सम्पादकीय

ओटीटी प्लेटफॉर्म: अनूठी रचनात्मकता के चक्कर में विश्वसनीयता खो रहा एक प्लेटफॉर्म

Rani Sahu
9 Sep 2021 9:27 AM GMT
ओटीटी प्लेटफॉर्म: अनूठी रचनात्मकता के चक्कर में विश्वसनीयता खो रहा एक प्लेटफॉर्म
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पिछले साल आई महामारी ने सिर्फ़ हमारे जीने के ही नहीं बल्कि मनोरंजन के साधनों के भी तौर-तरीके बदल दिए हैं

रमीज अली । पिछले साल आई महामारी ने सिर्फ़ हमारे जीने के ही नहीं बल्कि मनोरंजन के साधनों के भी तौर-तरीके बदल दिए हैं। पिछले डेढ़ साल के अगर मनोरंजन जगत के आँकड़े बोलते हैं की ओवर द टॉप प्लेटफॉर्म यानी ओटीटी के दर्शकवर्ग में जबरदस्त इज़ाफ़ा हुआ है।

हालांकि ऐसा नहीं है कि डेढ़ साल पहले ओटीटी प्लेटफॉर्म का कोई वजूद नहीं था लेकिन महामारी के कहर के चलते जब लोग अपने आपको घरों में क़ैद करने को मजबूर हो गए, फ़िल्मो की रीलीज़ पर रोक लग गई और सिनेमाघरों पर ताले लटक गए, तब ओटीटी प्लेटफॉर्म ही मनोरंजन का सबसे बड़ा साधन बन कर उभरा।
अब लोग फ़िल्म और सीरीज़ देखने नहीं बल्कि बिंज करने लगे। ओटीटी प्लेटफॉर्म मनोरंजन के रसिकों के लिए किसी परीलोक सरीखा था। जहां ना नए विषयों की कमी थी ना सेंसरशिप का कोई झंझट। दर्शकों ने भी इस नए प्लेटफॉर्म को हाथों-हाथ लिया। समय के साथ-साथ इसका दायरा बढ़ता गया।
लॉकडाउन ने बदल दी दर्शकों की दुनिया
अमिताभ बच्चन से लेकर सलमान ख़ान तक और अक्षय कुमार से लेकर अजय देवगन तक, हर किसी को इस कठिन समय में इस मंच ने संजीवनी दी। ख़ैर, इन बड़े सितारों ने मजबूरी में अपनी फ़िल्मो को डिजिटल प्लेटफॉर्म पर रीलीज़ किया, लेकिन अभिषेक बच्चन, सैफ़ अली ख़ान नवाजुद्दीन सिद्दीक़ी, प्रियंका चोपड़ा और राजकुमार राव सरीखे स्टार उन प्रोजेक्ट्स का हिस्सा बने जो विषेकर इस मंच के लिए ही बने थे।
जाहिर है ओटीटी अब सिर्फ़ संभ्रांत लोगों के मनोरंजन का हिस्सा भर नहीं रहा अब ये आम जनमानस में भी सर्वस्वीकार्य है। दर्शकों के कुछ हटके देखने की भूख को डिजिटल प्लेटफॉर्म ने काफ़ी हद तक शांत किया।
साइंस फ़िक्शन, पीरियड ड्रामा और साइकोलॉजिकल हॉरर की आस लगाए दर्शक तो ख़ुद को ठगा हुआ महसूस कर रहें हैं। - फोटो : Istock
ठहर गई है मनोरंजन की डिजिटल दुनिया
हालांकि बदलाव के इस दौर में पता नहीं कौन सा श्राप है, कि मंच चाहे कोई भी हो भारत का मनोरंजन जगत भेड़ चाल का शिकार हो ही जाता है। अगर हालिया ट्रेंड को ध्यान से देखें तो पाएंगे कि अब मनोरंजन की डिजिटल दुनिया भी घिसी-पिटी लीक पर चल रही है। घुमा-फिराकर पॉलिटिकल और क्राइम थ्रिलर को ही सेक्स और गालियों का तड़का लगा कर परोसा जा रहा है। बचा-खुचा स्पेस एरोटिक थ्रिलर के लिए रख छोड़ा गया है। उल्लू और आल्ट बालाजी जैसे ओटीटी चैनल तो बस गालियों और सेक्स के भरोसे ही चल रहें हैं।
साइंस फ़िक्शन, पीरियड ड्रामा और साइकोलॉजिकल हॉरर की आस लगाए दर्शक तो ख़ुद को ठगा हुआ महसूस कर रहें हैं। विषयवस्तु को लेकर जोखिम उठाने की अपेक्षा चालू फॉर्मूला को अपनाने का चलन अब इधर भी दिख रहा है।
ओटीटी ने भारतीय जनमानस के द्वार पर शानदार दस्तक दी थी। सास बहू के रसोई राजनीति और बॉलीवुड की घिसी-पिटी फॉर्मूला फ़िल्मों से त्रस्त जनता के लिए ओटीटी किसी ताज़ा हवा के झोंके से कम न थी। लेकिन अब माहौल कुछ बदला-बदला सा है। ओटीटी प्लेटफॉर्म पर दोहराव की मार साफ़ दिख रही है। नए विषयों पर बड़े चेहरों को लेकर दोयम दर्जे का कंटेंट बनाने के चक्कर में ये मंच अपनी विश्वसनीयता भी खो रहा है।
