सम्पादकीय

अफीमी सत्ता: अफगानिस्तान की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था की जड़ों में घुला है अफीम

Rani Sahu
30 Sep 2021 8:18 AM GMT
अफीमी सत्ता: अफगानिस्तान की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था की जड़ों में घुला है अफीम
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आज से 30 साल पहले भी सिर पर सफेद पगड़ी, कंधे पर सफेद झोला और झोले में बादाम,

ज्योतिर्मय रॉय। आज से 30 साल पहले भी सिर पर सफेद पगड़ी, कंधे पर सफेद झोला और झोले में बादाम, किशमिश लेकर लंबे चौड़े पठान को 'बादाम ले लो, किशमिश ले लो' कहकर दिल्ली की गलियों में आवाज लगाते हुए देखा जा सकता था. उन दिनों, पठान का मतलब था, ईमानदार और 'जुबान के पक्के' इंसान, जो छल-कपट और बेईमानी से दूर, शुद्धता और ईमानदारी के प्रतीक थे. भारतीय समाज में तब पठान को किसी धर्म के साथ जोड़कर नहीं देखा जाता था.

बादाम और किशमिश अफगानिस्तान के बंजर रेगिस्तान के मुख्य निर्यात योग्य कृषि उत्पाद हैं. लेकिन पिछले चार दशकों से तस्वीर बिल्कुल बदल गयी है. आज अफगानिस्तान में हर जगह अफीम की खेती का जाल फैला हुआ है. अब अफगानिस्तान में लहराती अफीम की खेती विश्व में नशा फैलाती है. कहा जाता है कि अफगानिस्तान की सामाजिक व्यवस्था, अर्थव्यवस्था और यहां तक कि तालिबान शासन की जड़ें भी अफीम की खेती में पाई जाती हैं. अफगानिस्तान के गृहयुद्ध, भू-राजनीतिक गतिशीलता, तालिबान का चढ़ाव, सभी का संबंध अफीम से है.
अफगानिस्तान दुनिया के अवैध अफीम का प्रमुख उत्पादक
पिछली शताब्दी से की जा रही अफीम की खेती, अस्सी के दशक में आकर अफगानिस्तान में फलने फूलने लगी. 1986 से 2000 तक, अफगानिस्तान की अफीम की खेती में हर साल 23 प्रतिशत की वृद्धि हुई. कोरोना काल में 2019 की तुलना में 2020 में 37 प्रतिशत (61,000 हेक्टेयर) की वृद्धि हुई. अफीम अब अफगानिस्तान के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग एक तिहाई है और लगभग 60,0000 लोगों को पूर्णकालिक रोजगार प्रदान करता है. 1990 में अफगानिस्तान दुनिया के अवैध अफीम का प्रमुख उत्पादक बन गया. 1999 तक, दुनिया की 69 प्रतिशत अवैध अफीम का उत्पादन अकेला अफगानिस्तान करता था. आज दुनिया की 90 प्रतिशत, यूरोप के बाजार का 95 प्रतिशत, कनाडा के बाजार का 90 प्रतिशत हेरोइन अफगान उत्पादित अफीम से बनती है.
नशे के व्यापार से होती है आतंकवादी समूहों को धन की आपूर्ति
यूएन ऑफिस ऑफ़ ड्रग्स एंड क्राइम (यूएनओडीसी) के काबुल कार्यालय के प्रमुख सीज़र गुड्स ने रॉयटर्स को दिए एक बयान में कहा, "अपनी आय के मुख्य स्रोतों में से एक के रूप में अफगान अफीम के व्यापार पर तालिबान ने भरोसा किया है." नशे के इस अवैध व्यापार ने देश, समाज और अर्थव्यवस्था के साथ-साथ राजनीति को भी प्रभावित किया है. हेरोइन से होने वाले मुनाफे का उपयोग तालिबान के साथ-साथ तथाकथित इस्लामिक स्टेट और अल कायदा जैसे आतंकवादी समूहों के धन की आपूर्ति के लिए भी किया जाता है.
