सम्पादकीय

Opinion: हेमंत सोरेन सरकार पर विपक्ष के साथ अपने भी हमलावर

Gulabi Jagat
5 April 2022 6:36 AM GMT
Opinion: हेमंत सोरेन सरकार पर विपक्ष के साथ अपने भी हमलावर
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झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ विपक्ष का हमलावर होना तो स्वाभाविक बात है
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ विपक्ष का हमलावर होना तो स्वाभाविक बात है, लेकिन अपनों का उनके खिलाफ हो जाना आश्चर्य पैदा करता है. हेमंत सोरेन की भाभी सीता सोरेन खुल कर अपनी सरकार के खिलाफ बोलने लगी हैं. वह सिर्फ बोल ही नहीं रहीं, बल्कि विपक्ष की तरह सरकार के कामकाज के खिलाफ उन्होंने शुक्रवार के दिन राज्यपाल को ज्ञापन भी सौंपा.
सीता सोरेन जामा सीट से झारखंड मुक्ति मोरचा (जेएमएम) की विधायक हैं. जेएमएम प्रमुख शिबू सोरेन के दिवंगत बेटे दुर्गा सोरेन की विधवा सीता सोरेन पहली बार सरकार के खिलाफ इतना मुखर हुई हैं. हालांकि वह पहले भी समय-समय पर सरकार के खिलाफ टीका-टिप्पणी करती रही हैं. फिलवक्त जेएमएम में रहते उन्होंने अपनी दो बेटियों को आगे कर दुर्गा सोरेन के नाम पर दुर्गा सोरेन सेना का गठन किया है. उनका मकसद साफ है. वह बेटियों को भी राजनीति के अखाड़े में उतारने का मन बना चुकी हैं.
सीता सोरेन के साथ जेएमएम के विधायक लोबिन हेम्ब्रम ने भी सरकार के खिलाफ सार्वजनिक तौर पर मोरचा खोल दिया है. अंदरखाने की सूचना यह है कि सीता सोरेन और लोबिन हेम्ब्रम ही नहीं, बल्कि भीतर ही भीतर जेएमएम के तकरीबन दर्जन भर विधायक हेमंत सोरेन को अपदस्थ करने की साजिश में उधेड़बुन में लगे हैं. कांग्रेस के विधायक भी हेमंत की सरकार के कामकाज से खुश नहीं हैं. कांग्रेस कोटे के मंत्री बन्ना गुप्ता ने भाषा और स्थानीयता के मुद्दे पर पर हेमंत सोरेन को चुनौती तक दे डाली है. बीजेपी झारखंड में गठबंधन के भीतर चल रही खींचतान पर खामोश है. वह दूसरे मुद्दे तलाश कर हेमंत सोरेन की सरकार को घेरने की लगातार कोशिश कर रही है.
क्यों नाराज हैं सीता सोरेन
सीता सोरेन का कहना है कि जल, जंगल और जमीन की रक्षा के वादे के साथ जेएमएम सत्ता में आया. लेकिन वह अपना वादा दूसरे दलों की तरह सत्ता मिलते ही भूल गया है. सदन में वह कोई सवाल उठाती हैं तो सरकार उसका गलत जवाब देती है. सीता सेंट्रल कोलफील्ड्स लिमिटेड (सीसीएल) की आम्रपाली परियोजना में वन भूमि के अतिक्रमण का मुद्दा सदन से सड़क तक उठाती रही हैं. उनका यह भी आरोप है कि कोयले का अवैध ढंग से परिवहन किया जा रहा है. सरकार को बार-बार बताने के बावजूद इसे रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया गया. सदन में यह सवाल उठाने पर सरकार की ओर से आये जवाब को वह सही नहीं मान रहीं. इसीलिए हाल ही में सत्र के दौरान वह सदन के दरवाजे पर धरना देने लगीं. बाद में स्पीकर के समझाने पर उन्होंने धरना तो खत्म कर दिया, लेकिन सरकार से नाराजगी बरकरार रही. अब इसी मुद्दे पर उन्होंने राज्यपाल को ज्ञापन दिया है. वे अपनी पार्टी के दूसरे विधायकों को भी सरकार की कार्यशैली के खिलाफ लामबंद करने में लगी हैं.
लोबिन हेम्ब्रम की नाराजगी की वजह
लोबिन हेम्ब्रम झारखंड के आदिवासी बहुल इलाके संथाल परगना के बोरियो से विधायक हैं. उन्हें जेएमएम प्रमुख शिबू सोरेन का करीबी माना जाता है. लोबिन अपनी सरकार की दो नीतियों के खिलाफ अब तक हमलावर रहे हैं. सरकार की शराब नीति पर उनकी पहली आपत्ति है. उनका कहना है कि पार्टी प्रमुख शिबू सोरेन ने हमेशा शराब सेवन की मुखालफत की है और उनकी ही पार्टी की सरकार में उनके ही बेटे के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन शराब बिक्री से राजस्व बढ़ाने के लिए छत्तीसगढ़ से कंसल्टेंट बुला रहे हैं. उनकी दूसरी आपत्ति स्थानीयता नीति पर हेमंत सोरेन की ढुलमुल नीति पर है. वह 1932 के खतियान के आधार पर स्थानीयता नीति तय करने की मांग कर रहे हैं.
