सम्पादकीय

उफ! झूठ की खेती में अमेरिका और भारत

Gulabi
10 Nov 2020 4:19 PM GMT
उफ! झूठ की खेती में अमेरिका और भारत
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डोनाल्ड ट्रंप के चार सालों में अमेरिका क्या बना और नरेंद्र मोदी के छह साल में भारत क्या बना?

जनता से रिश्ता वेबडेस्क। सोचें, डोनाल्ड ट्रंप के चार सालों में अमेरिका क्या बना और नरेंद्र मोदी के छह साल में भारत क्या बना? पूछ सकते हैं दोनों की भला एक साथ तुलना क्यों? इसलिए क्योंकि दोनों स्वभाव, प्रकृति, दिमाग और परिस्थितियों व वक्त की राम मिलाई जोड़ी हैं! दोनों का एक सा मनोविश्व। दोनों अपने को महान, सवर्ज्ञ समझते हुए। दोनों लोगों की बुद्धि हरण में, बेवकूफ बनाने की प्रोपेगेंडा कलाओं के महागुरू। तभी ट्रंप के कोई सात करोड़ अमेरिकी भक्त तो चार गुना बड़ी आबादी वाले भारत में नरेंद्र मोदी के 22-24 करोड़ हिंदू भक्त। जैसे मोदी ने हिंदुओं को दिवाना बनाया वैसे ट्रंप ने गोरे ईसाईयों को बनाया। कैसे? इसका मूल मंत्र है लोगों में भय, असुरक्षा और चिंताओं को हवा देना। देश की मुख्य-बहुसंख्यक आबादी में भय की उस हर नब्ज को ट्रंप और मोदी ने एक ही अंदाज में पकड़ कर भरोसा दिया कि चिंता न करो, मुझे चुनो मैं तुम्हे बचाऊंगा। मैं तुम्हारे अच्छे दिन लिवा लाऊंगा। इसलिए कि मैं मुसलमान को अमेरिका में घुसने नहीं दूंगा। मुसलमान से लड़ना ओबामा-मनमोहन सिंह के बस की बात नहीं है। मैं मर्द रक्षक। छप्पन इंची छाती वाला। मैं प्रवासियों-घुसपैठियों से मुक्त कराऊंगा। मैं पाकिस्तान को ठोकूंगा। मैं चीन से बचाऊंगा। मैं दिल्ली-वाशिंगटन के दलालों-भ्रष्टाचारियों से मुक्त करा दूंगा। मैं खुशहाल बना भारत को, अमेरिका को सोने की चिड़िया बना दूंगा। मैं देश को आत्मनिर्भर बना दूंगा। मैं महाशक्ति बना दूंगा। और मेरी स्ट्रांग-सख्त लीडरशीप की ऊंगलियों पर सभी नाचेंगे!

और अमेरिकियों-भारतीयों ने ट्रंप और मोदी को उनकी बड़ी-बड़ी बातों, बड़े वादों को सुन उन्हें जिताया। ट्रंप जहां दुनिया के नंबर एक ताकतवर देश के राष्ट्रपति बने तो नरेंद्र मोदी कथित तौर पर दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के नियंता हुए। आगे सवाल है ट्रंप से अमेरिका ने क्या पाया? भारत ने नरेंद्र मोदी से क्या पाया? दोनों देशों के चरित्र की खूबी को रेखांकित करें तो अमेरिका दुनिया की नंबर एक ताकत, चौकीदार है तो भारत की पहचान इस बात से है कि वह दुनिया का सर्वाधिक बड़ा लोकतांत्रिक देश है। भारत की आन, बान, शान, धाक-धमक सब दुनिया में इस पहचान से है कि वह दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। दुनिया के तमाम तानाशाह, तीसरी दुनिया के आगे भारत की वैश्विक चर्चा इस समझ से होती रही है कि चीन होगा अमीर लेकिन इंसान को इंसान की तरह, मानवीय गरिमा के साथ जीने की कोशिश करवाता सिस्टम भारत में बना है और ऐसा होना मानवता के लिए गौरव की बात है, तीसरी दुनिया-गरीब-विकासशील देशों के लिए यह अनुकरणीय बात है।

