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- जंग में तब्दील होते...
विभूति नारायण राय, पूर्व आईपीएस अधिकारी | एक पुरानी कहावत है कि युद्ध पहले दिमाग में लड़ा जाता है, और भाषा उसकी सबसे बड़ी हथियार होती है। भाषा के चतुर इस्तेमाल से ही अपने सैनिकों को समझाया जा सकता है कि सामने खड़ा व्यक्ति उसका दुश्मन है और उसे मार डालना एक पवित्र कर्तव्य है। बरसों पहले एक सीमावर्ती चौकी पर खड़े हुए जवान का जवाब हमेशा मेरे कानों में गूंजता है। पूछे जाने पर कि उसकी जिम्मेदारी क्या है, उसे जो एक पैराग्राफ मश्क कराया गया था, उसका अंत हुआ इन दो वाक्यों के साथ कि 'अंतिम सांस और अंतिम गोली तक लड़ता रहूंगा। बगैर कमांडर के हुक्म के मोर्चा नहीं छोड़ूंगा श्रीमान।' भाषा उसके अंदर इस कदर रची-बसी थी कि युद्ध में निर्णायक क्षण आने पर निस्संदेह वह उसको जिएगा भी। युद्ध पहले भाषा के स्तर पर ही लड़ा जाता है। नागरिक समाज के कुछ आंदोलन भी युद्ध जैसे ही क्षैतिज बंटवारे करते हैं, इसलिए उनमें भी भाषा का युद्ध जैसा ही प्रयोग होता है। मैंने राम जन्मभूमि आंदोलन के दौरान भाषा में आए इन परिवर्तनों को करीब से देखा है।