सम्पादकीय

Opinion: कांग्रेस की राजनीति के केंद्र में आ रहे हैं दिग्विजय सिंह

Gulabi
24 Nov 2021 9:00 AM GMT
Opinion: कांग्रेस की राजनीति के केंद्र में आ रहे हैं दिग्विजय सिंह
x
केंद्र में आ रहे हैं दिग्विजय सिंह
मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह को लेकर यह ठोस- राजनीतिक धारणा है कि अल्पसंख्यकों से जुड़े मामलों में उनके द्वारा दिए जाने वाले बयान भारतीय जनता पार्टी (BJP) की जीत का रास्ता बना देते हैं. खुद दिग्विजय सिंह भी यह मानने लगे हैं कि उनके बयानों से कई बार कांग्रेस को नुकसान होता है. इसके बाद भी दिग्विजय सिंह अल्पसंख्यकों के मामले में भाजपा सरकार से सवाल करने में पीछे नहीं रहते हैं. दिग्विजय सिंह धीरे-धीरे मध्यप्रदेश की राजनीति के केंद्र में आते जा रहे हैं. वे अपनी जन जागरण यात्रा के जरिए कांग्रेस पार्टी के हतोत्साहित कार्यकर्ताओं में उत्साह भरने में लगे हुए हैं.
कांग्रेस के कार्यकर्ताओं के निष्क्रिय नजर आने की वजह प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कमलनाथ माने जा रहे हैं. कमलनाथ का कार्यकर्ताओं से उस तरह का संवाद नहीं है, जिस तरह दिग्विजय सिंह संपर्क में रहते हैं. कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व द्वारा राजस्थान में अपनाए गए एक व्यक्ति-एक पद के फार्मूले के मध्यप्रदेश में भी लागू होने की बात हो रही है. अभी कमलनाथ के पास पार्टी अध्यक्ष के अलावा विधायक दल के नेता का भी दायित्व है, जिसके चलते कांग्रेस के कई वरिष्ठ विधायक असंतुष्ट और नाराज हैं.
दिग्विजय के कारण ही सिंधिया ने छोड़ी थी कांग्रेस
ज्योतिरादित्य सिंधिया के भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने के बाद मध्यप्रदेश में कांग्रेस की राजनीति के दो ही बड़े केंद्र बचे हैं, कमलनाथ और दिग्विजय सिंह. दोनों की जुगलबंदी के कारण ही सिंधिया को कांग्रेस छोड़ना पड़ा. राज्य में 15 साल बाद कांग्रेस की सत्ता में वापसी का श्रेय सिंधिया के चेहरे को दिया जाता है. लेकिन, राहुल गांधी ने मुख्यमंत्री की कुर्सी कमलनाथ को दी.
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लहर में राहुल गांधी की तरह ज्योतिरादित्य सिंधिया भी अपने परंपरागत क्षेत्र से चुनाव हार गए थे. राज्यसभा की बारी आई कमलनाथ ने दिग्विजय सिंह का साथ दिया. राज्यसभा चुनाव के दौरान ही सिंधिया ने कांग्रेस छोड़ी थी. उनके साथ 22 समर्थक विधायकों ने भी पार्टी छोड़ दी और इस्तीफा दे दिया. फलस्वरूप कांग्रेस की अल्पमत सरकार का पंद्रह माह में ही पतन हो गया. कार्यकर्ताओं की मेहनत से बनी सरकार के गिरने का अपयश दिग्विजय सिंह के नाम दर्ज हुआ.
कांग्रेस के विपक्ष में बैठने के बाद भी कमलनाथ ने विधायक दल के नेता के पद से इस्तीफा नहीं दिया. जबकि दिग्विजय सिंह का दबाव एक व्यक्ति-एक पद के सिद्धांत के तहत विधायक दल के नेता का पद किसी और को दिए जाने पर था. वरिष्ठ विधायक डॉ गोविंद सिंह का नाम भी उन्होंने आगे बढ़ाया. लेकिन,कमलनाथ राजी नहीं हुए.
राजस्थान की रणनीति से मध्यप्रदेश में उम्मीद
अशोक गहलोत के नेतृत्व वाली राजस्थान की कांग्रेस सरकार का राजनीतिक संकट भी मंत्रिमंडल के विस्तार के बाद खत्म होता दिखाई दे रहा है. इस संकट को हल करने में दिग्विजय सिंह की भूमिका भी देखी जा रही है. दिग्विजय सिंह पिछले माह जयपुर गए थे. घोषित तौर पर उनकी यात्रा का उद्देश्य केंद्र सरकार के खिलाफ आंदोलन की तैयारी करना बताया गया. लेकिन, दिग्विजय सिंह से स्थानीय नेताओं की मेल-मुलाकात को राजनीतिक संकट से जोड़कर देखा गया.
दिग्विजय सिंह ने गहलोत से नाराज चल रहे युवा नेता सचिन पायलट से से मुलाकात भी की. उन्होंने राजस्थान प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा को मुलाकात के लिए इंतजार भी कराया था. गहलोत मंत्रिमंडल के विस्तार की चर्चाएं उसी वक्त से चल रहीं थीं. दिग्विजय सिंह ने ही एक व्यक्ति-एक पद के सिद्धांत को आगे बढ़ाया. डोटासरा को इसके चलते मंत्रिमंडल से इस्तीफा देना पड़ा.
कहा जा सकता है कि दिग्विजय सिंह ने राजस्थान की सियासत के जरिए मध्यप्रदेश में कमलनाथ की एक कुर्सी कम करने का दांव चला है. राजस्थान में फार्मूला लागू होने के बाद कमलनाथ ने कांग्रेस की कार्यकारी अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात भी की. इस मुलाकात के बाद इन अटकलों को बल मिला कि कमलनाथ पार्टी अध्यक्ष अथवा विधायक दल के नेता में से कोई एक पद छोड़ सकते हैं.
