सम्पादकीय

विपक्षी दल ममता बनर्जी के दिखाए मार्ग पर राजनीति तो कर सकते हैं, लेकिन अपना नेता मानने के लिए तैयार नहीं!

Rani Sahu
6 Oct 2021 9:11 AM GMT
विपक्षी दल ममता बनर्जी के दिखाए मार्ग पर राजनीति तो कर सकते हैं, लेकिन अपना नेता मानने के लिए तैयार नहीं!
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भवानीपुर उपचुनाव में ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) की जीत को लेकर किसी को भी कोई शंका नहीं थी

ज्योतिर्मय रॉय भवानीपुर उपचुनाव में ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) की जीत को लेकर किसी को भी कोई शंका नहीं थी, प्रश्न केवल वोटों के अंतर को लेकर था. भवानीपुर उपचुनाव में ममता बनर्जी ने 58,835 मतों से जीत हासिल की. गौरतलब है कि 2021 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को जबरदस्त पटखनी देने के बाद, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी खुद नंदीग्राम से हार गयी थीं. चुनाव हारने के बाद तृणमूल पार्टी ने ममता बनर्जी को ही मुख्यमंत्री नियुक्त किया, और इसलिए मुख्यमंत्री पद पर रहने के लिए ममता बनर्जी को 6 महीने के अंदर विधानसभा में पुनर्निर्वाचित होकर आना आवश्यक हो गया था. राज्य के मुख्यमंत्री का उपचुनाव में जीतना, और उपचुनाव में शासक दल के प्रार्थी का जीतना एक स्वाभाविक राजनीतिक प्रतिक्रिया मात्र है.

