सम्पादकीय

यूक्रेन में फंसे भारतीयों को निकालने के सरकार के प्रयासों पर विपक्षी सांसदों ने दिखाई एकजुटता

Subhi
4 March 2022 6:18 AM GMT
यूक्रेन में फंसे भारतीयों को निकालने के सरकार के प्रयासों पर विपक्षी सांसदों ने दिखाई एकजुटता
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यह महत्वपूर्ण है कि विदेश मंत्रलय की संसदीय सलाहकार समिति की बैठक में विदेश मंत्री जयशंकर और विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने राहुल गांधी समेत अन्य विपक्षी सांसदों को यूक्रेन मामले में जो जानकारी दी

संजय पोखरियाली: यह महत्वपूर्ण है कि विदेश मंत्रलय की संसदीय सलाहकार समिति की बैठक में विदेश मंत्री जयशंकर और विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रृंगला ने राहुल गांधी समेत अन्य विपक्षी सांसदों को यूक्रेन मामले में जो जानकारी दी, उस पर उन्होंने संतुष्टि प्रकट की। इन विपक्षी सांसदों ने यूक्रेन में फंसे भारतीयों को निकालने के सरकार के प्रयासों पर एकजुटता भी दिखाई। इससे भी महत्वपूर्ण यह है कि इस बैठक में गए विपक्षी सांसदों ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में रूस के खिलाफ आए निंदा प्रस्ताव पर मतदान से अनुपस्थित रहने के सरकार के फैसले का आम तौर पर समर्थन किया।

विदेश नीति के मामले में ऐसा ही होना चाहिए, क्योंकि विदेश नीति किसी दल की नहीं, बल्कि देश की होती है। इसी कारण विदेश नीति के मामले में पक्ष-विपक्ष में सहमति की एक समृद्ध परंपरा रही है। इस परंपरा का निर्वाह होता रहे, इसके लिए सत्तापक्ष और विपक्ष, दोनों को ही प्रयास करने चाहिए। इसे रेखांकित करना इसलिए आवश्यक है, क्योंकि अतीत में कुछ मामलों में इस परंपरा का उल्लंघन होता हुआ दिखा। क्या इसकी अनदेखी की जा सकती है कि लद्दाख में चीनी सेना के साथ झड़प के बाद कांग्रेस और कुछ अन्य विपक्षी दल किस तरह सरकार पर हमलावर हो गए थे? इसे भी विस्मृत नहीं किया जा सकता कि डोकलाम विवाद के समय राहुल गांधी किस तरह भारतीय विदेश मंत्रलय को सूचित किए बगैर चीनी राजदूत से मिलने चले गए थे? इसी तरह जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने के साहसिक फैसले के बाद कुछ विपक्षी नेताओं की ओर से ऐसे बयान दिए गए थे, जिनका इस्तेमाल पाकिस्तान ने अपने पक्ष में किया था।

यह याद रखना आवश्यक ही नहीं, अनिवार्य है कि विदेश नीति से जुड़े मामलों में एकजुटता का अभाव न केवल राष्ट्रीय हितों को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय और विशेष रूप से भारत के प्रति बैर रखने वाले देशों को गलत संदेश भी देता है। इन दिनों इसे लेकर तमाम सवाल उठ रहे हैं कि भारत ने पहले संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद और फिर संयुक्त राष्ट्र महासभा में रूस के खिलाफ आए निंदा प्रस्तावों पर मतदान के समय तटस्थ रहना क्यों पसंद किया? आम तौर पर ऐसे सवाल उठाने वाले इस तथ्य को ओझल कर रहे हैं कि भारत भले ही तटस्थ रहने की नीति पर चला हो, लेकिन उसने यह स्पष्ट करने में संकोच नहीं किया कि यूक्रेन पर रूस के हमले से अंतरराष्ट्रीय नियम-कानूनों और संयुक्त राष्ट्र चार्टर का हनन हुआ है। उसने यूक्रेन के हालात पर अफसोस भी प्रकट किया और उसे मानवीय सहायता देने का भी फैसला किया।


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