क्या मैं गलत लिख रहा हूं? सो, अब सवाल है कि चार सालों में डोनाल्ड ट्रंप ने क्या अमेरिका को और महाशक्तिशाली बनाया? क्या ट्रंप ने इस्लाम को सुधारा या ठोका? जिन देशों ने, जिन ताकतों ने अमेरिका को परेशानी में, आर्थिक-सैनिक तौर पर बदहाल बनाया क्या उन्हें ट्रंप ने दुरूस्त किया? अमेरिका बतौर देश अंदर से मजबूत, एकजुट, बेहतर बना या उलटा हुआ? ये ही सवाल भारत-मोदी के संदर्भ में सोचें।

जवाब में ट्रंप के चार सालों का अनुभव है। ट्रंप ने वह किया जो 244 साल के अमेरिकी इतिहास में किसी राष्ट्रपति ने नहीं किया। ट्रंप ने देश को ही दो पालों में बांट दिया। ट्रंप ने अमेरिका के साथ वह किया, जो उसके दुश्मन देश नहीं कर पाए। उन्होंने अमेरिका को बांट डाला। एक व्यक्ति, एक नेता ने अमेरिकी लोकतंत्र की ऐसी की तैसी ऐसे की कि दुनिया के तमाम सुधीजन अमेरिकी लोकतंत्र की मौजूदा दशा पर सोच-सोच कर हैरान है। कई मान रहे है कि ट्रंप भक्त और विरोधियों की आर-पार की लड़ाई आगे बाइडेन को सफल नहीं होने देगी। अमेरिका गर्वनेबल नहीं रहा। ट्रंप और ट्रंपवाद अमेरिकी लोकतंत्र की जड़ों को इतना सड़ा गया है कि जो बाइडेन कितनी ही मलहम लगाएं पर अमेरिका सामान्य-सुव्यवस्थित नहीं हो सकेगा।

क्यों है ट्रंप की यह देन? वजह एक कारण, एक कीड़ा, एक दीमक। मतलब झूठ! झूठ बोल-बोल कर डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका के गोरे ईसाईयों की बुद्धि का ऐसा हरण किया, उन्हे ऐसा मूर्ख बनाया कि ये भक्त मानेंगे ही नहीं कि ट्रंप शैतान है। वह झूठा है। ट्रंप ने चार सालों में अमेरिका को नहीं बनाया, बल्कि उन्होंने गोरे ईसाईयों को झूठ के उन सूत्रों में दीक्षित-शिक्षित करने का अकेला काम किया, जिससे देश की आधी आबादी कबीलाई, ट्राईबलिजिम सोच की व्यवहारी हो गई है। इस बात को बिहार के लालू यादव अनुभव से समझें। लालू यादव ने बिहार में क्या किया? मंडल आयोग की राजनीति का खूंटा बना कर उन्होंने बिहारी लोगों को अगड़े-पिछड़े के दो हिस्सों में बांट वोटों की अपनी खेती बनाई। अपनी जात के यादवों में वैसी ही दबंगी बनवाई जैसे अभी अमेरिका में नस्लवादी गोरे छाती फुलाए ट्रंप के लिए घूम रहे हैं। नतीजतन एक बार बिहार में जातीय-कबीलाई विभाजन बना नहीं कि तीस साल बाद आज भी लालू और उनके कुनबे का अपने भक्तों में दबदबा है और आगे भी रहेगा। लालू ने कैसे ऐसा किया? झूठ बोल कर, गरीब-गुरबों-पिछड़ों के नाम पर सामाजिक न्याय का जुमला बोल लोगों की बुद्धि का ऐसा हरण किया कि बिहार में अभी भी लोग मानने को तैयार नहीं है कि अनुकंपा, खैरात, धर्मादा से विकास नहीं विनाश होता है। लालू ने झूठ की खेती में सामाजिक न्याय, आरक्षण से लोगों को बांट कर वोटों की अपनी फसल भले बनाई हो लेकिन वह फसल उनके लिए भी बबूल के कांटे लिए हुए थी तो पूरे बिहार के लिए भी थी और है और रहेगी। तीस साल बाद भी बिहार बरबाद है और आगे दशकों बरबाद रहेगा। भले नरेंद्र मोदी-नीतीश कुमार से आज बड़ा झूठ बोल याकि दस लाख नौकरियों के झूठ से तेजस्वी यादव जीत जाएं लेकिन उससे बिहार न बनेगा और न बदलेगा। इसलिए क्योंकि कोर बात मोदी-नीतीश के रूटिन झूठों पर नए चमत्कारिक झूठ याकि दस लाख नौकरियों के पीछे की हकीकत में भी तो झूठ से लोगों की बुद्धि का हरण करना है।

