सम्पादकीय

एकता की ‘अध्यादेशी’ शुरुआत

Rani Sahu
27 Jun 2023 9:27 AM GMT
एकता की ‘अध्यादेशी’ शुरुआत
x
By: divyahimachal
विपक्षी एकता की पटना बैठक के कुछ संकेत स्पष्ट हैं। पहली बार कांग्रेस किसी विपक्षी गठबंधन का हिस्सा होगी। कोई समानांतर मोर्चा नहीं होगा। पटना बैठक में बीजू जनता दल, भारत राष्ट्र समिति, वाईएसआर कांग्रेस, तेलुगूदेशम पार्टी, बसपा, जनता दल-एस, इंनेलो, अकाली दल, मुस्लिम लीग, केरला कांग्रेस, आरएलपी, आरएसपी, अकाली दल-मान आदि दलों के नेता नहीं आए और ज्यादातर को आमंत्रित भी नहीं किया गया था। इन दलों के 68 सांसद मौजूदा संसद में हैं। ये दल न तो कांग्रेस-समर्थक हैं और न ही भाजपा-विरोधी हैं। इन दलों में ऐसे समीकरण भी नहीं हैं कि वे तीसरा मोर्चा बना सकें। अलबत्ता कुछ दल भाजपा के साथ एनडीए का हिस्सा बन सकते हैं या कोई और राजनीतिक समीकरण बना सकते हैं। विपक्षी एकता के नाम पर 17 दलों का ही बैनर है, जो पटना में एकजुट हुए। वे एक साथ मिले, करीब 3 घंटे विमर्श किया, विरोधाभास भी उभरे, एक साथ चलने का निष्कर्ष सामने आया, एक साथ गुलाब जामुन खाए, न्यूनतम साझा कार्यक्रम के कुछ बिंदुओं पर चर्चा की और साझा प्रेस ब्रीफिंग में, केजरीवाल और स्टालिन को छोड़ कर, शेष सभी नेताओं ने संकल्प-सा दर्शाया कि वे प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ एकजुट होकर चुनाव लड़ेंगे, ताकि 2024 में देश में सत्ता-परिवर्तन किया जा सके। बहरहाल इतने से ही किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सकता कि विपक्षी एकता निश्चित है और वे पूरी तरह लामबंद होकर भाजपा को साझा चुनौती दे सकेंगे। आम आदमी पार्टी (आप) के राष्ट्रीय संयोजक एवं अद्र्धराज्य दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल का एजेंडा दिल्ली सरकार विरोधी केंद्र के अध्यादेश पर ही अटका रहा। केजरीवाल ने गुहार की कि कांग्रेस एक कप चाय पीने का तो वक्त दे।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने जानना चाहा कि आप मिलने को इतने बेताब क्यों हैं? क्या कोई शरारत करेंगे? अध्यादेश के मुद्दे पर केजरीवाल और राहुल गांधी के बीच बहस-सी छिड़ गई, तो शरद पवार और उद्धव ठाकरे ने शांत कराने की कोशिश की। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सुझाव दिया कि इस मुद्दे को संयुक्त बयान में शामिल कर लिया जाए और दोनों नेता लंच के दौरान अकेले में बात कर सकते हैं, लेकिन राहुल सहमत नहीं हुए। जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री एवं नेशनल कॉन्फ्रेंस नेता उमर अब्दुल्ला ने केजरीवाल को अनुच्छेद 370 की याद दिलाई। संसद में इस विशेष प्रावधान को जब रद्द किया गया था, तब केजरीवाल ने मोदी सरकार के उस फैसले का समर्थन किया था। महबूबा मुफ्ती ने भी यही सवाल किया। तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी ने बंगाल में कांग्रेस के राजनीतिक रवैये और धरना देने पर आपत्ति जताई। केजरीवाल की ‘आप’ ने बाद में बयान देकर स्पष्ट किया कि यदि अध्यादेश पर कांग्रेस ने रुख साफ नहीं किया, तो पार्टी के दोनों मुख्यमंत्री-केजरीवाल और भगवंत मान-विपक्ष की ऐसी बैठकों में शिरकत नहीं करेंगे। बहरहाल ये चंद उदाहरण हैं, जो विपक्षी एकता के यथार्थ पर सवाल करते हैं, लेकिन इनके बावजूद ‘आप’ को छोड़ कर सभी विपक्षी दल एक ही छतरी के तले लामबंद होकर 2024 का आम चुनाव लडऩे के पक्षधर हैं। अगली बैठक 12 जुलाई को शिमला में होगी। फिलहाल विपक्ष नेे जो शुरुआत की है, वह सकारात्मक है, शैशवी कदम है, लेकिन निर्णायक होने का रास्ता अभी लंबा और टेढ़ा-मेढ़ा है। अभी तो यह सबसे महत्त्वपूर्ण निर्णय लिया जाना है कि एक सीट पर विपक्ष का एक ही, साझा उम्मीदवार कैसे उतारा जा सकता है। ममता और अखिलेश यादव कांग्रेस से ही अपेक्षा कर रहे हैं कि कांग्रेस बड़ा दिल दिखाए। इन दोनों बड़े राज्यों में अपने उम्मीदवार उतारने की जिद न करे। यह कैसे संभव है? क्षेत्रीय दलों की अपनी महत्त्वाकांक्षाएं हैं।
Rani Sahu

Rani Sahu

    Next Story