- Home
- /
- अन्य खबरें
- /
- सम्पादकीय
- /
- विपक्ष नहीं एकजुट
नवभारत टाइम्स: अगले महीने प्रस्तावित राष्ट्रपति चुनाव को लेकर सत्तारूढ़ और विपक्षी खेमों में गतिविधियां जरूर शुरू हो गई हैं, लेकिन अभी तक मामला औपचारिक कोशिशों से आगे नहीं बढ़ पाया है। और तो और विपक्षी दलों में इसे लेकर कोई एकता भी नहीं दिख रही है। 2024 में आम चुनाव होने हैं। राष्ट्रपति इलेक्शन समेत उससे पहले होने वाले सभी चुनावों में विपक्ष किस तरह से गोलबंदी करता है, यह मायने रखता है। इसी गोलबंदी से तय होगा कि अगले लोकसभा चुनाव में ताकतवर बीजेपी का ये पार्टियां कैसे मुकाबला करेंगी और क्या वे उसे मजबूत टक्कर दे पाएंगी। राष्ट्रपति चुनाव को लेकर जहां विपक्ष के पास अभी कोई स्पष्ट रणनीति नजर नहीं आ रही है, वहीं सत्ता पक्ष में इसे लेकर दुविधा या उलझन के कोई संकेत नहीं हैं। उसके सामने सभी सहयोगियों को साथ रखने की चुनौती जरूर है। खासकर, नीतीश कुमार के हालिया रुख की वजह से यह चुनौती कुछ गंभीर लगने लगी है। लेकिन इसके बरक्स विपक्षी खेमे को देखें तो वहां उलझन और दुविधा ही नहीं आपसी स्पर्धा और तालमेल की कमी भी साफ दिख रही है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की ओर से विपक्षी दलों के नेताओं से संपर्क साधने की प्रक्रिया शुरू ही हुई थी कि टीएमसी अध्यक्ष ममता बनर्जी ने अपनी तरफ से विपक्षी दलों के नेताओं की बैठक बुला ली। इस जल्दबाजी पर कई दलों और नेताओं ने एतराज भी जताया। कई दलों ने प्रमुख नेताओं के बजाय दूसरी-तीसरी पांत के नेताओं को भेजकर काम चला लिया।
तेलंगाना राष्ट्र समिति के प्रमुख केसीआर काफी पहले से विपक्षी दलों को एकजुट करने की मुहिम में लगे हुए हैं। इसके बावजूद उन्होंने बैठक में शामिल होना जरूरी नहीं समझा। यहां तक कि उनकी पार्टी की तरफ से कोई प्रतिनिधि भी इस बैठक में नहीं भेजा गया। ध्यान रहे, राष्ट्रपति चुनाव में विपक्ष जीत-हार की लड़ाई नहीं लड़ रहा। चुनाव होने की स्थिति में सत्तारूढ़ एनडीए के उम्मीदवार का जीतना लगभग तय माना जा रहा है। अगर कुछ महत्वपूर्ण है तो यह सवाल कि दोनों पक्षों में से कौन सा पक्ष कितनी एकजुटता और कितना सामंजस्य बनाए रखते हुए कितनी अच्छी रणनीति से लड़ता है और यह भी कि बाड़ पर खड़े दलों में से कौन कितने को अपनी तरफ खींच पाता है। इस लिहाज से शिरोमणि अकाली दल, आम आदमी पार्टी, बीजेडी और वाईएसआरसीपी जैसे नॉन-एनडीए दल विपक्षी खेमे के लिए महत्वपूर्ण हैं। फिर भी ये सभी पार्टियां विपक्षी दलों के नेताओं की इस बैठक से गैरहाजिर रहीं। कहा जा सकता है कि यह तो पहली ही बैठक थी। ममता बनर्जी के शब्दों में यह महज शुरुआत है। लेकिन शुरुआती संकेत अच्छे नहीं हैं। विपक्ष को अगर राष्ट्रपति चुनाव के जरिए कोई अच्छा संदेश देना है तो उसे अपने खेमे के अंदर की अनिश्चितता को दूर करते हुए सबको साथ लेकर चलने की क्षमता प्रदर्शित करनी होगी।