जीत से उत्साहित तृणमूल कार्यकर्ता ममता बनर्जी को देश के प्रधानमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं. तृणमूल कार्यकर्ताओं में यह आत्मविश्वास जागना स्वाभाविक है. इस जीत से उत्साहित तृणमूल ने स्पष्ट कहा है कि, न तो कांग्रेस और न ही राहुल गांधी नरेंद्र मोदी का विकल्प हैं. तृणमूल का दावा है, आने वाले 2024 के लोकसभा चुनाव में ममता बनर्जी बीजेपी विरोधी दलों का एकमात्र विश्वसनीय चेहरा हो सकती हैं. उपचुनाव जीतने के बाद अपनी सर्व-भारतीय छवि को सिद्ध करने के लिए ममता बनर्जी ने कहा कि, "भवानीपुर में 47 फीसदी गैर-बंगाली मतदाता हैं. मुझे सभी के वोट मिले. यहां गुजराती, मारवाड़ी, बिहारी और उड़िया भाषी लोग रहतेहै."
तृणमूल एक राजनीतिक दल है, एनजीओ नहीं
राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता पाने को आतुर तृणमूल दल पहले से ही कई पूर्वोत्तर राज्यों त्रिपुरा, असम और गोवा में सक्रिय होने का प्रयास कर रही है. उस संदर्भ में, तृणमूल पार्टी के प्रवक्ता सांसद सुखेंदुशेखर रॉय ने कांग्रेस को फटकार लगाते हुए कहा, "राष्ट्रीय स्तर पर विपक्षी गठबंधन को लेकर सबसे पहले ममता बनर्जी ने आवाज उठाई है. कांग्रेस चुप रह सकती है, पर हम नहीं. क्योंकि तृणमूल एक राजनीतिक दल है, एनजीओ नहीं."
ममता का लक्ष्य बीजेपी मुक्त भारत
चुनाव जीतते ही विभिन्न राजनीतिक दलों ने ममता बनर्जी को बधाई दी. समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने बधाई देते हुए ममता बनर्जी को विपक्षी गठबंधन का चेहरा बताया. वरिष्ठ नेता शरद पवार, तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और द्रमुक नेता एमके स्टालिन और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने ममता बनर्जी को जीत की बधाई दी. ममता के करीबी माने जाने वाले कांग्रेस खेमे के कमलनाथ और आनंद शर्मा ने भी ममता बनर्जी को बधाई दी.
ममता का लक्ष्य दिल्ली है. इस चुनाव प्रचार में ममता बनर्जी इस बात पर बार-बार जोर देती रही हैं कि भवानीपुर का यह खेल, भारत की जीत के साथ ही खत्म होगा. भवानीपुर की यह यात्रा, दिल्ली जाकर खत्म होगी. ममता का एकमात्र उद्देश्य, सभी बीजेपी विरोधी दलों को एक छत के नीचे लाकर, बीजेपी मुक्त भारत बनाना है.
क्या ममता बनर्जी बीजेपी विरोधी दलों को नेतृत्व दे पाएंगी
किसी भी राजनीतिक दल का अंतिम लक्ष्य केंद्रीय सत्ता पर पूर्णनियंत्रण होता है. इसके लिए क्षेत्रीय दल को सर्वप्रथम राष्ट्रीय दल के रूप में पहचान बनाने की आवश्यकता होती है. स्वतंत्रता आंदोलन के साथ जुड़े होने के कारण कांग्रेस पार्टी की अपनी राष्ट्रीय पहचान और अस्तित्व है. धरोहर के तौर पर वर्तमान कांग्रेस पार्टी को इसका लाभ अवश्य मिल रहा है. भारतीय जनता पार्टी को अपना मुद्दा बनाकर अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की थी, आज देश की जनता ने हिंदूवाद के मुद्दे को राष्ट्रीय स्वीकृति दे दी है, परिणाम स्वरूप बीजेपी की सरकार आज केन्द्र में है. वर्तमान में तृणमूल कांग्रेस के पास अभी ऐसा कोई मुद्दा नहीं है जिससे देश की हर जनता प्रभावित और सहमत हो. तृणमूल कांग्रेस का 'बीजेपी मुक्त भारत' नारा, आम जनता से ज्यादा विपक्ष राजनीतिक दलों को लुभाने के लिए प्रतीत हो रहा है. कांग्रेस पार्टी की सहयोग के बिना राष्ट्रीय मुद्दा उठाना तृणमूल के लिए असंभव है. तृणमूल द्वारा कांग्रेस का विरोध, ममता बनर्जी का बीजेपी के विरोध में की जा रही 'महागठबंधन' के प्रयास में सबसे बड़ी बाधा है. बीजेपी का विरोध और राष्ट्रव्यापी अभियान चलाने की क्षमता और विश्वसनीयता है तो वह केवल कांग्रेस पार्टी में ही है.
ममता तृणमूल कांग्रेस को राष्ट्रीय दल के रूप में देखना चाहती हैं. ममता दीदी को ये अच्छी तरह पता है कि दक्षिण भारत की राजनीति में तृणमूल दल को कभी भी राष्ट्रीय राजनीतिक दल के रूप में स्वीकार्य नहीं किया जाएगा. ममता के नेतृत्व में तृणमूल कांग्रेस उत्तर भारत में अपनी सीट बढ़ाने का प्रयास कर रहा है. क्या आम आदमी पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल दिल्ली में तृणमूल के साथ सीट बंटवारा करना पसंद करेंगे? राजनीतिक दृष्टि से यह असंभव प्रतीत होता है. लेकिन पंजाब में यदि आम आदमी पार्टी तृणमूल कांग्रेस के साथ मिलकर कुछ सीटों पर समझौता करे, तो आश्चर्य नहीं होगा. अभी ममता बनर्जी तृणमूल कांग्रेस को मजबूत करने के लिए उत्तर पूर्व भारत के कुछ राज्यों के साथ-साथ गोवा में भी अपने पैर जमाने का अथक प्रयास कर रही हैं.
ममता बनर्जी को अभी और होमवर्क की जरूरत है
चुनाव जीतने के बाद विपक्षी दलों द्वारा बधाई देना, राजनीतिक शिष्टाचार का एक हिस्सा है. इसका मतलब यह नहीं कि विपक्ष ने आपको अपना नेता मान लिया है. यह मूर्खता भरी सोच है. ममता बनर्जी एक जुझारू नेता हैं. भारत की राजनीति में ममता बनर्जी जैसी जमीन से जुड़ी हुई नेता बिरले होता जा रहे हैं. उन्हें राजनीति की अखरा में 'वन-मैन आर्मी' कहा जाता है. किसी भी मुददे को राजनीतिक रंग देना और उसे अपने पक्ष में कर लेने की कला ममता बनर्जी में है. निस्संदेह ममता बनर्जी अपने राज्य में सभी क्षेत्रीय मुद्दों को सफलतापूर्वक जनमानस के समक्ष रखने में कामयाब रहीं. लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर उनके द्वारा दिए गए 'बीजेपी मुक्त भारत' का नारा को राष्ट्रीय स्तर पर मुद्दा साबित करना ममता के लिए कठिन कार्य ही नहीं, अपितु 'बड़ी राजनीतिक भूल' भी साबित हो सकती है.
स्वतंत्रता के बाद केन्द्र सदैव उत्तर भारतीय राजनीति के प्रभाव में रहा. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है की वोट बटोरने की कला में निपुण ममता बनर्जी के दिखाए मार्ग पर राजनीति तो की जा सकती है लेकिन ममता को राष्ट्रीय नेता के रूप में मानने के लिए आज भी विभिन्न राजनीतिक दल तैयार नहीं हैं. हार नहीं मानने वाली ममता बनर्जी को केंद्र की सत्ता के लिए अभी और ज्यादा होमवर्क करने की आवश्यकता है.


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