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प्रवर्तन निदेशालय और सीबीआई के छापों पर विपक्षी दलों के याचिका वापस लेने से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को मजबूत चुनावी मुद्दा मिल गया है। भाजपा के नम्बर एक स्टार प्रचारक प्रधानमंत्री मोदी भ्रष्टाचार के मामले पर विपक्षी दलों को निशाने पर लेने का कोई मौका नहीं चूक रहे हैं। पिछले एक महीने के दौरान की तीन जनसभाओं में पीएम मोदी ने विपक्षी नेताओं के भ्रष्टाचार के मामलों को लेकर जमकर खिंचाई की। मोदी विपक्ष की खिंचाई के साथ चुटकी भी ले रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तेलंगाना में पहली वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेन को झंडी दिखाकर रवाना करते हुए तेलंगाना सरकार को आड़े हाथों लिया। उन्होंने कहा कि तुष्टीकरण, परिवारवाद और भ्रष्टाचार से लडऩा ही होगा। गौरतलब है कि तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चन्द्रशेखर राव की बेटी कविता दिल्ली के शराब घोटाले में आरोपी है। ईडी कविता से दो बार पूछताछ कर चुकी है। इससे पहले एक समारोह में मोदी ने कहा कि 2014 से पहले हेडलाइंस होती थीं कि इस सेक्टर में इतने लाख करोड़ रुपए का घोटाला, भ्रष्टाचार के खिलाफ जनता सडक़ों पर उतरी। आज क्या हेडलाइन होती है? भ्रष्टाचार के मामलों में एक्शन के कारण भयभीत भ्रष्टाचारी लामबंद हुए, सडक़ों पर उतरे। पहले घोटाले सुर्खियां बनते थे, लेकिन अब अपने खिलाफ कार्रवाई को लेकर भ्रष्टाचारी आपस में हाथ मिला रहे हैं, इसकी खबर बन रही है। तीसरा मौका था भारतीय जनता पार्टी के 44वें स्थापना दिवस का। प्रधानमंत्री ने इस मौके को भी हाथ से नहीं जाने दिया। उन्होंने कहा कि बीजेपी भ्रष्टाचार से लडऩे और कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए भगवान हनुमान से प्रेरणा लेती है। भाजपा पार्टी को भ्रष्टाचार और कानून व्यवस्था से लडऩे की प्रेरणा भगवान हनुमान से मिलती है।
गौरतलब है कि ईडी और सीबीआई के दुरुपयोग की विपक्षी दलों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से इनकार कर दिया था। सर्वोच्च अदालत ने कहा कि नेताओं को विशेष इम्यूनिटी नहीं दी जा सकती। नेताओं के भी आम नागरिकों जैसे अधिकार हैं। अगर सामान्य गाइडलाइन जारी की तो ये खतरनाक प्रस्ताव होगा। नेताओं की गिरफ्तारी पर अलग से गाइडलाइन नहीं हो सकती। कोर्ट ने कहा कि हम इस याचिका पर सुनवाई नहीं करेंगे। विपक्ष से कहा कि आप चाहें तो याचिका वापस ले सकते हैं। इस पर विपक्षी दलों के पास याचिका वापस लेने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा। याचिका वापस ले ली गई। विपक्षी नेताओं को सुप्रीम कोर्ट से मिले तगड़े झटके के बाद कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों का अडानी के खिलाफ चलाया जा रहा अभियान भी कमजोर पड़ गया।
इस मुद्दे पर भी पूरा विपक्ष एकजुट नहीं हो सका। सुप्रीम कोर्ट से मिले झटके के बाद रही-सही कसर भी निकल गई। प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई में भाजपा विपक्षी दलों के भ्रष्टाचार के मुद्दे पर कमर कसे हुए है। वर्ष 2014 से जुलाई 2022 तक कांग्रेस के 80 नेताओं पर भ्रष्टाचार को लेकर छापे पड़े हैं। ममता बनर्जी की पार्टी तृणमूल कांग्रेस के 41 नेताओं के यहां ईडी ने छापों की कार्रवाई की। तीसरे नंबर पर महबूबा मुफ्ती की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) और