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Written by जनसत्ता: प्रधानमंत्री ने पिछले दिनों अपने मन की बात कार्यक्रम में बहुत व्यथित होकर भ्रष्टाचार पर काबू न पाए जा सकने पर चिंता जाहिर की। इसे रोकने के लिए युवाओं को मदद के लिए आगे आने का आह्वान किया। मगर यह कितना फलीभूत हो पाएगा, कहना मुश्किल है। हर साल दुनिया के देशों में भ्रष्टाचार की स्थितियों का आकलन पेश होता है, जिसमें भारत लगातार नीचे के पायदान पर खिसकता नजर आता है।
इसकी बड़ी वजह यह है कि हमारे यहां भ्रष्टाचार जैसे लोगों की रग-रग में व्याप्त हो चुका है, जिसकी सफाई आसान नहीं लगती। स्थिति यह है कि लोगों को अपने ही खाते से अपनी गाढ़ी कमाई की बचत निकालने के लिए रिश्वत देनी पड़ती है। इसका ताजा उदाहरण आंध्र प्रदेश के गुंटूर में कर्मचारी भविष्य निधि के दफ्तर में केंद्रीय जांच ब्यूरो यानी सीबीआइ के औचक छापे से सामने आया है। पता चला कि वहां के कर्मचारी भविष्य निधि कार्यालय के अधिकारी रिश्वत लेकर कर्मचारियों को पैसे निकालने की मंजूरी देते हैं। यह रिश्वत वे पेटीएम, पे-फोन जैसे अपने डिजिटल खातों में डलवाते थे।
कोविड महामारी के दौरान जब बहुत सारे लोगों के सामने रोजगार का संकट पैदा हो गया, बहुत सारे लोगों की नौकरियां चली गर्इं, तो उन्हें परिवार चलाने, बच्चों की फीस या कर्ज की किस्त भरने के लिए अपने भविष्य निधि खाते से पैसा निकालने के अलावा कोई चारा न था। हालांकि सरकार ने इसके लिए नियम लचीला कर दिया, पर भ्रष्ट अधिकारी अपनी जेब भरने के लोभ में भला कहां नियम-कायदों और दूसरों की मजबूरी समझते हैं।
भविष्य निधि खाते में लोग पैसा इसलिए बचा कर रखते हैं कि जब वे नौकरी से अवकाश ग्रहण करेंगे, तो जीवनयापन में मददगार साबित होगा। इसके अलावा, अगर कभी बीच में बच्चों के विवाह, मकान बनाने आदि में पैसे की जरूरत पड़ेगी, तो निकाल सकते हैं। मगर महामारी ने बहुत सारे लोगों के सामने रोजमर्रा की जरूरतें पूरी करने तक का संकट पैदा कर दिया। आंकड़े बताते हैं कि कोरोना काल में जिन लोगों ने भविष्य निधि खाते से पैसे निकाले, उनमें से ज्यादातर निम्न आयवर्ग के थे।
ऐसे लोगों को उन्हीं का कमाया पैसा निकालने की इजाजत देने में भविष्य निधि दफ्तर के अधिकारियों ने अड़ंगे डाले और रिश्वत लेकर पैसे जारी किए। यों भविष्य निधि खाते से पैसा निकालने को लेकर कुछ नियम-कायदे हैं। वहां से उसी तरह पैसा नहीं निकाल सकते, जिस तरह अपने बैंक खाते से निकाल सकते हैं। दो दृष्टियों से ऐसे नियम बनाए गए हैं। एक तो यह कि कर्मचारी इसे अनावश्यक कार्यों में खर्च कर अपना भविष्य लाचार न बना बैठें और दूसरा यह कि इससे राष्ट्रीय बचत को बल मिलता है। मगर इसके बावजूद कई लोग इन नियमों को तोड़ने का प्रयास करते हैं। भविष्य निधि कार्यालय के कर्मचारी इसी का लाभ उठाते हैं।
मगर भ्रष्टाचार की लत केवल उन्हीं लोगों को निशाना नहीं बनाती, जो नियम तोड़ने का प्रयास करते हैं। वह हर किसी को कोई न कोई नुक्ता निकाल कर फांसने का प्रयास करती है। जो वास्तव में ईमानदार है, वह नियमों की किसी भी रूप में न तो अनदेखी करेगा और न किसी को करने देगा। मगर कर्मचारी भविष्य निधि के दफ्तरों में यह रिवाज की तरह चल पड़ा है कि अगर कोई सामान्य आदमी नियम के मुताबिक भी अपना पैसा निकालने जाता है, तो उसे कर्मचारियों, अधिकारियों की तनी हुई भृकुटि का सामना करना ही पड़ता है।