सम्पादकीय

Opinion: शराबबंदी पर पलट गए लालू, कभी ली थी गांधी मैदान में कसम !

Gulabi
23 Nov 2021 4:40 PM GMT
Opinion: शराबबंदी पर पलट गए लालू, कभी ली थी गांधी मैदान में कसम !
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2016 में जब शराब निषेध कानून लाया गया, तब लालू प्रसाद यादव भी गठबंधन का हिस्सा थे लेकिन
पटना. 2016 में जब शराब निषेध कानून लाया गया, तब लालू प्रसाद यादव (Lalu Prasad Yadav) भी गठबंधन का हिस्सा थे लेकिन, राज्य में हो रही शराबजनित मौतों के बाद उन्होंने भी शराब नीति पर सवाल खड़े कर दिये हैं. एक ताजा घटनाक्रम में लालू ने शराब निषेध कानून के औचित्य पर ही सवाल खड़ा कर दिया. 2017 में लालू और नीतीश ने हाथ में हाथ डालकर गांधी मैदान में शराबबंदी (Liquor Ban) के पक्ष में शपथ ली थी. लालू के इस बयान के बाद राजनीतिक तूफान खड़ा होना ही था. हालांकि, राजद ने आधिकारिक तौर पर लालू के बयान से किनारा कर लिया है और कहा है कि शराब पीने वालों के लिए पार्टी में कोई जगह नहीं होगी.
अब इस बात पर बहस छिड़ गई है कि लालू ने शराबबंदी पर पार्टी के रुख से अलग क्यों स्टैंड ले लिया? लालू यादव ने ये भी दावा किया है कि शराबबंदी राज्य को 20,000 करोड़ रुपए का राजस्व घाटा हो रहा है हालांकि ये आंकड़े उनके अपने हैं.
गठबंधन में थे साथ, अब लालू का शराबबंदी पर अलग सुर
लालू यादव कह रहे है कि वो नीतीश को पहले बोले चुके थे कि शराबबंदी कानून वापस करना चाहिए.
पर राष्ट्रीय जनता दल के अध्यक्ष जगदानंद सिंह (Jagada Nand Singh) ने साफ कह दिया कि अगर उनकी पार्टी शराबबंदी पर नीतीश के साथ हैं. जगदानंद का कहना है कि अगर उनके कार्यकर्ता शराब पीते पकड़े गए तो उसे पार्टी से बाहर निकाल दिया जाएगा. वहीं नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव और उनके पिता लालू यादव खुलकर सरकार के खिलाफ हमलावर हैं. बिहार सरकार इन दिनों शराब से हुई मौतों के बाद आक्रामक तेवर में है. पिछले एक हफ्ते में पटना शहर में ही दर्जनों हाइ प्रोफ़ाइल गिरफ्तारिहुई हैं. पुलिस होटलों के साथ-साथ मैरेज पैलेस में भी दस्तक दे रही है. शादियों से पहले पुलिस को लिखित में सूचित करना ज़रूरी बना दिया गया है.
गली गली में शराब मिलने से सरकार की नींद खुली
एक और पहल देखने को मिल रही है कि दूल्हा पक्ष और दुल्हन पक्ष के लोगों को लिखित में अंडरटेकिंग देना ज़रूरी हो गया है कि वो शराब का उपयोग न तो खुद करेंगे, न ही किसी और को करने देंगे. बिहार में जबसे शराब निषेध कानून पास हुआ है, ये सामाजिक दायित्व से आगे कहीं कानून व्यवस्था का भी मुद्दा बन गया है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार पुलिस बल के बूते हर हाल में शराबबंदी कानून को सफल बनाना चाहते हैं. वहीं राजधानी समेत छोटे-बड़े शहरों में शराब की उपलब्धता ने कानून की सफलता पर बड़ा सवालिया निशान खड़ा कर दिया है.
