सम्पादकीय

Opinion: जनरल बिपिन रावत के सुधार कार्यों को आगे बढ़ाना ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी

Gulabi
11 Dec 2021 2:33 PM GMT
Opinion: जनरल बिपिन रावत के सुधार कार्यों को आगे बढ़ाना ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी
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जनरल बिपिन रावत के सुधार कार्यों को आगे बढ़ाना
"जनरल रावत और उनके साथियों को सेना और देश की महान जनता ने जिस तरह से विदा किया, इसकी मिसाल बहुत ही कम देखने को मिलती है. देश का शायद ही कोई ऐसा कोना होगा जहां उनकी याद में दीपक नहीं जलाए गए होंगे. ये सम्मान ऐसे नहीं कमाया जाता है, इसके लिए सैनिक को सबसे बड़ी कुर्बानी देने के लिए तैयार रहना होता है. लेकिन दुख होता है जब कुछ लोग ऐसे मौके पर भी राजनीति करते हैं."
हमें गर्व करना चाहिए कि भारतीय हमारी सेना गैर-राजनीतिक है, यही हमारी ताकत है, यही इसकी पहचान भी है. सेना की निष्ठा हर उस चुनी हुई सरकार में होती है, जो उस समय सत्ता में रहती है, यही परंपरा है. इसलिए सेना को लेकर टिप्पणी करना, उसकी उपलब्धियों पर सवाल उठाना बेतुका और बेमानी है. ऐसे लोग न सिर्फ सेना के मनोबल को गिराने का कुत्सित प्रयास कर रहे होते हैं बल्कि अपने ही असली चरित्र का भौंडा प्रदर्शन भी करते हैं.
भारतीय सेना एक मात्र ऐसा संगठन है, जिसे अपने अनुशासन के लिए जाना जाता है, जिसमें सभी धर्मों के लोगों को बराबर सम्मान मिलता है. एक तरफ से हर-हर महादेव की आवाज़ आती है तो दूसरी तरह से बोले सो निहाल का जयकारा भी लगता है. यही संस्कृति है भारतीय सेना का. सर्व समवेशी; सबको साथ लेकर चलने वाला. देश के लिए मर मिटने वाला क्योंकि सैनिकों के लिए देश और उसका बटालियन ही सब कुछ होता है.
इस समय जब पूरा देश चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जेनरल रावत और अन्य वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों के असामयिक मौत से गमजदा है, देश में ही ऐसे लोग हैं जो शहादत को मजाक का विषय बनाने से बाज नहीं आते हैं. दुख है, इसमें वैसे भी लोग भी शामिल हो जाते हैं जो कभी भारतीय सेना का हिस्सा हुआ करते थे.
चंडीगढ़ में रहने वाले एक अवकाश प्राप्त सैन्य अधिकारी ने तो सारी मर्यादाओं हदों को तोड़ दिया. जब पूरा देश जनरल रावत की सलामती की दुआ कर रहा था, तब उन्होंने रावत को पहले ही मृतक घोषित कर दिया.
कम से कम देश के सबसे बड़े सैन्य अधिकारी के लिए इतना सम्मान तो बनता ही था, खासकर उस अधिकारी के लिए जो देश का पहला सीडीएस रहा हो, जिनहोने देश के लिए दर्जनों मेडल जीते हों. जनरल रावत वैसे अधिकारी थे जिनहोने दुश्मन के घर में घुसकर उसे सबक सिखाया, चाहे बात पाकिस्तान की हो या म्यांमार में घुसकर विद्रोहियों का सफाया करने की.
इसके पहले भी उस बड़े ऑफिसर ने अरुणाचल में 2017 में हुए हेलिकॉप्टर दुर्घटना को लेकर भ्रामक तस्वीरें और जानकारी शेयर किए थे. दरअसल, जिन स्थितियों में जनरल रावत की मौत हुई थी, ये अधिकार या तो सेना का, सरकार का या परिवार का था.
आप सबको 2012 में सेना द्वारा "तख्तापलट" की स्टोरी भी बखूबी याद होगी, आखिर इसे प्रकाशित करने का मकसद क्या था? देश की जनता इस तरह के नैरेटिव को अच्छी तरह से समझने लगी है और ये भी जानती है कि इस तरह के पोस्ट क्यों शेयर किए जाते हैं.
सवाल तो तमाम लोगों से होने चाहिए जो पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों को ध्वस्त करने के भारतीय सेना के दावे पर ही सवाल उठाते रहे, सर्जिकल स्ट्राइक को ही निराधार बताते रहे. कम से कम सेना को इस तरह के "आरोपों-प्रत्यारोपों" की राजनीति से दूर रखना चाहिए.
जनरल रावत पहले ऐसे सैन्य अधिकारी थे, जिनको एक यूनिफाइड कमांड की सोच को आगे बढ़ाते हुए तीनों अंगों का प्रमुख बनाया गया था. हो सकता है कि कुछ तथाकथित एक्सपर्ट और पूर्व अधिकारियों को प्रधानमंत्री का ये कदम अच्छा न लगा हो. लेकिन जेनरल रावत को सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि उनके द्वारा शुरू किए गए सुधारों को दुगुने रफ्तार से आगे बढ़ाया जाए.
पूरे देश ने जनरल रावत को जिस तरह अश्रुपूरित विदाई दी है, उससे उनके आलोचकों का कद आज बहुत ही बौना हो गया है. रावत सही मायने में जनता के सेनानायक थे क्या इसमें कोई संदेह नहीं रह गया है.


(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
ब्रज मोहन सिंहएडिटर, इनपुट, न्यूज 18 बिहार-झारखंड
पत्रकारिता में 22 वर्ष का अनुभव. राष्ट्रीय राजधानी, पंजाब , हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में रिपोर्टिंग की.एनडीटीवी, दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका और पीटीसी न्यूज में संपादकीय पदों पर रहे. न्यूज़ 18 से पहले इटीवी भारत में रीजनल एडिटर थे. कृषि, ग्रामीण विकास और पब्लिक पॉलिसी में दिलचस्पी.
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