सम्पादकीय

व्यवस्था अव्यवस्था

Subhi
17 Dec 2022 4:55 AM GMT
व्यवस्था अव्यवस्था
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गौरतलब है कि पिछले कुछ हफ्तों से लोग शिकायत कर रहे थे कि उन्हें प्रवेश द्वार से लेकर सामान की जांच आदि के लिए लंबी कतार लगानी पड़ती है। इस तरह उन्हें नाहक परेशानी उठानी पड़ रही है। ऐसी शिकायतें मुंबई हवाई अड्डे से भी मिलती रही हैं। इन दोनों हवाई अड्डों से देश और दुनिया के हर शहर के लिए उड़ानें संचालित होती हैं। स्वाभाविक ही यहां भीड़भाड़ रहती है।

Written by जनसत्ता: गौरतलब है कि पिछले कुछ हफ्तों से लोग शिकायत कर रहे थे कि उन्हें प्रवेश द्वार से लेकर सामान की जांच आदि के लिए लंबी कतार लगानी पड़ती है। इस तरह उन्हें नाहक परेशानी उठानी पड़ रही है। ऐसी शिकायतें मुंबई हवाई अड्डे से भी मिलती रही हैं। इन दोनों हवाई अड्डों से देश और दुनिया के हर शहर के लिए उड़ानें संचालित होती हैं। स्वाभाविक ही यहां भीड़भाड़ रहती है।

मगर मुसाफिरों की बढ़ती संख्या को देखते हुए ही इन हवाई अड्डों का विस्तार किया गया था। इनके रखरखाव और सुरक्षा व्यवस्था आदि की जिम्मेदारी सक्षम निजी कंपनियों को सौंपी गई थी। अच्छी सुविधाएं और व्यवस्था मुहैया कराने के तर्क पर यात्रियों से अधिक शुल्क भी वसूला जाता है। फिर भी अगर वहां अव्यवस्था का आलम देखा जाता है और उसके समाधान के लिए नागर विमानन मंत्रालय और संसदीय समिति को दखल देना पड़ता है, तो यह विडंबना ही कही जाएगी।

दिल्ली और मुंबई जैसे हवाई अड्डों पर यात्रियों के पहुंचने का समय एक घंटे से बढ़ा कर उड़ान से दो घंटा पहले कर दिया गया। साथ ले जाए जाने वाले सामान का वजन भी घटा कर कम कर दिया गया। ऐसा इसी मकसद से किया गया कि यात्रियों और सामान आदि की जांच में असुविधा न हो। इसके बावजूद अगर लोगों को लंबी कतार लगानी पड़ती है, तो इसे व्यवस्थागत खामी ही कहेंगे।

ऐसा नहीं माना जा सकता कि विमानन कंपनियों को इस बात का अंदाजा नहीं होता कि किस दिन कितने मुसाफिर उनके विमानों में उड़ान भरेंगे। इस हिसाब से उन्हें यह भी अंदाजा होता है कि एक आदमी की जांच और अंतिम रूप से हवाई जहाज में प्रवेश कराने में कितना वक्त लग जाता है। फिर अगर वे मुसाफिरों के बढ़ते दबाव के अनुसार अपनी व्यवस्था में विस्तार नहीं करती हैं, तो इससे उनकी जानबूझ कर की जाने वाली लापरवाही और यात्रियों को परेशान करने की मंशा ही जाहिर होती है।

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि कामकाजी व्यस्तता और लंबी दूरी के लिए अच्छी रेलगाड़ियां न होने की वजह से बहुत सारे लोग रेल के बजाय हवाई जहाज से सफर करना बेहतर समझते हैं। फिर रेलों के समय से न पहुंचने और अनेक रेलें बंद हो जाने की वजह से भी विमानन कंपनियों पर बोझ बढ़ा है। यह अच्छी बात है कि कोरोना काल में लंबी बंदी के बाद हवाई यात्रा सुगम हो गई है और इस तरह उन्हें अपना घाटा पाटने में मदद मिल रही है, मगर इसका यह अर्थ कतई नहीं लगाया जा सकता कि मुसाफिरों की सुविधा का ध्यान रखे बगैर वे मुनाफा कमाएं।

फिर हवाई अड्डों की व्यवस्था संभालने वाली कंपनियों की जवाबदेही भी सुनिश्चित होनी चाहिए कि ऐसी अव्यवस्था का दंड उन्हें भुगतना होगा। बहुत सारे लोग शारीरिक रूप से इतने सक्षम नहीं भी हो सकते कि वे लंबे समय तक कतार में खड़े होकर जांच प्रक्रिया से गुजर सकें। मुसाफिरों से शुल्क लिया जाता है, तो उन्हें सुविधाएं पाने का पूरा अधिकार है। इसकी जवाबदेही तो तय होनी ही चाहिए।

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