दिग्विजय सिंह के बयान से मजबूत होती है भाजपा
दिग्विजय सिंह अचानक तेजी से कांग्रेस की राजनीति के केंद्र में आ रहे हैं. कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी नेकेंद्रसरकार के खिलाफ राष्ट्रव्यापी आंदोलन करने की रणनीति तैयार करने जो कमेटी बनाई उसके अध्यक्ष दिग्विजय सिंह हैं. प्रियंका गांधी भी इस कमेटी में बतौर सदस्य शामिल हैं. दिग्विजय सिंह कांग्रेस के महासचिव रह चुके हैं. उनके पास उत्तरप्रदेश जैसे बड़े राज्य का प्रभार भी रहा है.
मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव से पहले अचानक राहुल गांधी ने उन्हें महा सचिव के पद से हटा दिया था. अभी भी वे पार्टी के किसी महत्वपूर्ण पद पर नहीं हैं. लेकिन, राजनीति केकेंद्रमें जरूर है. प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा सरकार पर लगातार हमलावर भी हैं. कभी-कभी दिग्विजय सिंह के बयान कांग्रेस पार्टी पर ही भारी पड़ जाते हैं. सामान्यत:उनके वे बयान चर्चा में रहते हैं, जिनसे धर्म के आधार पर वोटों का ध्रुवीकरण आसानी से हो जाता है. भाजपा नेता और मध्यप्रदेश के प्रभारी मुरलीधर राव कहते हैं कि दिग्विजय सिंह के बयानों से भाजपा को फायदा होता है.
संगत में पंगत से दूर कराई थी गुटबाजी
वर्ष 2003 में दिग्विजय सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस की दस साल पुरानी सरकार चली गई थी. उमा भारती के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनी थी. दिग्विजय सिंह को मिस्टर बंटाधार का नाम इसी चुनाव के दौरान मिला था. सड़क,बिजली और पानी जैसे विकास के मुद्दों पर कांग्रेस की सरकार गई थी. भाजपा के सत्ता में आने के पीछे कोई सांप्रदायिक मुद्दा नहीं था.
दलित एजेंडे के मुद्दे से ऊंची जाति और ओबीसी में जरूर नाराजगी थी. अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग की आरक्षित सीटों पर भी कांग्रेस को अपेक्षित सफलता नहीं मिली थी. जबकि 2018 के विधानसभा चुनाव में इन दोनों वर्गों के समर्थन से ही कांग्रेस पंद्रह साल बाद सत्ता में वापस लौटी. चुनाव में दिग्विजय सिंह की भूमिका कांग्रेस में जमीनी स्तर पर चल रही गुटबाजी को खत्म करने की रही. पार्टी ने उन्हें समन्वय की जिम्मेदारी थी. संगत में पंगत के जरिए उन्होंने गुटबाजी काफी हद तक रोका भी. लेकिन,सत्ता आने के बाद गुटबाजी फिर शुरू हो गई थी
जन जागरण यात्रा से दूर दिग्गज नेता ?
पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने चौदह नवंबर से जन जागरण यात्रा शुरू की है. प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कमलनाथ अथवा प्रदेश कांग्रेस के अन्य बड़े नेता इस यात्रा में साथ दिखाई नहीं दे रहे हैं. यात्रा की शुरुआत आदिवासी क्षेत्र मंडला से की. दिग्विजय सिंह जहां भी यात्रा निकाल रहे हैं, वह स्थानीय धार्मिक मान्यताओं और आस्थाओं के केंद्रभी जा रहे हैं. मंडला के अलावा दतिया में भी दिग्विजय सिंह की यात्रा निकल चुकी है. पन्ना की यात्रा ने विरोधियों को सचेत कर दिया है. दतिया राज्य के गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा का निर्वाचन क्षेत्र है. जबकि पन्ना,प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा के निर्वाचन क्षेत्र का हिस्सा है. यात्रा में मुख्य मुद्दा महंगाई है.
दिग्विजय सिंह की गांधीवादी राजनीति
भारतीय जनता पार्टी के विधायक रामेश्वर शर्मा ने पिछले दिनों एक विवादित बयान दिया. उन्होंने अपने कार्यकर्ताओं से कहा कि कांग्रेसी आए तो उनके घुटने तोड़ दो. उसके बाद दिग्विजय सिंह ने ऐलान कर दिया कि वे खुद रामेश्वर शर्मा के घर के बाहर शांतिपूर्ण धरना देंगे. राम धुन बजाएंगे. रामेश्वर शर्मा राज्य के उन भाजपा नेताओं में हैं,जो अपने कट्टर हिन्दुत्व वाले बयानों के कारण चर्चा में रहते हैं. दिग्विजय सिंह के खिलाफ भी वे कई तरह की विवादास्पद टिप्पणी कर चुके हैं. लेकिन, दिग्विजय सिंह की धरने की प्रतिक्रिया ने शर्मा को दो कदम पीछे धकेल दिया. अब शर्मा खुद दिग्विजय सिंह के सम्मान में अपने घर के बाहर स्वागत द्वार लगाव चुके है.



(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए जनता से रिश्ता किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
दिनेश गुप्ता
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं. सामाजिक, राजनीतिक और समसामयिक मुद्दों पर लिखते रहते हैं. देश के तमाम बड़े संस्थानों के साथ आपका जुड़ाव रहा है.
Next Story