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यह आशावाद पूंजीगत व्यय में प्रवाहित होगा और उम्मीद है कि हम आर्थिक गतिविधियों में बढ़ोतरी देखेंगे।
आंकड़े बताते हैं कि भारतीय अर्थव्यवस्था में तेजी आ रही है। निवेशकों और उद्योग जगत के आशावाद के साथ सरकारी खर्च के चलते भारत वित्त वर्ष 2021-22 में 8.5-10 फीसदी की वृद्धि दर्ज कर सकता है। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक ने भारत के विकास लक्ष्यों को इसी दायरे में रखा है। इस लक्ष्य को पूरा करने से अर्थव्यवस्था 50 खरब डॉलर तक और अगले दशक में सौ खरब डॉलर के रास्ते पर बढ़ सकती है।
वित्त वर्ष '22 के लिए नवीनतम सकल मूल्य वर्धित (जीवीए) अनुमान बताते हैं कि इसकी पहली तिमाही में नॉमिनल जीवीए 26.8 फीसदी था, जबकि वित्त वर्ष '21 की पहली तिमाही में यह -20.2 फीसदी था। वित्त वर्ष '21 निश्चित रूप से कोविड महामारी और राष्ट्रव्यापी लॉकडाउन के चलते याद रहेगा। हालांकि वित्त वर्ष '21 की पहली तिमाही की तुलना में मौजूदा वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 31.7 फीसदी की दर से बढ़त के बावजूद देश की नॉमिनल जीडीपी पूर्णतः कोविड पूर्व की स्थिति में नहीं लौट पाई। यह आंशिक रूप से दूसरी लहर के लॉकडाउन के असर के कारण है।
क्षेत्रवार विश्लेषण से पता चलता है कि इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही में पिछले वित्त वर्ष की पहली तिमाही की तुलना में कृषि में 11.3 फीसदी की वृद्धि हुई। यह इस क्षेत्र को महत्वपूर्ण बढ़त प्रदान करती है, जिस पर देश के कार्यबल का 43 फीसदी हिस्सा निर्भर है। इस अवधि के दौरान उद्योग क्षेत्र पिछले वर्ष के -38.2 फीसदी की तुलना में 67.1 फीसदी की दर से बढ़ा। भारत के प्रमुख विकास वाहक सेवा क्षेत्र में पिछले वर्ष के -19 फीसदी की तुलना में इस दौरान 17.8 फीसदी की वृद्धि हुई। इस साल विकास के बड़े आंकड़े अगर अतिरंजित लगते हैं, तो ऐसा पिछले साल की भारी गिरावट के कारण है। सेवा क्षेत्र के तहत व्यापार, होटल, परिवहन और संचार से संबंधित उप-क्षेत्र पिछड़ा हुआ है। इसमें महामारी से सबसे बुरी तरह प्रभावित होने वाले कुछ क्षेत्र शामिल हैं-जैसे, हवाई यात्रा, आतिथ्य और होटल, रेस्तरां और भोजनालय। इस साल दूसरी लहर के दौरान इस क्षेत्र को फिर झटका लगा, पर अब यह पटरी पर लौट रहा है।
बैंकिंग उप-क्षेत्र आशाजनक वृद्धि का प्रदर्शन कर रहा है। सितंबर, 2021 तक जमाराशियों में 9.3 फीसदी की वृद्धि हुई है, जबकि उधार 6.7 प्रतिशत की दर से बढ़ा है। ये दरें उत्साहजनक हैं, पर भारत जिस तेज गति से विकास पथ पर लौटना चाहता है, उस लिहाज से कमजोर हैं। सकल गैर-निष्पादित संपत्ति (एनपीए) मार्च, 2018 के 12 फीसदी से घटकर मार्च, 2021 में आठ फीसदी रह गई। अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित करने में मदद करने वाली रणनीतियां जारी हैं, मसलन, महामारी से पूर्व जो ब्याज दरें थीं, उनमें 1.5-2 फीसदी की कमी आई है। इसी तरह, आवास ऋण पर ब्याज दर महामारी से पहले के 8.5 फीसदी के औसत से 6.5 फीसदी के सर्वकालिक निचले स्तर पर है।
