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
कई वर्षों के लंबे संघर्षों की जद्दोजहद तथा हजारों क्रांतिकारियों की सरफरोशी के बल पर भारत 15 अगस्त 1947 को अंग्रेजी दास्तां से मुक्त हुआ था। 1947 में विभाजन की त्रासदी का दर्द अभी कम नहीं हुआ था कि मजहब के नाम पर वजूद में आए हमशाया मुल्क पाकिस्तान के हुक्मरानों ने रियासत-ए-जम्मू-कश्मीर को हड़पने का मंसूबा तैयार करने के लिए 'कश्मीर लिब्रेशन कमेटी' का गठन कर दिया था। आखिर 22 अक्तूबर 1947 की रात को पाक सिपहसालारों ने उसी कश्मीर लिब्रेशन कमेटी में शामिल पाक फौज के तर्जुमान मे. ज. अकबर खान की कियादत में हजारों पाक सैनिकों व कबाइली तथा पश्तून हमलावरों को पूरे जंगी जखीरे से लैस करके अपनी सरहदें लांघकर कश्मीर पर हमले को अंजाम दिया था। पाक सेना ने कश्मीर को हथियाने की उस नापाक साजिश को 'ऑपरेशन गुलमर्ग' नाम दिया था। संगीनों के साए में बेगुनाहों की कत्लोगारत व कश्मीर यानी जन्नत को जहन्नुम में तब्दील करने का खूनी खेल घुसपैठिया युद्धकला के जनक अकबर खान के उसी हमले से शुरू हुआ था जो बद्दस्तूर जारी है। पाक सेना के उस कातिलाना हमले से पैदा हुए खौफनाक हालात में जम्मू-कश्मीर के महाराजा हरिसिंह ने भारत सरकार से मदद की गुहार लगाई थी। 26 अक्तूबर 1947 को महाराजा हरिसिंह ने 'इस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन' दस्तावेज पर दस्तखत करके जम्मू-कश्मीर रियासत का भारत में इलहाक कर दिया था, मगर हिंदोस्तान की सबसे बड़ी रियासतों में से एक जम्मू-कश्मीर पर पाकिस्तान के उस पहले हमले से निपटने में भारत के तत्कालीन हुक्मरानों का ढुलमुल रवैया तथा महाराजा हरिसिंह द्वारा जम्मू-कश्मीर का एक मुद्दत के बाद भारत में विलय के सही फैसले के परिणाम कितने सकारात्मक व कारगर साबित हुए, इसकी तस्वीर आज सबके सामने है। 1947-48 का पाक हमला कश्मीर में मौजूदा आतंक व पलायन जैसी समस्याओं का आगाज था जिसका खामियाजा भारतीय सेना व सैनिकों के परिवार भुगत रहे हैं, लेकिन भारतीय थलसेना की 'प्रथम सिख' बटालियन ने कर्नल रंजीत राय 'महावीर चक्र' (मरणोपरांत) की कमान में 27 अक्तूबर 1947 को कश्मीर की धरती पर पाक सेना को उस हिमाकत का मुंहतोड़ जवाब दिया था।