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भारतीय संस्कृति हमें मिलने वाली हर चीज के प्रति कृतज्ञ बनाती है
divyahimachal . फिर चाहे चाय-कॉफी की जगह नींबू चाय, हर्बल चाय तथा काढ़ा हो या जंक फूड की जगह पौष्टिक भोजन हो, बड़े पैमाने पर लोगों ने हेल्दी डाइट व हेल्दी लाइफ के मंत्र को अपनाया है…
भारतीय संस्कृति हमें मिलने वाली हर चीज के प्रति कृतज्ञ बनाती है। भारतीय संस्कृति हमें सिखाती है कि विश्व में हर वस्तु सम्माननीय एवं गुणकारी है। इसलिए हम भारतीय हर एक चीज की इज्जत व मान-सम्मान करते हैं। इसी तरह भारतीय संस्कृति में भोजन को भी हम पूजनीय मानते हैं और उसको ग्रहण करने से पहले हम भोजन को ईश्वर स्वरूप मानकर मंत्रोच्चारण कर इसको सम्मान प्रदान करते हैं। भोजन मंत्र के अर्थ को संक्षेप में समझें तो इसमें हम ईश्वर को भोजन प्रदान करने के लिए धन्यवाद कहते हैं और कहते हैं कि जिस प्रकार आपने हमें भोजन प्रदान किया है, उसी प्रकार प्रकृति के हर एक प्राणी को भी भोजन प्रदान करें। ऐसा भी माना जाता है कि इस मंत्र के जाप से तन व मन की शुद्धि होती है तथा पाचन तंत्र सुचारू रूप से कार्य करता है। भोजन अगर सही तरीके से पाचन होता हो तो शरीर में नव ऊर्जा का निर्माण भी होता है। भारत में स्वस्थ भोजन की गौरवशाली परंपरा रही है। भारतीय संस्कृति में भोजन हमेशा से ही पूजनीय व सम्माननीय रहा है। शायद यही कारण है कि भोजन को ग्रहण करने से पहले इसे हम अपने इष्ट को भोग लगाते हैं। धार्मिक व अन्य समारोहों में भी यह एक मुख्य हिस्सा रहता है।
भारतीय भोजन की बात की जाए तो इसका जन्म आयुर्वेद की अवधारणा से हुआ है। आयुर्वेद में दो शब्द शामिल हैं आयु तथा वेद, आयु का अर्थ जीवन और वेद का अर्थ है अध्ययन या ज्ञान। इसलिए आयुर्वेद को जीवन के ज्ञान से भी संबोधित किया गया है। एक समय में भारतीयों के पास बहुत ही स्वस्थ जीवन शैली हुआ करती थी, जिसका एक मुख्य कारण भारतीयों का आम पेशा खेती भी हुआ करती थी। जहां वह ऑर्गेनिक तरीके से, बिना केमिकल व बिना कीटनाशकों के इस्तेमाल से खेती किया करते थे तथा ऑर्गेनिक अनाज, फल व सब्जियों का उत्पादन व सेवन करते थे। ऐसा भी कहा जाता है कि काफी सालों पहले हमारे ऋषि-मुनियों को यह आभास हो गया था कि आने वाले समय में मनुष्य लालची, आलसी, दुखी, असंतुष्ट व अस्वस्थ रहेंगे। इसमें कुछ ऋषि-मुनियों ने इन सब विकारों से छुटकारा पाने के लिए काफी खोज व अनुसंधान भी किए ताकि मनुष्य हमेशा ही खुश व स्वस्थ रहे, जिसका उत्तर उन्हें आयुर्वेद के रूप में मिला। आयुर्वेद का एकमात्र उद्देश्य मनुष्यों की खुशहाल जीवन शैली है। फिर भारतीय इतिहास में वह दौर भी आया जब मुगलों और विदेशी व्यवसायियों का आगमन शुरू हुआ। मुगलों के राज में अधिकांश रसोइए शिक्षित नहीं हुआ करते थे, जिसके कारण व्यंजनों पर शोध की लिखित लिपियों पर ज्यादा कार्य नहीं हो पाया। बाहरी लोगों के आने से, चाहे वह मुगल हो, अंग्रेज हो या कोई विदेशी व्यापारी, उनके आने से सभी भारतीय भोजन व्यवस्था में काफी बदलाव हुआ। उपनिवेशीकरण के साथ भारतीय भोजन ने अपनी महिमा धीरे-धीरे खोनी शुरू कर दी। लोगों ने उन व्यंजनों का उपयोग करना शुरू कर दिया जो उनके अनुकूल थे। अधिक सुगंधित मसालों और भोजन को स्वादिष्ट करने के कारण भारतीय भोजन ने अपनी मौलिकता खोना शुरू कर दी। कई