सम्पादकीय

बाइडेन और कमला की जोड़ी

Gulabi
10 Nov 2020 4:30 AM GMT
बाइडेन और कमला की जोड़ी
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अमेरिका पूरी दुनिया में मानवीय मूल्यों का अलम्बरदार माना जाता था और इसे संभावनाओं के देश के रूप में पहचाना जाता था।

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। अमेरिका में डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार श्री जो बाइडेन को अपना अगला राष्ट्रपति चुनने के बाद इस देश की जनता ने चैन की सांस ली है क्योंकि निवर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने पूरी दुनिया में अमेरिका की छवि एक ऐसे देश के रूप में प्रस्तुत की थी जो इसकी उस अन्तरआत्मा के खिलाफ थी जिसके लिए यह देश अभी तक जाना जाता रहा है।

यह छवि अमेरिका समग्रता में विकसित राष्ट्र होने की थी जिसे श्री ट्रम्प ने अपनी नीतियों से संकुचित बना दिया था। इसका सबसे बड़ा प्रमाण अमेरिका में नस्लवाद या रंगभेद का पुनः सतह पर आना था। अमेरिका पूरी दुनिया में मानवीय मूल्यों का अलम्बरदार माना जाता था और इसे संभावनाओं के देश के रूप में पहचाना जाता था।

जिसके तहत कोई भी व्यक्ति अपनी प्रतिभा और लगन के बूते पर किसी भी ऊंचाई तक जा सकता था। इन चुनावों में भारतीय माता व अफ्रीकी पिता की सन्तान श्रीमती कमला हैरिस को उपराष्ट्रपति बना कर अमेरिकी जनता ने अपनी पुरानी पहचान को पुनः प्रतिष्ठापित करने का प्रयास किया है। अतः इन चुनावों को अमेरिकी अन्तरआत्मा की जागृति का चुनाव भी कहा जा रहा है।

इसके साथ ही श्री जो बाइडेन के हाथ में सत्ता सौंपते हुए इस देश के नागरिकों ने पूरे विश्व के लोगों को यह सन्देश भी दिया है कि अन्ततः विभाजनकारी शक्तियों के ऊपर समन्वयवादी एकतापरक ताकतें ही विजय प्राप्त करती हैं। श्री बाइडेन अमेरिका में प्रेम व भाइचारे के प्रतीक के रूप में देखे जा रहे थे।

अमेरिकी समाज विविधता की विशालता में एकता की तस्वीर पेश करने वाला समाज भी माना जाता है जिसमें रंग भेद या लिंग के आधार पर व्यक्ति की योग्यता की अनदेखी करने की कोई गुंजाइश किसी भी स्तर पर नहीं है।

इसीलिए इतिहास में पहली बार यहां के लोगों ने एक महिला को अपना उपराष्ट्रपति चुन कर नया इतिहास लिख दिया है और साथ ही 77 वर्ष के श्री बाइडेन को राष्ट्रपति बना कर यह भी सिद्ध कर दिया है कि उम्र का राजनीतिक योग्यता से कोई लेना-देना नहीं होता। श्री बाइडेन अमेरिका के अभी तक के सबसे बुजुर्ग राष्ट्रपति होंगे। इससे यह भी आभास होता है कि संकटकाल में फंस जाने पर उम्र का अनुभव भी विशेष योग्यता रखता है।

अमेरिकी चुनाव परिणामों के ये कुछ ऐसे सबक हैं जो लोकतान्त्रिक देशों की राजनीति पर भी लागू किये जा सकते हैं। ट्रम्प के प्रशासन को अमेरिकी जनता ने रूढि़वाद की तरफ झुकना माना था जिसकी वजह से उन्होंने डेमोक्रेटिक पार्टी को तरजीह दी क्योंकि इस पार्टी के सिद्धांत अपेक्षाकृत रूप से उदार व वैश्विक सन्दर्भों में प्रगतिशील माने जाते हैं, परन्तु हमें भारत के सन्दर्भ में श्री बाइडेन की विचारधारा से पैदा होने वाली नीतियों की तरफ गौर करना होगा।