ऐसे कई वेब सीरीज़ और वेब मूवी आईं जिनकी स्टार कास्ट और भव्यता पर तो बहुत ध्यान दिया गया, लेकिन कहानी नई बोतल में पुरानी शराब जैसी लगीं।
ईमानदारी से कहा जाए तो-
सबसे ज़्यादा निराश उन्ही फ़िल्मो और सीरीज़ ने किया है जिनसे बॉलीवुड के बड़े-बड़े नाम जुड़े थे। चाहे सैफ़ अली ख़ान अभिनीत और टाइगर ज़िंदा है के निर्देशक अब्बास अली ज़फर द्वारा निर्देशित सीरीज़ तांडव हो या फिर सदाबहार अभिनेत्री तब्बू का डिजिटल डेब्यू अ सूटेबल ब्वाय, मामला नाम बड़े और दर्शन छोटे का ही रहा।
ओटीटी प्लेटफॉर्म: तो क्या 'कुछ हटके' देखने की इच्छा रखने वालों को फिर से निराश होना पड़ेगा? - फोटो : Istock
क्या दर्शकों को कुछ नया देखने को मिलेगा?
आमतौर पर इस बात पर भी हो-हल्ला मचता रहा है कि बेमतलब की सेंसरशिप मनोरंजन जगत की रचनात्मकता को नुकसान पहुंचा रही है। इस मंच के डिजिटल होने का सबसे बड़ा फ़ायदा य़े था कि यहां सेंसरशिप का कोई चक्कर नही था। लेकिन निर्माताओं ने सेंसरशिप की गैरमौजूदगी का कोई ख़ास रचनात्मक फ़ायदा नहीं उठाया बल्कि अपने विषय को बेमतलब की गालियों, सेक्स दृश्य और हिंसा से भर दिया।
कुल मिलाकर दर्शकों को कुछ सफ़ल वेब सीरीज़ के सीज़न 1,सीज़न 2 सीज़न 3 के नाम पर भरमाया जा रहा है। और कभी-कभी ये सीज़न 1-2 की नौटंकी भी खीज पैदा करती है। ऐसा लगता है कि ये कहानियों को विस्तार देने के लिए नही बल्कि सीरीज़ का नाम भुनाने की कवायद भर है। कुछ अधूरी शृंखलाओं के सीज़न 2 तो आए ही नहीं।
तो क्या 'कुछ हटके' देखने की इच्छा रखने वालों को फिर से निराश होना पड़ेगा? फ़िलहाल इसका जवाब देना जल्दबाज़ी ही कहलाएगी। लेकिन ये तो स्पष्ट दिख रहा है कि कहीं न कहीं डिजिटल प्लेटफॉर्म भी कंटेंट को लेकर भटक रहा है।
हालांकि इस बात से भी इनकार नही किया जा सकता कि इस मंच पर आज भी कुछ ऐसी अद्भुत रचनाएं देखने को मिल रहीं हैं जिन्हें रचने में मनोरंजन के पारंपरिक माध्यम अपेक्षाकृत नाकाम रहे हैं और ये रचनात्मकता ही वो कारण है जिसने दर्शकों को इस मंच की ओर आकर्षित किया था और अभी भी कर रही है।
लेकिन दोहराव को दर्शक कब तक स्वीकारता रहेगा? इसी दोहराव और दोयम दर्जे की विषयवस्तु से ऊबकर ही दर्शक टेलीविजन और सिनेमा जैसे परंपरागत मनोरंजन के साधनों से विमुख हुआ था। अब अगर यहां भी उन्हें वही चीज़ मिले तो उनके पास कौन सा विकल्प बचता है?
कहीं इस मंच के कर्ता-धर्ताओं को ये ग़लतफ़हमी तो नहीं कि अब दर्शकों के पास हम ही इकलौते विकल्प हैं तो हम जो दिखाएंगे उन्हें देखना पड़ेगा? अगर ऐसा है है तो उन्हें याद दिलाना चाहूंगा की कुछ साल पहले भारतीय टेलीविज़न के दिग्गजों को भी यही गफ़लत थी। आज भारतीय टेलीजगत का हश्र सामने है।
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): यह लेखक के निजी विचार हैं, जो एक वरिष्ठ खेल पत्रकार हैं। आलेख में शामिल सूचना और तथ्यों की सटीकता, संपूर्णता के लिए अमर उजाला उत्तरदायी नहीं है। अपने विचार हमें [email protected] पर भेज सकते हैं। लेख के साथ संक्षिप्त परिचय और फोटो भी संलग्न करें।


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