अन्य कला और शिल्प की विलुप्ति के साथ भोजन का अमृततत्व भी गायब होता चला गया। भारतीय भोजन में अधिकांश जड़ी-बूटियों और औषधीय मसालों का प्रयोग होता था। हमारे पूर्वज भोजन चुनने में बहुत सावधानी बरतते थे। आज के मॉडर्न इंडस्ट्रियल जगत में अधिक मुनाफा व मिलावट जैसे अवगुण व तरह-तरह के केमिकल व कीटनाशकों के प्रयोग ने भोजन में रही सही पौष्टिकता को भी नष्ट भ्रष्ट कर दिया है। आज के दौर में हम अपनी सुविधा अनुसार कुछ भी और सब कुछ, कभी भी खा लेते हैं।
आज हम भोजन के संयोजन के बारे में भी एक बार नहीं सोचते जिस कारण भोजन संबंधित बीमारियां लगातार बढ़ रही हैैं। हमने अपनी स्वार्थी जरूरतों के कारण और अज्ञानता के कारण इसे पूरी तरह से नष्ट कर दिया है। पश्चिमी दुनिया हमारी लिपियों का अध्ययन करके, उस पर शोध करके, उस जीवन व भोजन शैली का अनुसरण कर रही है और हम भारतीय विदेशी व्यंजनों के संयोजन को खुशी से ग्रहण कर रहे हैं। बात यहां पर और भी चिंताजनक हो जाती है कि भारतीय शिक्षा प्रणाली में विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में पढ़ाए जाने वाले होटल मैनेजमेंट के कोर्स में भी विदेशी व्यंजनों और खानपान की शैली को ही ज्यादा प्रमुखता के साथ महामंडित किया हुआ है। होटल प्रबंधन के जगत में हर साल कई रिसर्च स्कॉलर्स और होटल प्रोफेशनल का आगमन होता है, पर वे भी अपने सुपीरियर को खुश करने के कारण पथभ्रष्ट हैं। वे अपनी योग्यता को सिर्फ अपनी झूठी शान और प्रशंसा में उपयोग कर रहे हैं। सही मायनों में भारतीय खानपान शैली को वापस अपने शीर्ष स्थान में पहुंचाने के लिए बहुत ही कम लोग प्रयासरत दिखाई पड़ते हैं। अगर इन प्रोफेशनल से यह पूछा जाए कि जो आविष्कार या नित नए आयाम वे स्थापित कर रहे हैं, इनका भारतीय भोजन प्रणाली को शीर्ष स्थान में पहुंचाने में कितना प्रतिशत योगदान होगा, तो शायद कोई खास संतोषजनक जवाब नहीं मिलेगा। यह सही मायने में एक गंभीर चिंतन का विषय है। बदलते परिवेश के साथ यह अत्यंत जरूरी हो गया है कि हम अपने खानपान के पाठ्यक्रमों को गूढ़ता के साथ चिंतन करें व इसमें जरूरी बदलाव करें। आखिर कब हम इस ओर सोचेंगे और ऐसा पाठ्यक्रम बनाएंगे जिसे विदेशों में भी अमल में लाया जाए।
क्यों न हम अपनी योग्यता और ऊर्जा को सही दिशा देकर भारतीय खानपान को विश्व में शीर्ष स्थान दिलवाएं। बहुत ही दुखद विषय है कि अधिकतर शिक्षण संस्थानों में बोर्ड ऑफ स्टडीज भी मात्र एक फॉर्मेलिटी बनकर रह गई है। कहते हैं समय बड़ा बलवान है और समय का चक्र देखिए कि कोविड-19 महामारी के दौरान बड़ी ही तेज गति से लोगों का रुझान अपनी दिनचर्या को बदलने तथा अच्छे खानपान को अपने भोजन में शामिल करने पर हुआ है। फिर चाहे चाय-कॉफी की जगह नींबू चाय, हर्बल चाय तथा काढ़ा हो या जंक फूड की जगह पौष्टिक भोजन हो, बड़े पैमाने पर लोगों ने हेल्दी डाइट व हेल्दी लाइफ के मंत्र को अपनाया है। कोविड-19 महामारी के दौरान आलम यह है कि अधिकतर लोग केमिकल युक्त फूड को छोड़कर इम्यून को मजबूत करने वाले फूड जैसे कि इको फूड, बायो फूड और ऑर्गेनिक फूड की तरफ रुख कर रहे हैं। आने वाले समय में यह एक बड़ी मार्केट के तौर पर भी उभरेगी। ऑर्गेनिक फूड कई तरह के रोजगार के अवसर भी पैदा करता है।
धीरज कुमार, स्वतंत्र लेखक

Gulabi
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