सम्पादकीय

पढ़े लिखों के बीच दर्दनाक होली

Rani Sahu
22 March 2022 7:09 PM GMT
पढ़े लिखों के बीच दर्दनाक होली
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पता नहीं ऐसा क्यों है कि जो मैं हूं नहीं, वह दिखने की कोशिश में सारे जरूरी काम छोड़ हरदम जुटा रहता हूं

पता नहीं ऐसा क्यों है कि जो मैं हूं नहीं, वह दिखने की कोशिश में सारे जरूरी काम छोड़ हरदम जुटा रहता हूं। मसलन, मैं पढ़ा लिखा नाम का ही हूं, पर कदम कदम पर मेरी कोशिश रहती है कि जैसे कैसे भी हो, मैं सबको गजब का पढ़ा लिखा दिखूं। इसी पढ़ा लिखा न होने के चलते पढ़ा लिखा दिखने के चक्कर में मैंने पंद्रह दिन पहले पढ़े लिखों से खचाखच भरी सोसाइटी में जेब से अधिक रेट में कमरा किराए पर ले लिया ताकि मुझमें उनकी जत मत नहीं तो कम से कम उनका रंग रूप ही आ जाए। तब इधर उधर बिन कहे यह मैसेज जाए कि मैं भी पढ़ा लिखा हूं। क्योंकि मैं पढ़े लिखों की सोसाइटी में जो रहता हूं। पर संयोग, इधर यहां कमरा बदला, उधर होली आ धमकी। कम पढ़ा लिखा होने के चलते मैं बचपन से ही त्योहार का ठेठ प्रेमी रहा हूं! सो, मैं होली की सुबह ही अपने सबसे पास के पढ़े लिखे दरवाजे पर जोगीरा सा रा रा रा, भोगीरा सा रा रा रा, मौजीरा सा रा रा रा करता एक से एक मेड इन चाइना के आर्गेनिक के नाम पर विशुद्ध रसायनों से भरपूर रंग लिए, होली मुबारक हो! होली मुबारक हो! दहाड़ता जा खड़ा, कुछ रंग अपने चेहरे पर खुद ही पोते ताकि कम से कम मेरे चेहरे को तो लगे कि आज होली है या फिर मेरे चेहरे पर पुते रंगों को देख इनको उनको सब पढ़े लिखों को लगे कि आज ही होली है।

पर दुखद! यों ही दोपहर के बारह बज गए। पर कोई पढ़ा लिखा बाहर न निकला। ये अति के पढ़े लिखे बाहर निकलें तो होली मुबारक हो! कहते उनके चेहरे पर थोड़ा बहुता चायनीज रंग लगाऊं। वैसे इन पंद्रह दिनों में ही मुझे हंडरेड परसेंट पता चल गया था कि कम से कम आज तो वे घर से लाख बाहर निकलने को ललकारने के बाद भी निकलने वाले नहीं। मित्रो! झूठ बोलने वाले कितने ही लाख सच कहें, पर कम पढ़ा लिखा होने के चलते अपना सीधा साधा सच तो यही है कि अब अपना तो बस, दिल ही कुछ कुछ हिंदुस्तानी बचा है, शेष सब तो चाइनीज है, फादर से लेकर गॉड फादर तक। वे चाइना को भले ही भर भर मुंह गालियां देते जितने स्वदेशी बने फिरते रहें, बने फिरते रहें, पर सच यह है कि हमारी भौतिक भूख को कोई शांत कर सकता है तो बस, चाइनीज माल ही। चाइनीज माल अपने माल से काफी सस्ता जो ठहरा, इसलिए मेरे जैसों की पॉकेट को बहुत सूट करता है।
रेट से अधिक चमकता दमकता है। और आज चमक दमक ही तो जिंदगी है। सिंपल लीविंग, हाई थींकिंग वालों को गधा भी घास नहीं डालता आजकल! जो चाइना और उसके माल का विरोध करते हैं, उनके घर जाकर देखिए, हर तीज त्योहार को वहां मेड इन चाइना गणेश महेश के पूजन में उनके आगे मेड इन चाइना के दीए ही जलते हैं। मेड इन चाइना के माल के बिना मेरे जैसों की भौतिक सुख सुविधाओं से मुक्ति नहीं। सो, मेड इन चाइना पिचकारी में स्वदेशी गटर का पानी भर पचासियों बार इनके उनके दरवाजे पर जम कर बेल बजाता रहा, पर सब भीतर लंबी तान कर जागे रहे। शायद! पढ़ने लिखने में व्यस्त हों! या कि उन्हें होली से कोई लेना देना न हो। मैं चीख चीख कहता रहा, 'भैया जी! बाहर निकलो प्लीज! हम यूक्रेन में नहीं, त्योहारों की लैंड हिंदुस्तान में हैं।' तब मैं पूरी होली जोगीरा सा रा रा रा, भोगीरा सा रा रा रा, मौजीरा सा रा रा रा हर कोठी के आगे अकेला ही चीख चीख गाता रहा, अकेला ही नाचता रहा। जब अकेला ही होली मना कर थक गया तो चुपचाप कमरे में जा उदास बैठ वहां से तुरंत कमरा शिफ्ट करने बारे में सीरियसली सोचने लग गया।
अशोक गौतम


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