- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- हिमाचली युवा संगीत...

संगीत के बिना जीवन अधूरा है या यूं कहें कि संगीत के बिना जीवन की कल्पना नहीं की जाती है। संगीत के बिना शिक्षा, शिक्षण संस्थानों, सृष्टि, संस्कृति तथा संस्कारों की परिकल्पना नहीं की जा सकती। यह एक नाद विद्या है जो इस ब्रह्माण्ड के कण-कण में व्याप्त है। भगवान श्री कृष्ण ने भी नारद मुनि के प्रश्न करने पर कहा था- 'नाहं वसामि वैकुंठे योगिनां हृदये न च। मद्भक्ता यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारद।' यानी हे देवर्षि नारद! मैं न तो बैकुंठ में निवास करता हूं और न ही योगीजनों के हृदय में मेरा निवास होता है। मैं तो सदैव उन भक्तों के पास रहता हूं जहां मेरे भक्त मेरा गायन करते हैं। निश्चित रूप से संगीत के बिना जीवन कुरूप है। यह व्यक्ति के संवेगों, भावनाओं तथा संवेदनाओं का प्रकटीकरण है। संगीत मनुष्य के संवेगात्मक विकास के लिए एक मुख्य घटक है। प्राचीन समय से वर्तमान शिक्षण पद्धति में संगीत मानवीय तथा व्यक्तित्व निर्माण का एक मुख्य अंग रहा है। संगीत ऋषि आश्रमों, गुरुकुलों तथा राज दरबारों में दी जाने वाली शिक्षा में प्रमुख विषय रहा है। कहा जा सकता है कि संगीत के बिना शिक्षा अपूर्ण एवं अधूरी है क्योंकि संगीत सम्पूर्ण एवं सर्वांगीण मानवीय विकास के लिए अति आवश्यक है। शास्त्रीय संगीत मुगल दरबारों की शोभा रहा है। भारतीय परम्परा में संगीत का शिक्षण, प्रचार तथा प्रसार विभिन्न घरानों में प्रकांड पंडितों तथा दिग्गज उस्तादों द्वारा होता रहा है। स्वतंत्रता के पश्चात संगीत गुरुकुलों तथा घरानों से निकल कर संस्थागत शिक्षण पद्धति में शामिल हुआ। भारतीय तथा अंग्रेजी शिक्षण पद्धति में संगीत अनिवार्य रूप से एक विषय के रूप में पढ़ाया जाता रहा है।