कुछ विश्लेषकों का मानना है कि श्री बाइडेन की सरकार भारत के मामले में मानवीय अधिकारों पर जोर देते हुए जम्मू-कश्मीर मामले में सख्त रुख अपना सकती है। बेशक इस मामले मे श्री ट्रम्प की रिपब्लिकन पार्टी और श्री बाइडेन की पार्टी में गंभीर सैद्धांतिक अन्तर है मगर इस सबसे ऊपर किसी भी राष्ट्रपति के लिए अपने राष्ट्रीय हित ही सर्वोपरि रहेंगे जिन्हें देखते हुए श्री बाइडेन एक राष्ट्रपति के रूप में एक सीमा से बाहर नहीं जा सकते हैं क्योंकि एशियाई प्रशान्त क्षेत्र की राजनीति को देखते हुए भारत को अमेरिका की उतनी जरूरत नहीं है जितनी अमेरिका को भारत की जरूरत है।

इसकी मुख्य वजह चीन है जिसके साथ श्री ट्रम्प ने खुले रूप से 36 का आंकड़ा बना लिया था। सामरिक व व्यापारिक दोनों ही क्षेत्रों में श्री ट्रम्प ने चीन के साथ सीधे टक्कर मोल ले ली थी। जिसकी वजह से अमेरिका के आर्थिक हितों पर भी चोट पहुंच रही थी।

श्री बाइडेन की उदार नीतियों की वजह से इस तनाव में कमी आने की गुंजाइश रहेगी और वह चीन के साथ सम्बन्ध सुधारने के बिन्दुओं को खोजते हुए तनाव कम करने की कोशिश करेंगे परन्तु इस काम में उन्हें भारत की जरूरत होगी क्योंकि भारत अब अमेरिका का रणनीतिक सहयोगी देश है।

जहां तक पाकिस्तान का सवाल है तो श्री बाइडेन आतंकवाद के खिलाफ बहुत सख्त रुख अपना सकते हैं और अन्य मुस्लिम देशों खास कर ईरान के साथ अपने देश के सम्बन्धों को पुनः पटरी पर लाने का प्रयास कर सकते हैं और श्री ट्रम्प ने इसके साथ परमाणु सन्धि तोड़ कर जो आर्थिक व व्यापारिक प्रतिबन्ध लगाये थे उन्हें ढीला कर सकते हैं।

इसका लाभ भी भारत को होगा क्योंकि ईरान पर अमेरिकी प्रतिबन्धों के चलते भारत के साथ इसका व्यापार पूरी तरह ठप्प पड़ चुका है।

विश्व के अन्य मंचों पर भी अमेरिका अपनी अग्रणी भूमिका पुनः हथियाने का प्रयास कर सकता है क्योंकि श्री ट्रम्प ने पेरिस पर्यावरण सन्धि समेत विश्व स्वास्थ्य संगठन से अलग होकर अमेरिका को अपने दायरे में समेटने का प्रयास किया था परन्तु ये सब मामले एेसे हैं जिन पर श्री बाइडेन बाद में ध्यान देंगे।

सबसे पहले उन्हें अमेरिका की समस्याओं से ही निपटना पड़ेगा जो कोरोना संक्रमण से लेकर अर्थव्यवस्था को सुधारने व सामाजिक समरसता कायम करने की हैं। डोनाल्ड ट्रम्प ने अर्थव्यवस्था के मामले में जिस तरह संरक्षणवादी कदमों को लागू किया उससे सबसे बड़ा नुकसान विकासशील या तेजी से विकास करने वाले देशों को ही हुआ और अमेरिका को भी अपेक्षाकृत लाभ नहीं हो सका।

श्री बाइडेन की वरीयता जाहिर तौर पर घरेलू मसले ही रहेंगे मगर वैश्विक मसलों पर भी वह उन सिरों को पकड़ने का प्रायास अवश्य करेंगे जिन्हें श्री ट्रम्प ने तोड़ कर फेंक दिया था।

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