सम्पादकीय

Opinion: आप की मजबूती के सियासी मायने

Neha Dani
14 Dec 2022 2:23 AM GMT
Opinion: आप की मजबूती के सियासी मायने
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2024 में कांग्रेस की आप और भाजपा से निपटने की बड़ी चुनौतियों पर भी।
हाल के चुनावी नतीजों और गुजरात में भाजपा की रिकॉर्डतोड़ जीत की चर्चाओं और विश्लेषणों पर अगर नजर डाली जाए, तो तीन सवाल उभर कर सामने आते हैं। एक, गुजरात में मोदी मैजिक के अपने चरम पर पहुंच जाने के पीछे का सियासी गणित क्या है, दूसरा, हिमाचल में भाजपा और मोदी की तमाम कोशिशों के बावजूद पार्टी की हार और कांग्रेस की वापसी के मायने क्या हैं और तीसरा, आम आदमी पार्टी ने दिल्ली एमसीडी में बड़ी जीत दर्ज कर, गुजरात में पांच विधायकों से खाता खोलकर और अपना वोट शेयर वहां करीब 13 फीसदी पहुंचाकर क्या यह संकेत दिया है कि कांग्रेस के लिए अब आप ज्यादा बड़ा खतरा बन गई है? अगर सही मायनों में देखें, तो आप के इस जबर्दस्त उभार से सबसे ज्यादा नुकसान में अगर कोई है, तो वह है कांग्रेस।
तो क्या यह मान लिया जाए कि 2024 जीतने के लिए राहुल गांधी जिस तरह जमीनी स्तर पर 'भारत जोड़ो' यात्रा के जरिये लोगों से जुड़ने की कोशिश कर रहे हैं या फिर कांग्रेस परिवारवाद के आरोपों से बचने के लिए जिस तरह मल्लिकार्जुन खरगे को पार्टी मुखिया बना चुकी है, उसकी काट तैयार करने के लिए आप बड़ी उपयोगी साबित हो रही है? बेशक कांग्रेस मुक्त भारत की बात करने वाली भाजपा को यह पता है कि कांग्रेस जैसी पार्टी को एकदम से खत्म कर देना नामुमकिन है। यह तभी संभव है, जब विपक्ष में कांग्रेस के वोट काटने वाली वैकल्पिक पार्टियों का विस्तार हो। उत्तर प्रदेश में सपा और बिहार में राजद ने जो विस्तार किया है, उसका आधार अलग है। यह और बात है कि कांग्रेस वहां भी हाशिये पर है। आप में भिन्न संभावनाएं दिखाई देती हैं।
जाहिर है कि 2017 का गुजरात चुनाव मोदी और शाह के लिए बड़ा सबक था। ऐसे में उसे गुजरात में आप जैसी पार्टी काम की साबित हुई, जिसने कांग्रेस के लिए मुसीबत खड़ी कर दी। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कुछ बयानों पर गौर कीजिए। चुनाव से पहले और अब नतीजों के बाद भी प्रधानमंत्री लगातार अपने भाषणों में कांग्रेस से ज्यादा आप पर हमले करते नजर आए हैं। शॉर्टकट की सियासत करने के नाम पर रेवड़ियों जैसी घोषणाएं करने को लेकर लगातार आम आदमी पार्टी पर ही हमले करते नजर आ रहे हैं। इसके लिए भूमिका कोरोना काल के दौरान ही बन गई थी। केजरीवाल तब से ही गुजरात में चुनाव लड़ने की बात बढ़-चढ़ कर करने लगे थे और उनके गुजरात दौरे तेज हो गए थे। यह कोशिश हिमाचल के लिए भी हुई, आप ने यहां भी 67 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, पर वहां की जनता ने उन्हें नकार दिया। पंजाब में कांग्रेस की कमियों से आप ने अपना वजूद बनाया था, लेकिन हिमाचल में कांग्रेस ने आप को जगह नहीं बनाने दी।
अब दिल्ली में एमसीडी की जीत से आप को खुला मैदान मिल गया है। एक मजबूत विपक्ष के तौर पर देश की नंबर दो पार्टी बनाने के लिए आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा भी मिल चुका है। दूसरी तरफ, दिल्ली और गुजरात में कांग्रेस का वोट प्रतिशत जिस तरह से कम हुआ है, वह पार्टी के लिए जरूर चिंताजनक है। ऐसे में, कांग्रेस चाहकर भी फिलहाल ज्यादा कुछ नहीं कर पाएगी, क्योंकि आप के नतीजे ने उसके हौसले पस्त कर दिए हैं।
गुजरात के बंपर नतीजों से यह साबित करने की भी लगातार कोशिश हो रही है कि देश में आने वाले दिनों में भाजपा का कोई विकल्प नहीं है और वर्ष 2024 में भी भाजपा भारी बहुमत से सत्ता में लौटने वाली है। हालांकि हिमाचल प्रदेश की हार ने कहीं न कहीं उसके भीतर की बेचैनी जरूर बढ़ा दी है।
राहुल गांधी की 'भारत जोड़ो' यात्रा जैसे प्रयत्नों से कांग्रेस जो भी हासिल कर सकेगी, वह खुद कांग्रेस की इच्छा शक्ति और सांगठनिक कोशिशों से तय होगा। यही कांग्रेस की चुनौती भी है, क्योंकि भाजपा का हित इसमें है कि आप 'नंबर दो पार्टी' दिखाई दे। फिलहाल सबकी नजर अगले साल होने वाले कुछ राज्यों के विधानसभा चुनावों पर भी है और जाहिर है 2024 में कांग्रेस की आप और भाजपा से निपटने की बड़ी चुनौतियों पर भी।

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सोर्स: amarujala


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