मैं भटक गया हूं। बुनियादी बाद है कि डोनाल्ड ट्रंप ने झूठ, अहंकार की लालू-मोदी स्टाइल में बुद्धि का हरण कर अमेरिका का बिहारीकरण ऐसा किया कि अमेरिका भयावह खोखला बना है। मामूली बात नहीं है जो दुनिया के सर्वाधिक समर्थ-विज्ञानी देश अमेरिका मैं रोजाना वायरस संक्रमितों का आंकड़ा लाख से ऊपर जा रहा है। सोचें और तुलना करें कि ट्रंप के भक्त महामारी के आगे क्या वैसे ही लापरवाह-बेफिक्र नहीं है, जैसे मोदी- नीतीश-लालू के भक्त भारत में है!

सो, लालू, नीतीश, नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप सबकी राजनीति, सबके मौके में सत्व-तत्व झूठ के वायरस से दिमाग-बुद्धि का वह हरण है, जिससे वोटों की फसल भले खूब पैदा हुई लेकिन सारी बबूल की, कांटों की फसल है। राजनीति में झूठ वह अमेरिकी घास है जो लगातार फैलती, छोटी से बड़ी होती जाती है। वह आम के पेड़ों में भी दीमक की तरह घुस उन्हें खा जाती है! बुद्धि का ऐसा हरण होगा कि न ऊर्जा-उत्पादकता-समझ बचेगी और न पीढ़ियों की मेहनत से बनी संस्थाओं में आम पैदा करने की क्षमता बचेगी। देश में सर्वत्र कौओं की कांव-कांव का नैरेटिव और दुनिया में हंसी का पात्र बनते जाना।

अमेरिका और उसके ट्रंप आज दुनिया के सभ्य समाजों में हंसी के, घृणा के पात्र है। यह भाव अमेरिका में भी उन साढ़े सात करोड़ समझदार मतदाताओं में है, जिन्होंने ट्रंप के खिलाफ वोट दिया है। लेकिन बावजूद इस सबके ट्रंप और उनके भक्तों की बुद्धि लौट नहीं सकती। तभी सोचें ट्रंप ने अमेरिका का कितना नुकसान किया है। अमेरिका के आधे वोटों की बुद्धि में भक्ति का लकवा बनाया तो देश के मानस को अलग बांट डाला।

सार की बात है कि भय-सुरक्षा-अधिकार की चिंता की परिस्थितियों में झूठ के जादूगर नेताओं का मौका जबरदस्त बनता है। उनका शो हिट हो जाता है। फिर शो को चलाए रखने के लिए एक के बाद एक झूठ से राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री अपने को लगातार महानतम बनाने की हर दिन वे सुर्खियां बनवाएंगे, जिससे देश का विमर्श एकतरफा, विषैला बनेगा और धीरे-धीरे देश की बुद्धि कुंद होगी व गृह युद्ध की ओर बढ़ने लगेगी।

