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क्या चल रहा था पीएम मोदी के दिल में
गुरु पर्व के दिन जब पीएम मोदी (PM Modi) ने देश के नाम संदेश का ऐलान किया तो एक बार फिर अटकलों का बाजार गरम हो गया. किसी ने कहा कि पीएम करतारपुर साहिब (Kartarpur Sahib) पर बोलेंगे तो किसी ने कहा कि बच्चों के टीकाकरण पर बोलेंगे. लेकिन एक बार फिर राजनीतिक पंडित गलत साबित हुए. पीएम मोदी (PM Modi) ने एक और बड़ा ऐलान कर दिया और ये एक ऐसा ऐलान था, जो देश के अन्नदाता यानी किसानों को एक बार फिर सुखद संदेश दे गया. सूत्र बता रहे हैं कि देश हित में लाया गया कृषि कानून वापस लेने से पीएम मोदी निराश जरूर हुए हैं, क्योंकि वो पहले पीएम हैं, जिन्होंने किसानों के हित में सुधार के काम को आगे बढ़ाया था. लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय के सूत्रों का दावा है कि पीएम मोदी रुकने वाले नहीं हैं. वो अपनी सुधार की यात्रा जारी रखेंगे.
सूत्र बताते है कि पीएम मोदी ने राष्ट्रहित को सर्वोपरि रखा. किसानों के हित का ध्यान रखने में पीएम का ना तो व्यक्तिगत हित आड़े आया और ना ही उनकी पार्टी बीजेपी का कोई हित उनका रास्ता रोक पाया. पीएम मोदी की सरकार ने एक कृषि कानून लाने का फ़ैसला लिया था, जो आजादी के बाद अब तक कोई भी केंद्र सरकार नहीं कर पायी थी. किसानों को हक देने के साथ साथ ये उनकी फसल को भी उचित कीमत भी दिलाना सुनिश्चित कर रहा था. लेकिन जिन पार्टियों ने संसद में इसका समर्थन किया था, वही कानून बनाने के बाद इसकी मुखालफत करने लगीं.
MSP को लेकर पंजाब के अमीर किसानों, जिन्हें आढ़ती कहते हैं ने ऐसा मोर्चा खोला कि किसान आंदोलन की आग दिल्ली तक आंदोलन पहुंची. दिल्ली के टिकरी बॉर्डर, सिंघु बॉर्डर, गाजीपुर बॉर्डर पर किसान धरने पर बैठ गए. सरकार ने कई दौर की बात की, लेकिन किसान अड़े रहे. पीएम मोदी ने अपने इस कृषि सुधार कानून के सपने को 2 साल के लिए टालने का ऐलान भी कर दिया, लेकिन गतिरोध बना रहा. मसला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा, लेकिन किसान नहीं माने.
आंदोलन का फायदा उठाने में जुट गईं थीं राष्ट्र विरोधी ताकतें
पंजाब में स्थितियां ऐसी बना दी गईं कि देश विरोधी ताकतें उन्हें पैसा भी भेजने लगीं और उन्हें भड़काने का काम भी करने लगीं. एजेंसी सूत्रों के मुताबिक खालिस्तान समर्थक लोग इस भीड़ का हिस्सा हो गए और इनकी फंडिंग के तार भी विदेशों से जुड़ने लगे थे. लाल किले पर हिंसा इस अलगाववादी मुहिम का ही हिस्सा थी. यहां तक की आईएसआई की देश को अंदर से खोखला करने की मुहिम भी शुरू हो गई थी. जाहिर था कि ये सीधे सच्चे किसान अलगाववादी तत्वों के हाथ में खेलने लगे थे. इससे समाज में टकराव और दरार दोनों नजर आने लगी थीं.
सूत्रों के मुताबिक 1980 के दशक को याद करें तो तत्कालीन पीएम इंदिरा गांधी ने स्वर्ण मंदिर को युद्ध का मैदान बना दिया था. तब भी सिख समुदाय को नाराजगी थी, लेकिन उनके घावों पर मरहम लगाने की कोशिश नहीं की गई. इसके विपरीत पीएम मोदी ने गुरु नानक जयंती पर प्रकाश पर्व के मौके पर कृषि कानूनवापस लेने का ऐलान कर दिया. वो भी ऐसे वक्त जब संसद के दोनों सदनों में मोदी सरकार बहुमत में हैं और कई राज्यों में बीजेपी की ही सरकारें हैं. फिर भी पीएम मोदी ने ये फैसला लिया, जब ये साफ हो गया कि सिर्फ मुट्ठी भर लोग इसके विरोध में हैं और वो कृषि कानून के फायदे नहीं देखना चाहते.