हेमंत सोरेन ने भले यह कह कर मामले को शांत करने की कोशिश की कि जनभावनाओं के अनुरूप ही स्थानीयता नीति बनेगी, लेकिन उसके तीन दिन पहले उनके ही एक बयान से साफ हो गया कि स्थानीयता नीति के लिए 1932 के खतियान को आधार बनाना संभव नहीं. ऐसी कोई कोशिश हुई तो कानूनी तौर पर वह खारिज हो जाएगी. दरअसल, बाबूलाल मरांडी ने 1932 के आधार पर स्थानीयता नीति बनायी थी, जिसे लेकर राज्य में भारी खून-खराबा हुआ और आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने संवैधानिक अड़चनें बता कर उसे खारिज कर दिया था. हेमंत सोरेन के सिपहसालार उन्हें इस तकनीकी पहलू को समझा चुके हैं. यही वजह है कि हेमंत कोई वितंडा खड़ा करना नहीं चाहते
कांग्रेस क्यों खफा है सरकार से
जेएमएम ने कांग्रेस के साथ तालमेल कर झारखंड में सरकार बनायी. उसके 18 विधायक हैं. कांग्रेसी विधायकों का रोना है कि कांग्रेस कोटे के ही मंत्री उनकी बात नहीं सुनते. दूसरे मंत्रियों की तो बात ही अलग है. नाराजगी का आलम यह है कि कांग्रेस के भीतर 10 से ज्यादा विधायक नाराज चल रहे हैं. कांग्रेस कोटे से स्वास्थ्य मंत्री बने बन्ना गुप्ता की एक और पीड़ा है. वह हेमंत सरकार की भाषा नीति से खफा हैं. राज्य सरकार ने नौकरियों के लिए हिन्दी समेत बिहारी भाषाओं को अर्हता सूची से हटा दिया है. चूंकि बन्ना जमशेदपुर के जिस इलाके से चुन कर आते हैं, वह बिहारी बहुल इलाका है. इसलिए उन्हें वोट बैंक की चिंता सता रही है. उन्होंने तो यहां तक धमकी दे डाली है कि मंत्री पद जाये तो जाये, हम भाषा नीति का विरोध करते रहेंगे.
जेएमएम को बीजेपी के खेल की आशंका
जेएमएम को आशंका है कि सरकार को अपदस्थ करने की जो कवायद उसके गठबंधन या पार्टी में चल रही है, उसमें बीजेपी का हाथ है. बीजेपी की शह पर पार्टी से निकाले गये दो लोग इसके सूत्रधार हैं. सीता सोरेन और लोबिन हेम्ब्रम बीजेपी के इशारे पर ही सरकार के खिलाफ मुखर हुए हैं. बताया तो यह भी जाता है कि हेमंत सोरेन की भाभी और उनकी ही पार्टी की विधायक सीता सोरेन के आवास पर पार्टी से निष्कासित दोनों व्यक्तियों की लगातार बैठकें हो रही हैं. वहीं से पार्टी के विधायकों को फोन कर सीता सोरेन का साथ देने के लिए कहा जा रहा है. लालच यह भी दिया जा रहा है कि अगर सरकार को अपदस्थ कर बीजेपी की सरकार बनाने में वे मददगार होते हैं तो उन्हें मंत्री बना कर इसका पुरस्कार दिया जाएगा. वैसे भी माना जाता है कि बीजेपी के संपर्क में कांग्रेस के दस विधायक लगातार बने हुए हैं. जेएमएम को अगर तोड़ने में कामयाबी मिल गयी तो उसकी बल्ले-बल्ले हो जाएगी. सांप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी.
क्या है विधानसभा में दलीय स्थिति
81 सीटों वाली झारखंड विधानसभा में कुल विधायकों की संख्या 81 है. इसमें 2014 के 37 के मुकाबले 2019 में बीजेपी के 25 विधायक चुन कर विधानसभा पहुंचे. बाबूलाल मरांडी की निवर्तमान पार्टी जेवीएम के 3 सदस्य चुने गये थे. बाद में उन्होंने बीजेपी में पार्टी का विलय कर दिया. वह खुद बीजेपी में गये, लेकिन उनके 2 विधायक प्रदीप यादव और बंधु तिर्की कांग्रेस के पाले में चले गये. बंधु तिर्की को हाल ही में आय से अधिक संपत्ति मामले में तीन साल की सजा हुई है. यानी उन्हें विधायकी से वंचित होना पड़ेगा. सुदेश महतो की आजसू पार्टी के 2 विधायक हैं. सीपीआई माले और एनसीपी के एक-एक विधायक हैं. निर्दलीय विधायक 2 हैं. जेएमएम के 30 और कांग्रेस के 17 विधायक हैं. इनमें बंधु तिर्की को हटा दिया जाये तो 16 बचते हैं. जेएमएम के 30, कांग्रेस के 16 और आरजेडी के एक विधायक को लेकर हेमंत सोरेन को 47 विधायकों का समर्थन है. बहुमत के लिए 41 विधायकों की जरूरत पड़ती है.

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
ब्लॉगर के बारे में
ओमप्रकाश अश्क
प्रभात खबर, हिंदुस्तान और राष्ट्रीय सहारा में संपादक रहे. खांटी भोजपुरी अंचल सीवान के मूल निवासी अश्क जी को बिहार, बंगाल, असम और झारखंड के अखबारों में चार दशक तक हिंदी पत्रकारिता के बाद भी भोजपुरी के मिठास ने बांधे रखा. अब रांची में रह कर लेखन सृजन कर रहे हैं.
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