अफ़ग़ान-अमेरिकी पत्रकार फ़रीबा नवा ने अपनी किताब 'ओपियम नेशन: चाइल्ड ब्राइड्स, ड्रग लॉर्ड्स, एंड वन वूमेन्स जर्नी थ्रू अफ़ग़ानिस्तान' में गैर कानूनी नशीली दवाओं के व्यापार के शक्तिशाली प्रभावों का एक उल्लेखनीय विवरण दिया है. देश के अंदर इस अवैध दवा उद्योग का मूल्य 4 अरब डॉलर और देश की सीमाओं के बाहर 75 अरब डॉलर है. अफीम देश के सकल घरेलू उत्पाद का 60 प्रतिशत है. अफ़गान के अनगिनत लोग अपनी आजीविका के लिए अफीम की खेती, शोधन, तस्करी पर निर्भर रहते हैं. नशे के इस अवैध व्यापार से तालिबान की वार्षिक आय 10 से 40 करोड़ डॉलर है.
वास्तव में, आज अफगानों के दैनिक जीवन को नियंत्रित करने वाला कोई और नहीं अफीम है. आज नशे के इस अवैध व्यापार के साथ अफगानियों की जिंदगी प्रभावित होती है. अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अफीम की मांग का सीधा प्रभाव अफगानियों की रोज़मर्रा की जिंदगी में दिखाई देता है. अफीम की खेती करने वाले गरीब किसान अमीर ड्रग माफियाओं से खेती करने के लिए बयाना के तौर पर पैसा लेते है. किसी कारण अगर फसल का उत्पादन अच्छा नहीं हुआ तो इन किसान परिवारों पर ड्रग माफिया द्वारा अत्याचार किया जाता है. इन परिस्थितियों में पैसे के बदले उन्हें अपने घर के छोटी बच्चियों को ड्रग माफिया को सौंपने के लिए मजबूर होना पड़ता है, जिन्हें 'अफीम दुल्हन' (ओपीएम ब्राइड) कहा जाता है.
तालिबान के विस्तार के पीछे अफीम उद्योग का बड़ा हाथ
विशेषज्ञों का कहना है कि तालिबान के विस्तार के पीछे अफीम उद्योग का बड़ा हाथ है. अफीम उद्योग तालिबान की वित्त पोषण (फंडिंग) का सबसे बड़ा स्रोत है. तालिबान युग के पहले दौर में अफगान युद्ध के दौरान अमेरिका बार-बार अफीम के इस चक्र को तोड़ने की कोशिश करता रहा. बराक ओबामा से लेकर हामिद करजई तक, सभी ने स्वीकार किया कि अफगानिस्तान में सुरक्षा, समृद्धि और स्थिरता के लिए अफीम मुख्य बाधा है.
इस अवैध अफीम को रोकने के लिये अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा 2006-07 में विस्तृत विश्लेषण किया गया था. सुझाव दिया गया था कि, अफगान अफीम को वैध तरीके से दवा उद्योग में उपयोग किया जा सकता है. लेकिन वास्तव में यह देखा गया है कि अफीम की कुल उत्पादन की तुलना में दवा उद्योग में किए जा रहे वैध अफीम की मांग बहुत कम है.
संयुक्त राज्य अमेरिका ने अफीम उत्पादन को सीधे रोकने की कोशिश की. कई लोग अफगानिस्तान के युद्ध को अफीम युद्ध कहते हैं. लेकिन हकीकत में हज़ारों कोशिशों के बाद भी अवैध अफगान अफीम उत्पादन को रोका नहीं जा सका. अफीम से जुड़े व्यापार को रोकने के लिए अमेरिका ने 2001 के बाद इस युद्ध में औसतन 15 लाख डॉलर प्रतिदिन खर्च किया है.