सियासी वजहें
इसलिए पीएम मोदी ने एक लोकतांत्रिक रास्ता चुना और एक कुशल राजनेता की तरह फैसला लेते हुए बिल वापस लेने का ऐलान कर दिया. यानि एक बात साफ है कि देश की एकता और अखंडता के लिए पीएम मोदी कोई भी फैसला ले सकते हैं. पीएम मोदी ऐसी कोई भी बात आगे नहीं बढ़ने देंगे जो देश हित के आड़े आए. पिछले कुछ महीनों से पंजाब और हरियाणा में बीजेपी नेताओं को किसानों के विद्रोह का सामना करना पड़ रहा था. पंजाब में आलम ये था कि कई बीजेपी उम्मीदवार पार्षद के लिए अपना नामांकन तक दाखिल नहीं कर पाए थे.
हरियाणा से भी ऐसे ही टकराव की खबरें हर रोज आ रही थीं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जहां पिछले विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने स्वीप किया था, वहां किसान आंदोलन के चलते संदेश अच्छे नहीं आ रहे थे. भले ही ज्यादातर राज्यों के किसानों ने ये बिल अपना लिया था, लेकिन पंजाब, हरियाणा और यूपी में विधानसभा चुनाव पर शायद ये असर डाल सकता था. उधर पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह ने बीजेपी के साथ समझौते का ऐलान भी कर दिया था. पुरानी सहयोगी अकाली दल भी किसान बिल से नाराज थी. इसलिए पीएम मोदी ने तमाम स्थितियों को ध्यान में रखते हुए कृषि कानून वापस लेने का ऐलान कर दिया.
पीएम मोदी का सिख समुदाय से विशेष लगाव
पीएम मोदी सिख समुदाय की भावनाओं को लेकर हमेशा खासे संवेदनशील रहे हैं. जब सिख समुदाय के एक प्रतिनिधि मंडल ने उनसे मिलकर करतारपुर साहिब खोलने की मांग की तो पीएम ने फैसला लेने में देर नहीं लगायी. जब कृषि कानून की बारी आयी तो उन्होंने गुरु नानक जयंती का दिन चुना. बतौर बीजेपी के राष्ट्रीय पदाधिकारी, नरेंद्र मोदी ने प्रभारी के तौर पर पंजाब और चंडीगढ़ में काम भी किया और लंबा समय भी बिताया. तब से ही सिख समुदाय से उनका करीबी रिश्ता रहा है. गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर मोदी ने 2001 में आए भूकंप से क्षतिग्रस्त कच्छ के कोट लखपत गुरुद्वारे का अपनी व्यक्तिगत पहल से पुनर्निर्माण कार्य था.
दिल्ली में पीएम मोदी के कार्यकाल में गुरु गोविंद सिंह का 350वां प्रकाश पर्व, गुरु नानक का 550वां प्रकाश पर्व पूरे जोश के साथ मनाया गया. कोरोना की बंदिशें होने के बावजूद 2021 में गुरु तेगबहादुर का 400वां प्रकाश पर्व मनाया गया. पीएम मोदी अक्सर दिल्ली के गुरुद्वारे में बिना किसी सुरक्षा के चले जाते हैं और आम लोगों से खूब घुलते मिलते हैं. पिछले दिनों ही अफगानिस्तान से सिखों और उनके पवित्र ग्रंथ को बचा कर दिल्ली लाया गया है.
तय हैं कि पीएम मोदी कभी भी सिख समुदाय की भावनाओं को आहत नहीं करते. शायद यही कारण है कि पीएम मोदी ने अपनी राजनैतिक कुशलता का परिचय देते हुए कृषि कानून वापस ले लिया और वो भी इस संदेश के साथ की जिन सुधारों की प्रक्रिया में वो लगे हैं, वो बदस्तूर जारी रहेंगी.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
अमिताभ सिन्हा, राजनीतिक संपादक, न्यूज 18 इंडिया.
ढाई दशक से अधिक समय से पत्रकारिता में सक्रिय. देश के लब्ध प्रतिष्ठित टीवी चैनलों के अतिरिक्त अखबारों का भी लंबा अनुभव. छह वर्ष से नेटवर्क 18 में कार्यरत.
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