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जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सोशल मीडिया साइट्स की निगरानी दिन-प्रतिदिन आवश्यक होती जा रही है। एक संप्रभु देश की आजादी और उदारता के साथ ट्विटर ने जो खिलवाड़ किया, उसका जवाब कुछ देर से ही सही, भारत सरकार के आईटी सचिव ने दे दिया है। करीब तीन दिन पहले ही ट्विटर की कमी सामने आ गई थी और नागरिक स्तर पर ही काफी विरोध के बाद ट्विटर ने अपनी बड़ी खामी को तकनीकी कमी बताकर बचने की कोशिश की थी। भारत में लोकप्रिय हो चुकी एक सोशल साइट का ऐसा चलताऊ नजरिया भत्र्सना-लायक है। यह पहली बार नहीं है कि लेह-लद्दाख के क्षेत्र को ट्विटर न केवल जम्मू-कश्मीर का हिस्सा बता रहा है, बल्कि जम्मू-कश्मीर को रिपब्लिक ऑफ चाइना में दिखा रहा है। इस मामले में ट्विटर की कोशिश अनजान बने रहने की लगती है, इसलिए नागरिकों की शिकायत की उसे ज्यादा परवाह नहीं है। भारत में लद्दाख आज केंद्र शासित प्रदेश है, जिसकी राजधानी लेह है। लद्दाख अब कतई जम्मू-कश्मीर का हिस्सा नहीं है। अव्वल तो ट्विटर ने अभी तक लद्दाख को केंद्र शासित प्रदेश नहीं माना है, इसके बावजूद यह कंपनी भारत में सेवाएं दे रही है? दूसरी बात, लेह को जम्मू-कश्मीर का हिस्सा बताना और साथ ही चीन में बता देना तो देश की संप्रभुता के साथ खिलवाड़ है।
अगर किसी एक कंपनी को हम अपने देश के नक्शे से खिलवाड़ करने देंगे, तो फिर अराजकता फैलने से कैसे रोकेंगे? क्या हमारी खुफिया या आईटी एजेंसियों को इस बात का एहसास नहीं है कि लेह-लद्दाख को चीन का हिस्सा कैसे दर्शाया जा सकता है? जो दावा साम्राज्यवादी चीन भी नहीं करता, उसे कोई कंपनी अपने ग्राहकों को कैसे दुस्साहस के साथ दिखा-बता सकती है? उस कंपनी में कौन लोग हैं, जिन्हें न भारत के भूगोल का ज्ञान है, न इतिहास का? संप्रभुता के साथ ऐसे खिलवाड़ को कतई हल्के में नहीं लेना चाहिए। नागरिकों को यह शिकायत का मौका नहीं मिलना चाहिए, यह देखना स्वयं सरकार का काम है कि कोई भी कंपनी अगर भारत में सेवा दे, तो वह भारतीय भूगोल, इतिहास और संविधान की पालना करे। यह सवाल बड़ा है कि क्या ट्विटर यही हिमाकत चीन में कर सकता है? क्या ऐसी हिमाकत अमेरिका में मुमकिन है? जब इन देशों के साथ खिलवाड़ संभव नहीं, तब भारत के साथ क्यों? विदेशी कंपनियों को भारत के बड़े बाजार का लाभ देते हुए भारत की उदारता का भी लाभ कतई नहीं देना चाहिए, जबकि ऐसा लगता है कि वे अधिकतम सीमा तक लाभ ले रही हैं। बेशक, विदेशी मूल की कंपनियां भारतीय गरिमा को लेकर बाद में जागेंगी, पहले भारतीय एजेंसियों को आंख-कान खुले रखने होंगे।
ठीक इसी तरह की शिकायत कई बार अरुणाचल प्रदेश से भी आती है, जहां चीन निर्मित कुछ मोबाइल सेट और उसके कुछ ऐप भारत की बजाय चीन की सेवा के लिए उत्सुक नजर आते हैं। ऐसे मामलों को बहुत गंभीरता से लेने की जरूरत है। जो कंपनियां बहुत सफाई से तकनीकी खामी का बहाना बनाकर किसी और देश की चौधराहट को तुष्ट कर रही हैं, उन्हें बहुत साफ तौर पर कड़ा संदेश देना होगा। जब सूचना युद्ध चल रहा है, तब साइबर संसार में अपने क्षेत्र की रक्षा करना हमारा दायित्व है। साइबर संसार में अगर हम हार मान लेंगे, तो असली संसार में हमारे लिए मुसीबतें बढ़ती चली जाएंगी।