2010 तक, यह स्पष्ट हो गया था कि अफगानिस्तान में अफीम उत्पादन को रोकना असंभव है. आखिरी कोशिश 2017 के अंत में, राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के कार्यकाल के दौरान की गई थी. ट्रम्प ने अफीम और हेरोइन जैसी दवाएं बनाने के लिए लैब, रिफाइनरियों आदि को नष्ट करने के लिये ऑपरेशन 'आयरन टेम्पेस्ट' आरंभ किया, जिसका उद्देश्य तालिबान के पैसे की आपूर्ति पर प्रहार करना था. तालिबान के कमाई का 60 प्रतिशत हिस्सा नशीली दवाओं के व्यापार से आता है. इस ऑपरेशन के अंतर्गत अमेरिका ने 200 हवाई हमलों की एक श्रृंखला शुरू की, जिसमें सेना ने उपग्रह-निर्देशित बमों के माध्यम से तालिबान के एक गुप्त नेटवर्क के 25 अफीम प्रयोगशालाओं को नष्ट किया. इस नेटवर्क के जरिए विद्रोह के लिए प्रति वर्ष 20 करोड़ डॉलर की उगाही होता थी. लेकिन जमीनी स्तर पर अफगानियों के समर्थन के कारण, बड़े पैमाने पर अमेरिकी बम विस्फोटों के बाद भी अमेरिका नशीली दवाओं के बुनियादी ढांचे को तोड़ नहीं पाया. और इस बीच, किसी अज्ञात कारण से ट्रम्प प्रशासन ने हमले को बीच में ही रोककर और तालिबान के साथ समझौते के लिए बैठ गए.
अफीम युद्ध
अफगानिस्तान में अमेरिका और नाटो ने जो युद्ध में गंवाया है, वह वास्तव में एक 'अफीम युद्ध' ही है. अफगानिस्तान में तालिबान दूसरी बार सत्ता पर कब्जा करने के बाद, घोषणा करता है कि वह अवैध अफीम व्यापार को जारी नहीं रखेंगे. लेकिन पश्चिमी अनुदानों के बंद होने से तालिबान शासकों के पास धन की कमी है, इस हालत में तालिबान की फंडिंग का क्या होगा? इसमें कोई संदेह नहीं है कि नशीली दवाओं पर प्रतिबंध की घोषणा, तालिबान द्वारा अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का पक्ष हासिल करने का एक प्रयास है. इसलिए अभी यह कहना मुश्किल है कि तालिबान इस घोषणा में कितने ईमानदार है.
अफगानिस्तान से नशे के उत्पादन को जड़ से मिटाने का जो सपना अमेरिका तथा उसके मित्र देशों ने देखा था, जिसके लिए अमेरिका ने 9 अरब डॉलर खर्च किए, अफगानिस्तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद उस सपने का क्या होगा? प्रश्न यह भी है कि, अवैध अफीम व्यापार पर प्रतिबंध के परिणामस्वरूप बड़ी संख्या में अफीम उत्पादनकारी किसानों की आजीविका प्रभावित होगी, इसका सामना तालिबान कैसे करेगा? अफगानिस्तान में औद्योगीकरण के अभाव में हजारों लोगों को वैकल्पिक आजीविका प्रदान किए बिना इस अवैध अफीम के उत्पादन को रोकना बहुत मुश्किल ही नहीं, बल्कि असंभव है.
युद्धग्रस्त इस देश में वैकल्पिक व्यवस्था करने के लिए कृषि और उद्योग में निवेश करने की आवश्यकता है. अफगानिस्तान के अफीम पर निर्भर आबादी को अफीम चक्र से निकालने और इस चक्र के निर्मूलन के लिए अफगानिस्तान सरकार के साथ साथ विश्व के सभी देशों को एकजुट होकर कार्रवाई करने की आवश्यकता है, क्योंकि विश्व के ज्यादातर देशों का युवा वर्ग किसी ना किसी रूप में नशे की चक्र में फंसे हुए है.


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