लोग शराब पिएं या नहीं इसका निर्धारण केंद्र नहीं राज्य सरकारें करती हैं क्योंकि शराब की बिक्री, उत्पादन और वितरण राज्य का विषय है. पूरे देश की बात करें तो 29 राज्यों में से 25 राज्यों में शराब की बिक्री और खपत पर किसी भी प्रकार का निषेध नहीं है.अपवाद के तौर पर सिर्फ गुजरात, बिहार, नागालैंड, मणिपुर और लक्षद्वीप में शराब की बिक्री और सेवन पर काफी हद तक रोक है.
बिहार में महाराष्ट्र और तेलंगाना से ज़्यादा शराब पीते हैं लोग
आंकड़े बताते हैं कि बिहार में शराब की खपत महाराष्ट्र, तेलंगाना और गोवा से कहीं ज़्यादा है. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 2020 ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि बिहार में 15.5 प्रतिशत पुरुष शराब पी रहे हैं वहीं महाराष्ट्र जहां शराब परितिबंधित नहीं है, वहां 13.9 प्रीतिशत पुरुष ही शराब पी रहे हैं. ये बात जरूरी है कि शराब पीने की एक बड़ी कीमत बिहार के लोगों को चुकनी पड़ रही है, जेब ढीली करके और जान की भरी कीमत चुकाकर. बिहार जैसे राज्य में 2016 से शराबबंदी कानून लागू है, लेकिन पीने के शौकीनों को मादक पदार्थ मिल जाते हैं. खबर ये भी है कि शहरी इलाकों में फोन कॉल पर शराब उपलब्ध हो रही है.
दिवाली पर हुए मातम को कैसे भूलेंगे लोग?इसी महीने जब पूरे बिहार में दिवाली मनाने की तैयारी चल रही थी तो राज्य के गोपालगंज, बेतिया और मुजफ्फरपुर शहर में जहरीली शराब पीने से कम से कम 50 लोगों की मौत हो गई, ये वैसे लोग थे जो अपने घरों में असंतुलित मात्रा में स्पिरिट डालकर शराब बनाने का काम कर रहे थे. शराब को बनाने का अर्थशास्त्र भी बहुत कठिन नहीं है. देशी ड्रम और कंटेनर में स्पिरिट, महुआ और अन्य सामाग्री मिलाकर लोग शराब बनाने का काम करते थे लेकिन अनियंत्रित मात्रा में स्पिरिट डालने से कभी-कभार मौतें भी हो जाया करती हैं जैसा कि बिहार में एक साथ कई शहरों में देखने को भी मिला.
गांवों में गरीब तबके के लोग खुद शराब बनाते हैं, इसलिए मरते भी हैं, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शराब को एक आवश्यक सामाजिक बुराई मानते हैं. इसलिए शराबबंदी को लेकर वो किसी तरह की ढिलाई के पक्ष में नहीं हैं. कई बार मुख्यमंत्री ने इस मामले पर अपनी राय रखी है.
शराबबंदी को सरकार हर हाल में सफल बनाना चाहती है इसके लिए सरकार ने बड़े स्तर पर प्रशासनिक बदलाव भी किए. एक महत्वपूर्ण बदलाव के तौर पर सरकार ने केके पाठक को मद्य निषेध विभाग का अपर मुख्य सचिव बनाया है, जो अपने कड़क स्वभाव और ईमानदार छवि के लिए जाने जाते हैं, लेकिन क्या, सिर्फ छापे डालने से और बड़े स्तर पर की जा रही गिरफ्तारियों से लोग शराब पीना और बनाना छोड़ देंगे, काश कि ये इतना आसान होता.


(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
ब्रज मोहन सिंह एडिटर, इनपुट, न्यूज 18 बिहार-झारखंड
पत्रकारिता में 22 वर्ष का अनुभव. राष्ट्रीय राजधानी, पंजाब , हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में रिपोर्टिंग की.एनडीटीवी, दैनिक भास्कर, राजस्थान पत्रिका और पीटीसी न्यूज में संपादकीय पदों पर रहे. न्यूज़ 18 से पहले इटीवी भारत में रीजनल एडिटर थे. कृषि, ग्रामीण विकास और पब्लिक पॉलिसी में दिलचस्पी.
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