबन एक एक फुट ऊँचीं 5 सीढ़ियां चढ़कर इसके भीतर प्रवेश किया जाता है और सामने ही बड़ा सा शिव लिंग लेकिन वो हलके रंग के पत्थर का है. मंदिर में आयताकार द्वार जैसे रास्ते को लांघकर प्रवेश किया जाता है और वैसे इसे दरवाज़े आदि से बंद करने का प्रावधान नहीं. सामने की दीवार की तरह ही बाकी तीनों दीवारों पर भी तकरीबन प्रवेश द्वार जितने बराबर के आकार की खिड़कीनुमा खाली जगह है.
मंदिर के प्रवेश द्वार और बाकी तीनों खिड़कियों के ऊपर त्रिभुजाकार में खुदाई करके शिव के विभिन्न स्वरूप बनाये गए हैं. एक में शिव के 3 सिर हैं जिसमें वे गणों के साथ हैं तो एक में 6 भुजा वाले नटराज के रूप में नृत्य करते शिव की आकृति उकेरी गई है. मंदिर की छत का हिस्सा दो स्तर वाले पिरामिड के आकार का है. छत के ऊपर पत्थर को तराश कर कमल का फूल बनाया गया है. दीवारों के बीच में पट्टियों का डिज़ायन बनाकर उन्हें तराशकर फूल पत्तियाँ बनाई गई हैं .
भारी भरकम पत्थरों को कैसे ऊंचाई तक ले जाया गया होगा
उस जमाने जब लिफ्ट जैसी तकनीक नहीं होती थी तब इतनी ऊंचाई भारी भरकम चट्टान जैसे पत्थरों को इतना ऊंचा उठाना और बिलकुल सीधा फिट करना या रखना कैसे मुमकिन होता होगा ? इस सवाल का जवाब पुरातत्व विभाग में सेवा का 37 का अनुभव रखने वाले पायर गांव के ही निवासी मोहम्मद मकबूल देते हैं. बताते हैं कि इस तरह के निर्माण के दौरान दीवार बनाने के लिए एक के ऊपर एक पत्थर रखने या छत तक की उंचाई तक पहुंचाने के लिए , जमीन से लेकर उतनी उंचाई तक पहले मिट्टी और पत्थरों से रैंप बनाये जाते थे फिर उनके सहारे खिसका कर भारी भरकम पत्थर ऊपर लाये जाते थे. शायद इस मंदिर के निर्माण में भी यही तरीका अपनाया गया होगा.
वैसे तो सारा मंदिर एक ही तरह के और एक ही रंग के पत्थरों से बना है लेकिन सीढ़ियां या बीच बीच में कुछ हिस्से ऐसे हैं जिसमें पत्थर के रंग या डिज़ायन में कुछ फर्क दिखाई देता है. असल में इसलिए क्योंकि जिस किसी जगह में ज्यादा टूट फूट या क्षति हुई , जीर्णोद्धार के दौरान मरम्मत करते वक्त मंदिर के उस हिस्से में काटकर और वैसा ही आकार देकर नया पत्थर लगाया गया. गौर से देखने पर ये फर्क महसूस होता है.
कश्मीर के प्राचीन मन्दिरों में से ये शिव मन्दिर पुलवामा ज़िले में ज़िला मुख्यालय से तकरीबन पांच किलोमीटर के फासले पर है. मंदिर के प्रांगण में लॉन बनाया गया है . इसके चारों तरफ दीवार और उसपर लोहे की जालीदार फेंस लगाई गई है. बाहरी हिस्से में लोहे का गेट लगा है जो सुरक्षा के नज़रिये से आमतौर पर बंद रखा जाता है. वजह ये है कि आमतौर पर यहां आना जाना नहीं होता. शोध या किसी ख़ास कारण से सरकारी कर्मचारी ही आते हैं ,तब इसे खोला जाता है. वैसे गेट के ताले की चाबी गांव में ही रहने वाले इसके केयर टेकर के पास होती है. उसकी अनुपस्थिति में चाबी मोहम्मद मकबूल के पास रहती है.
(डिस्क्लेमर: लेखक एक वरिष्ठ पत्रकार हैं. आर्टिकल में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं.)
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