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- अवसर बनाम अवसाद
जनता से रिश्ता वेबडेस्क | सूर्यप्रकाश चतुर्वेद | ठीक ही कहा जाता है कि आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है। जितने भी नए शोध हुए और नई-नई चीजें ईजाद हुर्इं, वह जरूरत पड़ने पर की गई कोशिशों का ही प्रतिफल है। किसी ने क्या खूब कहा है- 'इंसां न जीते जी करे तौबा खताओं से, मजबूरियों ने कितने फरिश्ते बनाए हैं'। आशय यही है कि जितने भी संत, पैगंबर और सुधारक फरिश्ते हुए हैं, वे अधिकतर जरूरत और मजबूरियों की ही देन हैं। इसलिए कोई ताज्जुब नहीं कि महामारी के दौरान भी कई लोग मजबूरी में पुराने काम का छोड़ कर कुछ नया करने की और आकर्षित हुए। जो भी हो, 'आपदा में अवसर' ढूंढ़ने का मुहावरा खूब चला। इस त्रासदी के दौरान कुछ लोगों ने आपदा में भी अवसर तलाश लिया। कुछ लोग पूरी निष्ठा और ईमानदारी से कुछ नया करने लगे, वे खुश हैं। यह सकारात्मक पहलू है, पर इसी के साथ कुछ ऐसे भी लोग हैं जो कुछ नया करने की कोशिश में किसी भी हद तक जाते नजर आए, भले ही वह कितना भी अनैतिक वह आपत्तिजनक क्यों न हो।