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नये बिहार की उम्मीद के साथ आये थे नीतीश कुमार
पटना. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) जब बिहार के ग्रामीण इलाकों में जाते हैं तो उनका ज्यादातर समय 'गुजरे हुए कल' को समझाने और याद दिलवाने में निकलता है. वो बार-बार याद दिलाते हैं कि 'उस कल' को नहीं भूलना है, 'उस कल' को पकड़ कर रखना है. वो कल जो बीत चुका है, वो आज जो बीत रहा है और वो कल जो आने वाला है, सबका हिसाब रखना है. 'उस कल' और आने वाले कल के बीच में बिहार की 13 करोड़ जनता खड़ी है. सदियों से, उम्मीद के साथ टकटकी लगाए. आगे बढ़ने की आस लिए कि एक दिन नये समाज का सृजन होगा. एक उन्नत समाज बनेगा, एक समृद्ध बिहार (Bihar) बनेगा. एक रोजगार युक्त बिहार बनेगा.
वो कल जो गुजर चुका वो भी उतना ही महत्वपूर्ण है क्योंकि उसी के आधार पर आज की नींव रखी जा रही है और उसी बुनियाद पर आने वाला कल भी खड़ा होगा. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को आप सुनेंगे तो उनका संबोधन कुछ ज्यादा भिन्न नहीं नजर नहीं आएगा 2020 के भाषण से.
बिहार की पीठ पर गुजरा हुआ कल सवार होना चाहता है, जो काफी पहले गुजर चुका है. उसकी याद उनलोगों को दिलाने की जरूरत है, जिनका जन्म ही 2000 के दशक में हुआ. उनके लिए जरूरी है कि वो बिहार का इतिहास पढ़ें, देखें और समझें. लेकिन यह हम सबका फर्ज है कि उन्हें हम सपने देखने से न रोकें. उन्हें हम आगे बढ़ने का हौसला दें.
नये बिहार की उम्मीद के साथ आये थे नीतीश कुमार
नीतीश कुमार नए बिहार की उम्मीद के साथ आए थे. जब विकास की बात होने लगी थी. जब सड़कें बननी शुरू हुईं, जब कार में सेकंड गियर से थर्ड और थर्ड से फोर्थ और फिफ्थ गियर लगने लगा था. याद होगा जब मोबाइल चार्ज करने के लिए लोग बड़ी-बड़ी बैटरी लगवा रहे थे. फोन पर बात करने और करवाने के पैसे लिए जाते थे. वो समय भी चला गया जब गांव में बिजली तार की चोरी बंद हो गई. जब फाइबर के तार लगने लगे. जब दो फेजे में बिजली मिलने लगी. जब गावों के अंदर 22 घंटे बिजली आने लगी. जब लड़कियां सलवार और कुर्ती पहनकर फर्राटे से साइकल चलाकर स्कूल जाने लगी. जब बिहार के विकास दर की कहानी दिल्ली में अग्रेजी के अखबारों के मुख्य पृष्ठ पर छपने लगी. कौन कहता है बिहार नहीं बदला? जो ऐसा कहता है, झूठ बोल रहा है वो.
नीतीश जब बात करते हैं उनके भाषण के केन्द्र में महिलाएं होती हैं, जीविका समूह की लाखों दीदियां होती हैं. उनके भाषण को सुनने के लिए पंचायत की वो महिलाएं होती हैं, जो 35 प्रतिशत आरक्षण लेकर गावों में अपनी सरकार चला रही हैं. यह अदृश्य चेहरे मात्र नहीं हैं, जिनसे समय समय पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार संवाद करने लगते हैं.
यह पहली बार नहीं है कि नीतीश सोशल इंजीनीयरिंग के साथ-साथ अपने कोर वोट बैंक को एड्रैस करते हैं, नीतीश को विश्वास रहता है कि उनका वोट बैंक वो लाखों महिलाएं हैं जिनके लिए उनकी सरकार बहुत कुछ कर रही है. मद्यपान निषेध (शराबबंदी कानून) उसमें से एक है, जिसके जरिये वो समाज को सुधारने का संकल्प ले चुके हैं, भले ही इस नीति की सफलता को लेकर हमेशा सवाल उठता रहा है. भले ही समय-समय पर शराब की खेप पकड़ी जाती रही है, गिरफ्तारियां होती रही हैं.
हर घर नल का जल ले जाने का संकल्प किसी भागीरथ प्रयास से कम नहीं
हर घर नल का जल ले जाने का संकल्प किसी भागीरथ प्रयास से कम नहीं है, जिसके द्वारा नीतीश कुमार घर-घर पीने का पानी पहुंचा रहे हैं. हालांकि इस योजना को लेकर सवाल भी उठे हैं. सरकारी दावों की पोल भी समय-समय पर खुलती रही है. लेकिन नीतीश पीछे नहीं मुड़ते हैं, उनके निश्चय में एक और निश्चय जुड़ जाता है, हर खेत तक सिंचाई का पानी पहुंचाने का. विकास तो एक सतत प्रक्रिया है इसमें और ईंधन भरने की जरूरत है.
बिहार बढ़ रहा है लेकिन बिहार विकास के पायदान पर सबसे नीचे क्यों खड़ा रहे? कब तक रहे. बिहार के युवा कश्मीर में क्यों मारे जाएं? बिहार क्यों न उस ग्लोबल विलेज का हिस्सा बने, जिसे इंटरनेट ने एक बड़ा बाजार मुहैया करा दिया है. जो काम बिहार के लोग दिल्ली, मुंबई और पंजाब जाकर करते हैं, वही मधुबनी, सहरसा, गया, नालंदा, भागलपुर या बांका में क्यों न हो? अब समय काम करने का है, सृजन का है. अब समय सिर्फ सपने देखने का नहीं, उन सपनों को धरातल पर उतारने का भी है.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
ब्रज मोहन सिंह, एडिटर, इनपुट, न्यूज 18 बिहार-झारखंड
पत्रकारिता में 22 वर्ष का अनुभव. राष्ट्रीय राजधानी, पंजाब , हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में रिपोर्टिंग की.एनडीटीवी, दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका और पीटीसी न्यूज में संपादकीय पदों पर रहे. न्यूज़ 18 से पहले इटीवी भारत में रीजनल एडिटर थे. कृषि, ग्रामीण विकास और पब्लिक पॉलिसी में दिलचस्पी.
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Gulabi
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