सम्पादकीय

उम्मीद बढ़ाते रुझान

Triveni
14 Oct 2020 4:03 AM GMT
उम्मीद बढ़ाते रुझान
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एक लंबे इंतजार के बाद कोरोना के हवाले से कुछ अच्छी खबरें आई हैं।
जनता से रिश्ता वेबडेस्क| एक लंबे इंतजार के बाद कोरोना के हवाले से कुछ अच्छी खबरें आई हैं। सोमवार को जहां डब्ल्यूएचओ की प्रमुख वैज्ञानिक सौम्या स्वामीनाथन ने यह उम्मीद जताई कि इस साल के आखिर या अगले वर्ष की शुरुआत में वैक्सीन रजिस्ट्रेशन के लिए तैयार हो सकती है, तो वहीं नई दिल्ली में मंत्री समूह की बैठक में स्वास्थ्य मंत्री हर्षवद्र्धन ने जानकारी दी कि अगले साल की शुरुआत में एक से अधिक स्रोतों से देश में वैक्सीन उपलब्ध हो सकती है। एक अन्य उत्साहित करने वाली खबर यह है कि देश में संक्रमण के नए मामलों में कमी आ रही है और पिछले कई दिनों से गिरावट का क्रम जारी है। रविवार के मुकाबले सोमवार को जहां 7,651 कम नए मामले आए, तो सोमवार के लिहाज से मंगलवार को 11,390 की गिरावट दर्ज की गई। संक्रमित लोगों के स्वस्थ होने की दर भी 86 प्रतिशत से ऊपर हो चुकी है। अगर यह क्रम आगे भी जारी रहा, तो वाकई देश के लिए बड़़ी राहत की बात होगी।

ये सारे आंकडे़ प्रोत्साहित कर रहे हैं कि कोविड-19 पर हम निर्णायक काबू पा सकते हैं, यदि दृढ़ इच्छाशक्ति दिखाएं। याद रखें, यहां तक का सफर समूची मानवता ने बिना किसी अधिकृत दवा व वैक्सीन के तय किया है और इसमें मानक एहतियातों व सहायक उपचारों ने बड़ी भूमिका निभाई है। खासकर मास्क और शारीरिक दूरी ने वायरस के प्रसार को काफी हद तक फैलने से रोका है। सरकारी प्रयासों और कोरोना वॉरियर्स की बेमिसाल कुर्बानी की बदौलत हम निरंतर बेहतर स्थिति की ओर बढे़। और आज एक ऐसी स्थिति में हैं, जो सामान्य नहीं, तो उससे बहुत दूर की स्थिति भी नहीं है। इसीलिए अनलॉक की प्रक्रिया को आज जन-सहयोग की सबसे अधिक आवश्यकता हैै। हम नहीं भूल सकते कि यहां तक के सफर में हमने करीब एक लाख, 10 हजार हमवतनों को खो दिया है। उनमें से काफी सारे ऐसे लोग थे, जिन्होंने जिंदगी को देखना, जीना अभी शुरू ही किया था।

अपनी कुछ शुरुआती भूलों और कमियों को हमें हमेशा याद रखना चाहिए, क्योंकि उनसे हासिल सबक ने ही हमें आगे का रास्ता दिखाया है। नागरिकों को अभी भी पर्याप्त सावधानी बरतने की जरूरत है। मगर बिहार, मध्य प्रदेश के चुनाव प्रचार की जो तस्वीरें खबरिया चैनलों और सोशल मीडिया में नुमायां हो रही हैं, वे चिंतित करने वाली हैं। उनमें चुनाव आयोग की हिदायतों और स्वास्थ्य मंत्रालय के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन साफ-साफ दिख रहा है। इसलिए चुनाव आयोग और स्थानीय प्रशासन को पूरी तत्परता के साथ रैलियों की निगरानी करनी चाहिए और जवाबदेही भी तय होनी चाहिए। हमें इस तथ्य को याद रखना होगा कि यूरोप के कई देशों में संक्रमण की दूसरी लहर चल पड़ी है और कहीं-कहीं तो लॉकडाउन फिर से लगाने तक की नौबत आ गई है। दुनिया भर के विशेषज्ञ आगाह कर चुके हैं कि सर्दियों का मौसम इस वायरस के लिहाज से अधिक चुनौतीपूर्ण साबित हो सकता है। निस्संदेह, अब देश में बडे़ पैमाने पर कोरोना-जांच की सुविधा है, अस्पताल भी अपेक्षाकृत अधिक मुस्तैद हैं, लेकिन कोशिश यही होनी चाहिए कि उन पर दबाव न बढे़ और जो सकारात्मक रुख पिछले कुछ दिनों में बना है, उसका फायदा उठाया जाए। यह नागरिकों और देश की अर्थव्यवस्था, दोनों की सेहत के लिए बहुत जरूरी है।

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