दरअसल झूठ की खेती झूठ से ही सींचती जाती है। जैसा मैंने पहले लिखा कि राजनीति और नेतृत्व का सहज स्वभाव है जो वह संकट-चिंता के वक्त में उम्मीद-आशा से अपना प्रजेंटेशन करें। अपने आपको लीडर स्थापित करने के लिए उम्मीद-आशा के फॉर्मूले में जिसकी-जैसी बुद्धि उसके उतने छोटे-बड़े झूठ। लोकतंत्र के दायरे में नेता का झूठ और उससे लोगों के बुद्धि के हरण की संभावना इसलिए अधिक होती है क्योंकि लोकतंत्र विकल्प बनने-बनाने के अवसर का नाम है तो झूठ का सहारा स्वभाविक है। लोकतांत्रिक राष्ट्र-राज्य के जीवन में यह रूटिन की बात है। हां, मानव सभ्यता में समझदार कौमों ने लोकतंत्र व चुनाव की व्यवस्था इसलिए बनाई ताकि वक्त के अनुभव में लोग नेता बदलें। पुराने को हटाएं व नए को मौका दें। जाहिर है ऐसी व्यवस्था में विचार, विचारधारा के विकल्पों में बने राजनीतिक दल और नेता जनता में अपना प्रचार आशा-उम्मीद पर ही करेंगे तो उसमें सत्य का उपयोग होगा तो धूर्त सत्ताकांक्षी झूठ से लोगों के बुद्धि हरण का तरीका अपनाएंगे।

तानाशाह, धर्मानुगत इस्लामी देशों का मामला अलग है। वहां लोग बंधुआ होते हैं, जबकि जहां लोगों को वोट से विकल्प चुनने की आजादी है तो उस लोकतंत्र में जन अंसतोष अगले नेतृत्व के लिए अवसर बनाता जाता है। उस वक्त लालू यादव, नरेंद्र मोदी और डोनाल्ड ट्रंप किस्म के नेता लोगों की नब्ज पकड़, उन पर जादू करते हुए सत्ता पाएंगे तो बाद में संभव है कि अंत में लोग तंग आ कर ऐसे लोगों से मुक्ति पाएं। तब डॉ. मनमोहन सिंह व जो बाइडेन जैसे बिना जादू के नेता अवसर पाते हैं। यह लोकतंत्र का सामान्य चक्र है।

दिक्कत तब है, राष्ट्र-सभ्यता को खतरा तब है जब लोकतंत्र को कोई नेता गृहयुद्ध में, समाज बांटने, उसे पानीपत की लड़ाई में बदलने की इंतहा वाले झूठ की खेती करने लगे। ऐसा डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले चार सालों में अमेरिका में किया है। तभी अमेरिका आज चुनाव नतीजों के बाद यह सोचते हुए ज्यादा कंपकंपा रहा है कि आगे क्या होगा? देश क्या और बंटेगा और बरबाद होगा? ट्रंप के दिवाने और विरोधी दोनों का बाहुबल इतना है कि दोनों में एक-दूसरे को देख लेने, या एक-दूसरे से बदला लेने की वह भावना बन सकती है, जिससे अगले चार साल अमेरिका अपने में ही फंसा रहे।

यह देन है ट्रंप की। क्या नहीं? और क्या नरेंद्र मोदी के छह साल में भारत की वहीं स्थिति नहीं है जो अमेरिका में आज है। न भारत के लोकतंत्र की वह प्रतिष्ठा बची है जो कभी वैश्विक जमात में उसकी पूंजी थी तो न भारत मोदी भक्त बनाम मोदी विरोधियों के उस खिंचाव से मुक्त हैं, जिससे अमेरिका आज आंशकाओं में है। तभी सोचें कि ट्रंप और मोदी की राम मिलाई जोड़ी ने दो महान देशों को किस मुकाम पर ला पहुंचाया है और आगे कहां पहुंचाएंगे!

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