सम्पादकीय

Opinion: पहली बार जन आशीर्वाद यात्रा में शिवराज नहीं होंगे चेहरा, सिंधिया करेंगे नेतृत्व

Gulabi
19 Aug 2021 11:59 AM GMT
Opinion: पहली बार जन आशीर्वाद यात्रा में शिवराज नहीं होंगे चेहरा, सिंधिया करेंगे नेतृत्व
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यद्यपि सिंधिया राजपरिवार के किसी भी सदस्य ने अपनी जाति के आधार पर राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश नहीं की है

दिनेश गुप्ता।

भोपाल. यद्यपि सिंधिया राजपरिवार के किसी भी सदस्य ने अपनी जाति के आधार पर राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश नहीं की है, इसके बाद भी केन्द्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया की मालवा-निमाड़ की यात्रा को अगड़े-पिछड़ों से जोड़ने की कवायद चल रही है. यात्रा का आयोजन भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय नेतृत्व ने किया है. यात्रा को जन आशीर्वाद यात्रा का नाम दिया गया है. यह यात्रा उन केन्द्रीय मंत्रियों के नेतृत्व में निकाली जा रही है, जिन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने मंत्रिमंडल के विस्तार में जगह दी है. घोषित तौर पर यह यात्राएं परिचय यात्राएं हैं. भाजपा का आरोप है कि कांग्रेस के हंगामे के कारण संसद में मंत्री अपना परिचय नहीं दे सके थे. इस कारण यात्रा निकालकर जन संवाद की रणनीति बनाई गई.


कमियों को सुधारने की रणनीति का हिस्सा हैं यात्राएं

मध्यप्रदेश में यात्रा पर तीन मंत्री निकले हैं. इनमें एक एसपीएस बघेल पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश से हैं. पार्टी की कोशिश इस यात्रा के जरिए अनुसूचित जाति और पिछड़ा वर्ग को जोड़ने की है. सिंधिया के भाजपा में शामिल होने के बाद पार्टी की रणनीति मध्यप्रदेश को कांग्रेस मुक्त बनाने की है. भाजपा उन सभी कमियों को दुरुस्त करने में लगी हुई है जिनके चलते कांग्रेस पंद्रह साल बाद भी सरकार में वापस आ गई. मध्यप्रदेश की राजनीति दो दलीय व्यवस्था पर आधारित है. समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी सिर्फ कांग्रेस के वोट काटने का काम करते हैं. पिछले विधानसभा के आम चुनाव में कांग्रेस वोटों का विभाजन रोकने में सफल रही थी. शिवराज सिंह चौहान के एक बयान के कारण सवर्ण भी नाराज हो गया था. नतीजा भाजपा सरकार से बाहर हो गई. सत्ता में वापसी ज्योतिरादित्य सिंधिया के दलबदल के कारण संभव हुई.

पहली बार शिवराज सिंह चौहान नहीं हैं यात्रा का चेहरा

लंबे समय से मध्यप्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की जन आशीर्वाद यात्रा का चेहरा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान रहे हैं. पहली बार ऐसा हो रहा है कि यात्रा उनके नेतृत्व में नहीं निकाली जा रही है. वर्ष 2018 में विधानसभा चुनाव में पार्टी को मिली हार के बाद चौहान ने आभार यात्रा की अनुमति मांगी थी. उन्हें यात्रा निकालने की अनुमति नहीं मिली थी. वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा के हाथ से पंद्रह साल पुरानी सरकार निकल गई थी. यद्यपि कांगे्रस पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं मिला था, लेकिन भाजपा को साठ से अधिक सीटों का नुकसान हुआ था. कांग्रेस की जीत में दो महत्वपूर्ण कारण रहे. पहला कारण ज्योतिरादित्य सिंधिया का चेहरा और दूसरा कारण अनुसूचित जाति वर्ग का वोटर. सिंधिया के प्रभाव वाले ग्वालियर-चंबल अंचल में कांग्रेस को 34 में से 27 सीटों पर सफलता मिली थी. विधानसभा चुनाव से ठीक पहले इस अंचल में एट्रोसिटी एक्ट में किए गए बदलाव के विरोध में बड़ा आंदोलन हुआ था. गोली भी चली थी.

