सम्पादकीय

Opinion: तो मंत्री बनने के बाद अपनी आशीर्वाद यात्रा के दौरान पेशवा बाजीराव की समाधि में इसलिए गए सिंधिया

Gulabi
19 Aug 2021 2:32 PM GMT
Opinion: तो मंत्री बनने के बाद अपनी आशीर्वाद यात्रा के दौरान पेशवा बाजीराव की समाधि में इसलिए गए सिंधिया
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ये पार्टी का कार्यक्रम था लेकिन इस यात्रा के बहाने सिंधिया ने अतीत, वर्तमान और भविष्य तीनों को साधने का प्रयास किया.

प्रवीण दुबे।

भोपाल. कांग्रेस छोड़ने के बाद लम्बे इंतज़ार के बाद केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री बने ज्योतिरादित्य सिंधिया खरगोन जिले के रावेरखेडी में स्थित वीर मराठा पेशवा बाजीराव की समाधि भी पहुंचे. इस यात्रा का स्वरूप और अंदाज़ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सहमति से केंद्रीय नेतृत्व ने तय किया था. वो भी इस वजह से कि विपक्ष के हंगामे के बाद नए मंत्रियों का सदन के अंदर परिचय भी नहीं हो पाया, तो पार्टी ने तय किया कि वे अपनी नई भूमिका का परिचय अपने इलाके में नए अंदाज़ में दें. यूं तो ये पार्टी का कार्यक्रम था लेकिन इस यात्रा के बहाने सिंधिया ने अतीत, वर्तमान और भविष्य तीनों को साधने का प्रयास किया.


सिंधिया राजघराने के साथ एक पहचान सुभद्रा कुमारी चौहान की अंकित की हुई है, जिसका वाणी में ओज भरकर सस्वर उच्चारण कभी भाजपा के सभी बड़े नेता, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तक करते थे, जब सिंधिया कांग्रेस में थे. अंग्रेजों के मित्र सिंधिया. ज्योतिरादित्य अपने उसी अतीत को लेकर लिखी गई लाइन को नए सिरे से परिभाषित करना चाहते हैं और अपना कनेक्शन वीर मराठाओं के साथ पहचान के तौर पर चस्पा करवाना चाहते हैं. अपनी इस यात्रा में उन्होंने पवार, होलकर सहित उन सभी मराठाओं से मुलाक़ात की,जिनका ताल्लुक कभी पुणे के वीर मराठाओं से था. बाजीराव की समाधि में जाने का उद्देश्य भी यही था.

इसमें कोई दो राय नहीं है कि बाजीराव की समाधि सिंधिया के पूर्वजों ने ही बनवाई है लेकिन वो हमेशा सियासी तौर पर उपेक्षित ही रही. इससे पहले कभी भी वहां समारोहपूर्वक कोई आयोजन नहीं हुआ. इस बार मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी रावेरखेडी पहुंचे. सिंधिया और शिवराज दोनों के सर पर बाक़ायदा वीर मराठाओं वाली पगड़ी भी सुशोभित हो रही थी. सिंधिया ओबीसी मराठा नेता के तौर पर अपनी नई पहचान स्थापित करना चाहते हैं और संभवतः आरएसएस भी उन्हें लाइन पर देखना चाहता है.

ये तो बात हुई अतीत को संवारने की कवायद की. अब बात करें सिंधिया की वर्तमान को लेकर चल रही प्लानिंग की. सिंधिया जबसे भाजपा में आये हैं, असीम धैर्यवान और मिलनसार नेता के तौर पर अपनी पहचान स्थापित करने में जुटे हैं. भाजपा ने उन्हें पहले सांसद बनाने और फिर मंत्री बनाने में पर्याप्त इंतज़ार कराया लेकिन मज़ाल है, जो सिंधिया की पीड़ा कभी सार्वजनिक हुई हो. इतना ही नहीं सिंधिया एमपी भाजपा के सभी ध्रुवों के साथ समान सामंजस्य बनाकर रखना चाहते हैं. वो संघ के दफ्तर भी जाते हैं. शिवराज जी से उनकी दोस्ती तो चर्चा का विषय बनती ही है. वो गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा और कैलाश विजयवर्गीय के अलावा उम्र और सियासत में छोटे प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा के घर जाकर लंच भी करते हैं. वो अपने परिवार के धुर विरोधी भाजपा के नेता जयभान सिंह पवैया के घर पर भी मातमपुरसी के बहाने बैठने चले जाते हैं. कुल मिलाकर सिंधिया खुद को एमपी भाजपा के सर्वमान्य,सर्वग्राह नेता प्रस्तुत करना चाहते हैं.

सिंधिया अब महाराज वाले संबोधनों को भी अपने भाषण में खारिज़ करते हैं. वे कहते हैं कि महाराज मेरा पुराना परिचय था और ज्योतिरादित्य सिंधिया मेरा नया परिचय है. परिचय बदलने की इस आतुरता के पीछे भविष्य की ही प्लानिंग है. एमपी में अभी तक तो ये तय सा दिख रहा है कि भाजपा शायद 2023 के चुनावों में शिवराज जी के चेहरे को आगे रखकर चुनाव मैदान में ना जाए. ऐसे में यदि पार्टी सिंधिया को प्रोजेक्ट भले ही न करे लेकिन उनके बारे में सोच तो सकती ही है. सिंधिया उसी गुंजाइश को जीवित और पल्लवित रखना चाहते हैं.

सिंधिया ने किसी नए लेकिन मेधावी छात्र की तरह भाजपा को इतने से अच्छे से समझना शुरू कर दिया है,जितना शायद खुद एमपी के कुछ वरिष्ठ भाजपाई नहीं समझ पाए हों. सिंधिया जानते हैं कि महत्वपूर्ण मसलों को लेकर भाजपा के निर्णय कहाँ से होते हैं. संघ का मुख्यालय क्या और कितनी भूमिका अदा करता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह क्या चाहते हैं. भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष और प्रदेश अध्यक्ष की वरीयता में क्या होगा, इसे भी समझकर सिंधिया बहुत फूंक फूंक कर कदम बढ़ा रहे हैं. क्रिकेट की भाषा में यदि कहें तो सिंधिया को वीरेन्द्र सहवाग की तरह खुलकर बल्ला नहीं चलाना चाहते हैं, बल्कि वे राहुल द्रविड़ की तरह विकेट पर लम्बे वक़्त रहकर, स्ट्राइक रोट्रेट करते हुए स्कोर कार्ड लगातार गतिमान रखने की रणनीति पर काम कर रहे हैं.

हालांकि भविष्य के सवाल पर वे खुलकर खंडन की शक्ल में कहते भी हैं कि "मेरी कोई अभिलाषा मुख्यमंत्री बनने की नहीं है, मैं तो सिर्फ जनता की सेवा करना करना चाहता हूं" लेकिन सभी जानते हैं कि प्रदेश की सियासत में सेवा का सर्वोच्च प्राधिकार मुख्यमंत्री के पास ही होता है. अब ये देखना दिलचस्प होगा कि सिंधिया राहुल द्रविड़ की तरह "द वॉल" बनकर विकेट पर लम्बे वक़्त तक टिके रहेंगे और बड़ा स्कोर बनायेंगे या उनकी ही पार्टी का कोई नेता उन्हें रन आउट करवाता है. वैसे भी यदि पार्टी ने कुछ सोचा तो शिवराज के बाद कौन…? इस सवाल को लेकर एमपी में कई सारे नेताओं की आकांक्षाएं हिलोरें तो मार ही रही हैं.

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)


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