अर्थव्यवस्था से संबंधित व्यापक संकेतक भी उल्लेखनीय हैं। अगस्त में मुद्रास्फीति 5.3 फीसदी थी, जो कम हो रही है; उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) सितंबर में घटकर 4.35 फीसदी रह गया। अगस्त में औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) बढ़कर 11.8 फीसदी पर पहुंच गया। विदेशी मुद्रा भंडार 640 अरब डॉलर के सर्वकालिक उच्च स्तर पर है। पिछले वित्त वर्ष में 82 अरब डॉलर का प्रत्यक्ष विदेशी निवेश भी एक रिकॉर्ड रहा। कॉरपोरेट सेक्टर भी मजबूती से उबर रहा है। अधिकांश कंपनियों ने फिर रिकॉर्ड गति से कर्ज का भुगतान किया है, और कॉरपोरेट उधारी भी कम हुई है।
कॉरपोरेट टैक्स घटाकर 25 फीसदी करने से उत्साह का माहौल है और उद्योग जगत क्षमता बढ़ाने के लिए पूंजीगत व्यय बढ़ाने की बात कर रहा है। विदेशी व्यापार भी बढ़ रहा है। सितंबर तक हमारा निर्यात 198 अरब डॉलर का था, जो पिछले साल की इसी अवधि में 125 अरब डॉलर का था, यानी इसमें 58 फीसदी की वृद्धि हुई है। हालांकि, इसी अवधि में आयात 151 अरब डॉलर की तुलना में बढ़कर 276 अरब डॉलर हो गया है। व्यापार घाटा पिछले साल के 26 अरब डॉलर के मुकाबले बढ़कर 78 अरब डॉलर हो गया। बढ़ते व्यापार घाटे का मतलब यह है कि विदेशी मुद्रा भंडार पहले की तरह नहीं बढ़ेगा और न ही बैंकिंग प्रणाली में तरलता पहले की तरह उच्च स्तर पर पहुंचेगी। इस समय तरलता 10-11 लाख करोड़ रुपये है। अंततः आर्थिक विकास को बढ़े हुए कर संग्रह में बदलना चाहिए। और कर संग्रह वास्तव में पटरी पर लौट आया है; इस साल अप्रैल से अगस्त तक सकल कर संग्रह पिछले साल के 5.04 लाख करोड़ के मुकाबले 8.59 लाख करोड़ रुपये हो गया, जो प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष करों में उल्लेखनीय वृद्धि के साथ 70 फीसदी की बढ़ोतरी है। केवल वित्त वर्ष 2021 ही नहीं, बल्कि 2020 की तुलना में भी कर संग्रह बढ़ा है, जो तेजी का संकेत है।
अप्रैल-अगस्त में राजकोषीय घाटा पिछले साल के 8.7 लाख करोड़ से घटकर 4.68 लाख करोड़ रुपये रह गया है। सरकारी खर्च के कारण पूंजीगत व्यय में 28 फीसदी की वृद्धि हुई है। राजकोषीय घाटे की प्रवृत्ति, निश्चित रूप से, सरकारी खर्च पर निर्भर करेगी। सरकार ज्यादा खर्च कर सकती है, जिसके परिणामस्वरूप समग्र खर्च, खपत और विकास में वृद्धि होगी, जिससे अंततः आर्थिक विकास में वृद्धि होगी। उच्च उधारी की आशा से भारी तरलता के बावजूद सरकारी प्रतिभूति दरों में वृद्धि हुई है। हालांकि, संकेत हैं कि भारी व्यय के बावजूद सरकारी उधारी बजट से कम हो सकती है। वैश्विक स्तर पर तेल की कीमतों में वृद्धि चिंताजनक है, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था को व्यापक असुविधा हो रही है।
कुल मिलाकर, विकास और राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में वृद्धि के कई संकेतक हैं। व्यापक आशावाद के साथ शेयर बाजार का मूल्यांकन 260 लाख करोड़ रुपये के सर्वकालिक उच्च स्तर पर है, जो वर्तमान जीडीपी 210 लाख करोड़ रुपये से बहुत ज्यादा है। भारतीय शेयर बाजार का पूंजीकरण इस साल शीर्ष चौथे स्थान पर पहुंचने की संभावना है। इस साल सरकारी स्तर पर बड़े सुधार देखे गए और कोविड की बाधा के बावजूद बड़े स्तर पर खर्च बढ़ा है। यह आशावाद पूंजीगत व्यय में प्रवाहित होगा और उम्मीद है कि हम आर्थिक गतिविधियों में बढ़ोतरी देखेंगे।
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