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- पेड हंगामा, अनपेड...

जवानी में बिगड़े और सावन में हुए सांड कभी नहीं सुधरते। वे भी जवानी के दिनों के बिगड़े हुए हैं। अभी तक तो उनमें सुधरने के कोई आसार दिख नहीं रहे, मरने के बाद सुधर जाएं तो कुछ कहा नहीं जा सकता। अपनी जवानी के दिनों में वे खूब हंगामे किया करते थे। स्कूल, कॉलेज से लेकर सड़क तक। सोचा था, इनके थू्र राजनीति में एंट्री मार लेंगे। राजनीति का रास्ता हंगामों, कूट पीट कर करवा के बीच से होकर ही जाता है। राजनीति में जाने के लिए पढ़ाई लिखाई जरूरी नहीं, बात बात पर हंगामा खड़ा करना अनिवार्य योग्यता है। पर बात न बनी। उनसे जो हंगामें करवाया करते थे, वे उनके हंगामों के बूते उनके किए हंगामों की सीढ़ी से चढ़ राजनीति में फिट हो गए और वे रह गए वहीं के वहीं, मुहल्ला छाप हंगामानवीस! इन्हीं बंधु ने कल फिर मुहल्ले में हंगामा खड़ा कर दिया। वैसे मुहल्ले में हंगामा करना उनके लिए आम है। वे जितनी कुशलता से बेबात का हंगामा खड़ा कर देते हैं वैसा बात होने पर नहीं कर पाते। शायद हंगामा करने को मुद्दे की उतनी जरूरत नहीं होती जितनी माद्दे की होती है। किसी के नल में जल प्रेशर से आ गया और उनके नल में जल उससे कम प्रेशर में आया तो हंगामा! पड़ोसी के घर के आगे मुहल्ले के कुत्ते फारिग न होकर उनके घर के आगे पेट खाली कर गए तो हंगामा!