जाति से ज्यादा सिंधिया का चेहरा रहता है महत्वपूर्ण

मध्यप्रदेश की राजनीति में सिंधिया राजपरिवार की राजनीति जाति के केन्द्र में कभी नहीं रही. राजनीति में सक्रिय राज परिवार के सदस्यों ने भी अपनी जाति के आधार पर कभी वोट नहीं मांगे. शायद यही एक कारण है जिसके चलते राज परिवार का वोटर पर पीढ़ी दर पीढ़ी असर चला आ रहा है. सिंधिया राजवंश की पहचान मराठा शासक के रूप में है. रियासत में विकास का समृद्धशाली इतिहास है. राजवंश द्वारा किए गए विकास के कारण ही क्षेत्र में उनका प्रभाव है. सिंधिया की जाति तलाशने के लिए महाराष्ट्र का सहारा लिया जाता है. यहां उन्हें ओबीसी के तौर पर देखा जाता है. लेकिन, मध्यप्रदेश की राजनीति में उनका नाम ही पहचान है. राज्य के अन्य किसी बड़े नेता की तुलना में सिंधिया के समर्थकों की सूची में बड़ी संख्या अनुसूचित जाति वर्ग के विधायकों ही रहती है. इंदौर जिले में तुलसीराम सिलावट और रायसेन जिले के विधायक प्रभुराम चौधरी अनुसूचित जाति वर्ग से ही हैं. सिंधिया की जन आशीर्वाद यात्रा देवास जिले से शुरू हुई. यात्रा के पीछे मराठी वोटरों को साधने का उद्देश्य भी है. सिंधिया, खरगोन जिले के रावेरखेडी स्थित बाजीराव पेशवा की समाधि पर गए. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी पहुंचे. पेशवा की समाधि पर इतना राजनीतिक जमावड़ा पहली बार देखा गया.

मध्यप्रदेश में पिछड़ा वर्ग की आबादी पचास प्रतिशत से अधिक है. अनुसूचित जाति वर्ग सत्रह प्रतिशत है. केंद्र में दूसरी बार मंत्री बनाए गए वीरेन्द्र खटीक अनुसूचित जाति वर्ग से हैं. खटीक की यात्रा सिंधिया के प्रभाव वाले क्षेत्र ग्वालियर से हो रही है. जबकि एसपीएस बघेल भी इसी अंचल में यात्रा कर रहे हैं. इस अंचल में बघेल वोटर भी अच्छी तादाद में हैं. वीरेन्द्र खटीक को पहली बार पार्टी इतनी तवज्जो दे रही है. खटीक की यात्रा सात लोकसभा क्षेत्रों में पहुंच रही है. जबकि बघेल तीन लोकसभा क्षेत्रों में जन आशीर्वाद के लिए पहुंच रहे हैं. उनकी अधिकांश सभाएं बघेल बाहुल्य इलाकों में हैं.

मध्यप्रदेश में ओबीसी की राजनीति हर दिन दिलचस्प होती जा रही है. पंद्रह माह की कांग्रेस सरकार ने लोकसभा चुनाव जीतने के लिए ओबीसी को नौकरियों में दिए जाने वाले आरक्षण की सीमा चौदह से बढ़ाकर 27 प्रतिशत कर दी थी. मामला हाईकोर्ट में जाकर अटक गया. 27 प्रतिशत आरक्षण लागू करने की स्थिति में आरक्षण सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित पचास प्रतिशत की सीमा को पार कर जाता है. ओबीसी आरक्षण को लेकर कांगे्रस और कमलनाथ लगातार सरकार पर दबाव बना रही है. विधानसभा का सत्र भी इस कारण समय से पहले समाप्त करना पड़ा था.

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)


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