सम्पादकीय

आपदा में ढूंढा अवसर

Gulabi
23 Oct 2020 3:52 AM GMT
आपदा में ढूंढा अवसर
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भारत में कोरोना महामारी का एक इस्तेमाल सरकार ने विरोध की आवाज को दबाने और अपने वैसे आर्थिक एजेंडे को लागू
जनता से रिश्ता वेबडेस्क। भारत में कोरोना महामारी का एक इस्तेमाल सरकार ने विरोध की आवाज को दबाने और अपने वैसे आर्थिक एजेंडे को लागू करने के लिए किया है, जिसका सामान्य स्थितियों में जोरदार विरोध होता। लेकिन ऐसा सिर्फ भारत में नहीं हुआ है। बल्कि एक ताजा रिपोर्ट में यह बताया गया है कि दुनिया भर की सरकारें महामारी का इस्तेमाल निगरानी बढ़ाने और ऑनलाइन असंतोष को दबाने के लिए कर रही हैं। मानवाधिकार निगरानी रिपोर्ट में इसका पूरा ब्योरा दिया गया है। वॉशिंगटन स्थित फ्रीडम हाउस की इस रिपोर्ट में कहा गया है कि दर्जनों देशों के अधिकारियों ने कोविड-19 महामारी को बहाना बनाते हुए अपनी निगरानी शक्तियों को बढ़ाने और नई तकनीक की तैनाती को सही ठहराया है। आम दिनों में ऐसे कदमों को व्यक्तिगत आजादी के खिलाफ माना जाता था। रिपोर्ट के मुताबिक असहमति पर बढ़ती सेंसरशिप और सामाजिक नियंत्रण के लिए तकनीकी प्रणालियों का पिछले सात महीनों में जम कर इस्तेमाल हुआ है।

यह विडंबना है कि जब महामारी के समय में डिजिटल तकनीक पर समाज की निर्भरता तेजी से बढ़ी है, तभी इंटरनेट पर आजादियों पर लगाम लगाए गए हैं। इससे यह साफ हुआ है कि निजता की रक्षा और कानून के शासन को महफूज रखने के लिए अगरह पर्याप्त उपाय नहीं हुए, तो नई तकनीकों का राजनीतिक दमन के लिए आसानी से इस्तेमाल किया जाएगा। फ्रीडम हाउस इंडेक्स में 65 देशों में 100 अंको के स्कोर पर लगातार दसवें साल इंटरनेट फ्रीडम में गिरावट दर्ज की गई है। यह पैमाना 21 संकेतकों पर आधारित है, जिनमें इंटरनेट इस्तेमाल की बाधाएं, सामग्री पर सीमा और यूजर के अधिकारों का उल्लंघन शामिल है। रिपोर्ट के मुताबिक लगातार छठे साल चीन सबसे खराब रैंकिंग पाने वाले देश के रूप में सामने आया है। रिपोर्ट के मुताबिक चीनी अधिकारियों ने कम और उच्च तकनीक वाले उपकरण का इस्तेमाल ना केवल कोरोना वायरस के प्रकोप का प्रबंधन करने के लिए किया, बल्कि वहां इंटरनेट यूजर्स को स्वतंत्र स्रोतों से जानकारी साझा करने और आधिकारियों से सवाल पूछने से भी रोका गया। फ्रीडम हाउस का कहना है कि अनुमानित तौर पर दुनिया में 3.8 अरब लोग इंटरनेट इस्तेमाल करते हैं। मगर सिर्फ 20 फीसदी लोग ही ऐसे देश में रहते हैं, जहां इंटरनेट आजाद है। 32 फीसदी ऐसे देशों में रहते हैं जहां इंटरनेट "आंशिक रूप से स्वतंत्र" है। जबकि 35 फीसदी लोग ऐसे देश में रहते हैं जहां ऑनलाइन गतिविधियां आजाद नहीं है।

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