चौथे नंबर पर अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (आप) के नेताओं पर छापेमारी हुई। आश्चर्य की बात यह है कि भ्रष्टाचार को लेकर विपक्षी दलों के नेता ईडी और सीबीआई के छापों को लेकर केंद्र की भाजपा सरकार को कोस बेशक रहे हैं किन्तु देश को इस विषबेल से मुक्त कराने का सुझाव एक भी विपक्षी नेता ने नहीं दिया। विपक्षी नेताओं का सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने के पीछे मकसद यही रहा कि सिर्फ उन्हें ही छापों या पूछताछ से छूट मिले, शेष देश के लिए एजेंसियों की छूट किसी ने नहीं मांगी। इसी से विपक्षी दलों की नीयत में संदेह उत्पन्न होता है। विपक्षी दलों को सुप्रीम कोर्ट की शरण लिए जाने से पहले इस बात का अंदाजा होना चाहिए था कि भ्रष्टाचार को लेकर नेताओं और देश के आम नागरिकों में फर्क नहीं किया जा सकता। वैसे भी नेताओं का इतिहास भ्रष्टाचार के पन्नों से रंगा हुआ है। यह सुप्रीम कोर्ट ही है जिसके कारण चुनाव आयोग नेताओं पर लगे आपराधिक और आर्थिक मुकदमों के मामले सार्वजनिक करने को मजबूर हुआ है। सुप्रीम कोर्ट से मिली निराशा के बाद विपक्षी दलों ने भ्रष्टाचार के मुद्दे पर एक मंच पर आना तक मुनासिब नहीं समझा। दरअसल ईडी और सीबीआई के छापों के बाद ही विपक्षी दलों के नेताओं को एहसास हुआ कि भ्रष्टाचार देश का प्रमुख मुद्दा है। इसके बावजूद इसके खात्मे को लेकर दलों ने एकजुटता नहीं दिखाई। अब जब सुप्रीम कोर्ट से करारी मात मिलने के बाद भाजपा विपक्षी दलों की धज्जियां उड़ाने में लगी हुई है, तब विपक्षी दल एकता के लिए फिर से कवायद में जुटे हुए हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े, राहुल गांधी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल से मिल कर एकता की कवायद को फिर से सिरे चढ़ाने का प्रयास किया है। पूर्व में विपक्षी दलों की भाजपा के खिलाफ एकता में बिखराव आ चुका है।
समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी कांग्रेस से सहयोग करने से इंकार कर चुके हैं। इनके आपसी पुराने राजनीतिक झगड़े हैं। अडानी के मुद्दे पर विपक्षी पार्टियों के कांग्रेस के साथ नहीं आने से गठबंधन की कवायद ही पलट गई। विपक्षी दलों ने एक-दूसरे पर ही आरोप-प्रत्यारोप लगाए। लालू यादव की पार्टी हो या समाजवादी पार्टी या फिर दूसरे विपक्षी दल, सभी का कहना था कि जब ईडी ने उन पर लगे भ्रष्टाचार के मामलों में कार्रवाई की, तब कांग्रेस ने उनका साथ नहीं दिया। यही वजह रही कांग्रेस अडानी के मुद्दे पर अकेले खड़ी नजर आई। मौजूदा दौर में देश में जिस तरह के राजनीतिक हालात हैं, उसमें विपक्षी एकता की सूरत नजर नहीं आती है। न्यूनतम साझा कार्यक्रम जैसी कवायद करने से भी विपक्षी दल कतरा रहे हैं। यह निश्चित है कि देश में जब तक मजबूत और एकजुट विपक्ष नहीं होगा, तब तक भाजपा के बढ़ते चुनावी रथ और नाकामियों पर लगाम लगाना मुश्किल है। विपक्षी दल अपने क्षुद्र स्वार्थों को तिलांजलि देकर और राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में मुद्दों पर एकजुट होकर ही भाजपा से मुकाबला कर पाएंगे। विपक्षी दलों के बिखराव का फायदा भाजपा पहले भी उठाती रही है और आगामी कर्नाटक सहित लोकसभा चुनावों में भी उठाने से पीछे नहीं रहेगी।
योगेंद्र योगी
स्वतंत्र लेखक
By: divyahimachal
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Rani Sahu
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