सम्पादकीय

आठ अरब के पार

Subhi
16 Nov 2022 5:13 AM GMT
आठ अरब के पार
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इस लिहाज़ से यह चिंता की बात जरूर है क्योंकि कुछ दशकों से बढ़ती आबादी पर चिंता जताई जाती रही है। दशकों तक जनसंख्या नियंत्रण के उपायों पर चर्चा भी होती रही है। इस तरह जनसंख्या बढ़ने के नए आंकड़े पर सोच-विचार जरूर होना चाहिए। लेकिन यहां गौर करने की बात यह है कि पिछले कुछ दशकों में दुनिया में जन्मदर कम होते जाने का रुख है।

Written by जनसत्ता: इस लिहाज़ से यह चिंता की बात जरूर है क्योंकि कुछ दशकों से बढ़ती आबादी पर चिंता जताई जाती रही है। दशकों तक जनसंख्या नियंत्रण के उपायों पर चर्चा भी होती रही है। इस तरह जनसंख्या बढ़ने के नए आंकड़े पर सोच-विचार जरूर होना चाहिए। लेकिन यहां गौर करने की बात यह है कि पिछले कुछ दशकों में दुनिया में जन्मदर कम होते जाने का रुख है।

जनसांख्यिकीय विश्लेषण में निकल कर आया कि सन 1950 के बाद इस समय जन्मदर अपने सबसे कम स्तर पर है। यानी पिछले दशकों में जनसंख्या नियंत्रण के उपायों के कारगर रहने पर हम संतोष कर सकते हैं। ऐसे में यह सवाल उठना लाजिमी है कि फिर उम्मीद से ज्यादा आबादी किस कारण से बढ़ रही है। इसका जवाब यह दिया जा रहा है कि दुनियाभर की सरकारों के अच्छे कामों से नागरिकों के जीने की औसत उम्र बढ़ गई है। जनसंख्या बढ़ोतरी का कारण अगर स्वास्थ्य सेवाओं का बढ़ना और जीवन स्तर बेहतर हो जाना हो तो हम अब किस आधार पर आबादी के नए आंकड़े पर अफसोस जता पाएंगे!

इस बात से भी कोई इनकार नहीं कर सकता कि कई देशों की सरकारें अपने नागरिकों की न्यूनतम जरूरतों को पूरा करने में बड़ी कठिनाई महसूस कर रही हैं। पानी और भोजन की कमी हो, या वाहनों से पैदा होने वाला प्रदूषण, ऐसी समस्याओं के लिए सबसे आसान तर्क बढ़ती आबादी का ही दिया जाता है। लेकिन अगर विश्व में जन्मदर का लक्ष्य कमोबेश हासिल कर लिया गया हो तो अब समस्याओं के समाधान के लिए दूसरा और कौनसा तरीका हो सकता है? दुनियाभर के विकास विशेषज्ञों के सामने अब सबसे बड़ी चुनौती यही है कि वे अपनी न्यूनतम आकार की आबादी की न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए विकास का नया माडल खोजें।

हालांकि कुछ विद्वानों को लग सकता है कि जनसंख्या घटोतरी के लिए जन्मदर को और नीचे लाया जा सकता है। लेकिन गौर करने की बात यह है कि कई देशों में विकास का चक्का घुमाने वाले युवकों की आबादी कम हो रही है। विशेषज्ञों के मुताबिक एक स्तर से ज्यादा जन्मदर नहीं घटाई जा सकती। वरना भविष्य में युवा कम पड़ने लगेंगे। यानी आबादी का मामला इतना आसान नहीं है।

जहां तक सिर्फ अपने देश की बात है तो बढ़ती जनसंख्या के रुख में यह भी बताया गया है कि भारत की आबादी दुनिया में सबसे बड़ी आबादी वाले चीन से भी ज्यादा होने को है। यह बात चैंकाने वाली इसलिए है कि यह अनुमान नहीं लगाया गया था कि ऐसी स्थिति इतनी जल्द आ जाएगी। हालांकि भारत जन्मदर को काबू करने का दावा कर रहा है। साथ ही जीने की औसत उम्र भी बढ़ने की बात है।

बेशक पृथ्वी पर इच्छाओं की पूर्ति के लिए संसाधन कम हैं, लेकिन मानव की बुनियादी जरूरतों के लिए संसाधन इतने भी कम नहीं हैं। जहां तक उपलब्धता का सवाल है तो प्रकृति की देन से हमारे पास पर्याप्त जल है। उचित प्रबंधन से हम उसे उपयोग के लायक बना लेंगे। हमारे पास पर्याप्त अनाज उत्पादन की सामर्थ्य भी है। हम मौजूदा प्रौद्योगिकी के सहारे ही दशकों तक भोजन के लिए निश्चिंत रह सकते हैं। इसलिए भविष्य के लिए हमें चिंता नहीं बल्कि चिंतन की जरूरत है।


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