सम्पादकीय

पलायन का दर्द

Subhi
29 Oct 2022 6:21 AM GMT
पलायन का दर्द
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खबरों के मुताबिक कश्मीर के शोपियां जिले के दस कश्मीरी पंडित परिवार अपना गांव छोड़ कर जम्मू पलायन कर गए हैं। विगत दो हफ्तों में हुई लक्षित आतंकवादी हत्याओं के बाद से ही लोगों में इतना भय व्याप्त है

Written by जनसत्ता; खबरों के मुताबिक कश्मीर के शोपियां जिले के दस कश्मीरी पंडित परिवार अपना गांव छोड़ कर जम्मू पलायन कर गए हैं। विगत दो हफ्तों में हुई लक्षित आतंकवादी हत्याओं के बाद से ही लोगों में इतना भय व्याप्त है कि वे पलायन के लिए मजबूर हो गए। स्थानीय बाशिंदों का कहना है कि जो लोग 1990 में हुए सामूहिक पलायन के समय भी अपने पुश्तैनी घरों में ही रहे थे, उनमें भी इतना अधिक भय व्याप्त है कि वे अपना गांव छोड़ने के लिए मजबूर हैं।

यह स्थिति निश्चित ही बहुत चिंताजनक है, क्योंकि केंद्र सरकार द्वारा अनेक विरोधाभासी दावे किए जाने के बाद भी इस प्रकार की अप्रिय घटनाएं देखने को मिल रही हैं। कश्मीरी पंडित लंबे समय से अपनी सुरक्षा की मांग कर रहे हैं, लेकिन सरकार के बार-बार दोहराए जाने वाले आश्वासनों के बावजूद लक्षित हत्याओं का सिलसिला बदस्तूर जारी है। करीब बत्तीस वर्ष पूर्व कश्मीरी पंडितों ने जम्मू के शिविरों में इसलिए पनाह ली थी कि उन्हें निशाना बनाकर मौत के घाट उतारा जा रहा था।

दुखद स्थिति यह है कि आज भी कश्मीरी पंडितों को लक्ष्य करके उनकी हत्याएं करी जा रही हैं। इस बीच केंद्र और राज्य में कई सरकारें बदलीं और सबका वादा यही रहा कि कश्मीरी पंडितों का पुनर्वास कराया जाएगा। इसके लिए अनेक प्रयास भी हुए, लेकिन स्थिति लगभग जस की तस ही दिखाई देती है। पंडितों का ताजा पलायन आतंकवादी संगठनों का मनोबल बढ़ाने वाली घटना है।

संक्षेप में कहा जाए तो कश्मीर में केंद्र द्वारा किए जा रहे सभी प्रयास अभी अपर्याप्त साबित हो रहे हैं। कश्मीरी पंडितों की सुरक्षा और उनके सुरक्षित पुनर्वास के लिए युद्ध स्तर पर नए सिरे से कोशिशें होनी चाहिए। इस संबंध में मौजूदा प्रयासों से संतुष्ट होकर अथवा परिस्थितियों की अनदेखी करके उन्हें टालते रहना कोई उचित विकल्प नहीं ह

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