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- कालेज तक पसरा आक्रोश

शिक्षा के कर्म ने शिक्षक को भी नौकर बना दिया, वरना गुरु की पाठशाला में कभी नैतिकता भी पढ़ती थी। यहां मसला यह नहीं कि समाज के किसी एक वर्ग के कंधे पर नैतिकता सवार कर दी जाए, लेकिन कहीं तो आईने जमीर के भी रहे होंगे। काफी समय से यूजीसी स्केल को लेकर विश्वविद्यालयों के भीतर प्राध्यापकों के सब्र का पैमाना टूट रहा था और अब तो कालेज तक पसरे आक्रोश ने धीरे-धीरे शिक्षा को ही कठघरे में खड़ा कर दिया। एक मांग जल्लाद भी हो सकती है या इतना विवश कर सकती है कि शिक्षा खुद उन्हीं से माफी मांगे जो इसके पुरोधा हैं या जिनके कारण शिक्षा का श्रृंगार होता है। कालेज शिक्षा को सांकल लगाता एक आंदोलन प्रदेश के 137 सरकारी महाविद्यालयों की मिट्टी पर खड़ा ऐसा आक्रोश भी है, जो सरकारी नीतियों के द्वंद्व में खुद को कुरुक्षेत्र मान लेता है। कालेज शिक्षकों के लिए यह धर्मयुद्ध हो सकता है, लेकिन वहां सारे ताज और तिलक बिखर कर उसी युवा पीढ़ी को दर्द देंगे जिसके कारण समाज, प्रदेश और राष्ट्र अपने भविष्य की पैरवी कर रहे हैं। जाहिर है आंदोलन का रास्ता इतना आसान नहीं होगा जो यूजीसी स्केल की खातिर, सारे विराम शिक्षा के प्रांगण में पैदा हो जाएं या पढ़ाई का माहौल ठहर जाए। कालेज व विश्वविद्यालय के शिक्षक संगठन अपनी वकालत में इन्हीं विसंगतियों की तरफ इशारा करते हैं। कालेज शिक्षकों की मांगों के औचित्य पर प्रश्र इसलिए भी नहीं उठता, क्योंकि वे करियर में व्यक्तिगत उपलब्धियों के लिए उपयुक्त स्थान चाहते हैं।
सोर्स -divyahimachal
